2006 का ऐतिहासिक कदम – राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority – NTCA) की स्थापना

शीर्षक: 2006 का ऐतिहासिक कदम – राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority – NTCA) की स्थापना


परिचय

भारत में बाघ (Tiger) न केवल एक करिश्माई और संकटग्रस्त प्रजाति है, बल्कि यह देश की समृद्ध जैव विविधता का प्रतीक भी है। लेकिन 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में बाघों की तेजी से घटती संख्या ने भारत सरकार को गंभीर कदम उठाने के लिए प्रेरित किया। इस दिशा में सबसे प्रभावशाली पहल 2006 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की स्थापना थी, जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में संशोधन के माध्यम से अस्तित्व में आया। यह प्राधिकरण बाघों के संरक्षण, निगरानी और प्रबंधन के लिए एक केंद्रीय संस्था के रूप में कार्य करता है।


पृष्ठभूमि

1. बाघों की घटती संख्या

1970 के दशक में भारत में बाघों की संख्या लगभग 1,800 के आसपास थी। इनकी रक्षा हेतु 1973 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ (Project Tiger) शुरू किया गया।
हालाँकि समय के साथ शिकारी गतिविधियों, वनों के दोहन, और प्राकृतिक आवास के क्षरण के कारण 2005 तक बाघों की संख्या 1,400 से भी नीचे आ गई।

2. सरिस्का और पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघों का लुप्त होना

सरिस्का (राजस्थान) और पन्ना (मध्य प्रदेश) जैसे प्रतिष्ठित बाघ अभयारण्यों से बाघों का पूरी तरह गायब हो जाना सरकार और पर्यावरणविदों के लिए एक बड़ा झटका था। इस स्थिति ने एक मजबूत, स्वतंत्र और विशेषज्ञ संस्था की आवश्यकता को जन्म दिया।

3. 2006 का संशोधन

इन संकटों के मद्देनज़र, भारत सरकार ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में संशोधन कर वर्ष 2006 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की स्थापना की।


राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) – एक परिचय

स्थापना:

  • वर्ष: 2006
  • कानूनी आधार: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 38L
  • केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के अंतर्गत कार्यरत एक वैधानिक निकाय (Statutory Body)

NTCA के उद्देश्य

  1. बाघों और उनके आवास का संरक्षण और प्रबंधन करना
  2. प्रोजेक्ट टाइगर के प्रभावी क्रियान्वयन की निगरानी करना
  3. बाघों की जनगणना, निगरानी और संरक्षण स्थिति की समीक्षा करना
  4. राज्यों के साथ समन्वय बनाना और उन्हें तकनीकी व वित्तीय सहायता देना
  5. टाइगर रिज़र्व्स में व्यावसायिक दोहन और मानव अतिक्रमण को नियंत्रित करना
  6. स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना और पुनर्वास योजनाओं की निगरानी करना

प्रमुख कार्य और शक्तियाँ

1. बाघ संरक्षण योजना का अनुमोदन

राज्य सरकारों द्वारा तैयार की गई बाघ संरक्षण योजनाओं को अनुमोदित करने का अधिकार NTCA के पास है।

2. मानकों और दिशा-निर्देशों का निर्धारण

बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन, गश्त, पर्यावरण पर्यटन, और निगरानी हेतु तकनीकी मानक निर्धारित करना।

3. अवैध शिकार और व्यापार पर निगरानी

बाघों के अवैध शिकार और उनके अंगों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की रोकथाम हेतु सख्त कदम और जाँच।

4. कैमराट्रैप और DNA आधारित मॉनिटरिंग

बाघों की संख्या और गतिविधियों की वैज्ञानिक निगरानी हेतु अत्याधुनिक तकनीकों का प्रयोग।

5. स्थानीय लोगों का पुनर्वास

बाघ रिज़र्व क्षेत्रों से विस्थापित परिवारों को उचित मुआवज़ा, आजीविका और पुनर्वास सहायता प्रदान कराना।


प्रमुख उपलब्धियाँ

  1. बाघों की संख्या में वृद्धि
    • 2006 में बाघों की संख्या 1,411 थी
    • 2010 में: 1,706
    • 2014 में: 2,226
    • 2018 में: 2,967
    • 2022 के आँकड़ों में भारत दुनिया में सबसे अधिक बाघों वाला देश बना
  2. बाघ संरक्षण में वैश्विक नेतृत्व
    भारत अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर Global Tiger Forum (GTF) जैसे मंचों के माध्यम से बाघ संरक्षण में नेतृत्व प्रदान कर रहा है।
  3. टाइगर रिज़र्व नेटवर्क का विस्तार
    2006 में जहाँ 28 टाइगर रिज़र्व थे, वहाँ अब 2024 तक यह संख्या 54 से अधिक हो चुकी है।
  4. जनभागीदारी और इको-टूरिज्म
    NTCA के दिशा-निर्देशों के अनुसार स्थानीय समुदायों को पर्यावरण पर्यटन से जोड़ा गया है, जिससे उनकी आमदनी और संरक्षण के प्रति जुड़ाव दोनों बढ़े हैं।

चुनौतियाँ

  1. मानव-वन्यजीव संघर्ष – बाघों का मानव बस्तियों की ओर आना और मवेशियों पर हमला।
  2. वन क्षेत्रों में विकास परियोजनाएँ – सड़क, खनन, औद्योगिक विकास से बाघों के गलियारे टूट रहे हैं।
  3. अवैध शिकार और व्यापार – अभी भी सीमावर्ती क्षेत्रों में तस्करी एक समस्या है।
  4. राज्यों के साथ समन्वय की चुनौतियाँ – कभी-कभी राज्यों की प्रशासनिक अनिच्छा से योजनाओं का क्रियान्वयन धीमा होता है।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की स्थापना ने भारत में बाघ संरक्षण को एक नई दिशा, गति और वैज्ञानिक आधार दिया है। यह संस्था न केवल बाघों की संख्या बढ़ाने में सफल रही है, बल्कि उसने स्थानीय समुदायों, पारिस्थितिकी तंत्र और नीति निर्माण को भी एक साझा मंच पर लाकर संरक्षण को सामाजिक आंदोलन बनाया है। आने वाले वर्षों में NTCA की भूमिका और अधिक महत्त्वपूर्ण होगी क्योंकि जैव विविधता की रक्षा के साथ-साथ पर्यावरणीय न्याय और सतत विकास का संतुलन बनाना हमारी सबसे बड़ी चुनौती होगी।