2002 का संशोधन – सामुदायिक एवं संरक्षण रिज़र्व की अवधारणा और वन्यजीव संरक्षण की नई दिशा

शीर्षक: 2002 का संशोधन – सामुदायिक एवं संरक्षण रिज़र्व की अवधारणा और वन्यजीव संरक्षण की नई दिशा


परिचय

भारत की वन्यजीव संपदा विश्व में जैव विविधता के प्रमुख स्रोतों में गिनी जाती है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 को इस संपदा की रक्षा हेतु लागू किया गया था, जिसमें समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं ताकि बदलते समय और ज़रूरतों के अनुरूप संरक्षण प्रयासों को अधिक समावेशी और प्रभावी बनाया जा सके। वर्ष 2002 का संशोधन अधिनियम के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है क्योंकि इसमें “संरक्षण रिज़र्व (Conservation Reserves)” और “सामुदायिक रिज़र्व (Community Reserves)” की नई अवधारणाओं को अधिनियम में शामिल किया गया। इस संशोधन ने वन्यजीव संरक्षण को सरकारी प्रयासों से आगे बढ़ाकर स्थानीय समुदायों और समाज की भागीदारी तक विस्तारित किया।


संशोधन की पृष्ठभूमि

1972 से पहले और उसके बाद भी भारत में वन्यजीवों की रक्षा मुख्यतः राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के माध्यम से की जाती रही। लेकिन यह स्पष्ट था कि अनेक जैव विविधता संपन्न क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्रों की सीमाओं के बाहर स्थित हैं, जिनका संरक्षण तभी संभव है जब स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रक्रिया में सहभागी बनाया जाए।

इसी विचार को साकार करते हुए, 2002 के संशोधन द्वारा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में धारा 36A से 36C जोड़ी गई, जिससे संरक्षण रिज़र्व और सामुदायिक रिज़र्व का औपचारिक प्रावधान अस्तित्व में आया।


मुख्य प्रावधान – 2002 संशोधन

1. संरक्षण रिज़र्व (Conservation Reserve) – धारा 36A

  • यह सरकारी भूमि पर घोषित किया जाता है, जो किसी राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य के आस-पास स्थित हो और जिसे संरक्षण के लिए उपयुक्त माना गया हो।
  • इसका उद्देश्य है प्राकृतिक गलियारों (Wildlife Corridors) का संरक्षण, जो विभिन्न अभयारण्यों के बीच वन्यजीवों के आवागमन में सहायक होते हैं।
  • सरकार स्थानीय समुदायों, वन विभाग और विशेषज्ञों की सलाह लेकर संरक्षण रिज़र्व घोषित कर सकती है।

2. सामुदायिक रिज़र्व (Community Reserve) – धारा 36C

  • यह निजी या समुदाय की भूमि पर घोषित किया जाता है, जहाँ स्थानीय लोग संरक्षण में रुचि रखते हैं।
  • यह उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होता है जहाँ संरक्षण की परंपरागत मान्यताएँ रही हैं या जहाँ समुदाय स्वयं जैव विविधता को संरक्षित करना चाहता है।
  • सामुदायिक रिज़र्व स्वैच्छिक भागीदारी का प्रतीक है, जिसमें संरक्षण का स्वामित्व स्थानीय समुदाय के पास रहता है।

रिज़र्व प्रबंधन समिति (Reserve Management Committee)

  • इन रिज़र्वों के लिए एक प्रबंधन समिति गठित की जाती है, जिसमें स्थानीय ग्रामवासियों, पंचायत सदस्यों, वन विभाग के अधिकारी और विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
  • यह समिति संरक्षण, निगरानी, जागरूकता, और स्थानीय विकास से संबंधित गतिविधियों को निर्देशित करती है।

संशोधन के लाभ

  1. स्थानीय भागीदारी को बढ़ावा:
    यह संशोधन टॉप-डाउन संरक्षण नीति की बजाय ग्रासरूट सहभागिता पर बल देता है।
  2. संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार:
    इससे उन क्षेत्रों को भी संरक्षण के अंतर्गत लाया जा सका जो पहले कानूनी रूप से संरक्षित नहीं थे।
  3. सांस्कृतिक और पारंपरिक ज्ञान का सम्मान:
    स्थानीय समुदायों के पारंपरिक संरक्षण प्रयासों को औपचारिक मान्यता मिली।
  4. मानव-वन्यजीव संघर्ष में कमी:
    चूंकि स्थानीय लोग निर्णय प्रक्रिया में शामिल होते हैं, इसलिए संघर्ष की संभावना घटती है।
  5. स्थानीय रोजगार और पारिस्थितिकी-पर्यटन को बढ़ावा:
    सामुदायिक भागीदारी से स्थानीय स्तर पर रोजगार, हस्तशिल्प, और प्राकृतिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है।

व्यवहारिक उदाहरण

भारत के विभिन्न राज्यों में कई सफल सामुदायिक और संरक्षण रिज़र्व स्थापित किए गए हैं, जैसे:

  • लद्दाख में चांगथांग संरक्षण रिज़र्व
  • कर्नाटक का मल्लुर सामुदायिक रिज़र्व
  • केरल में पज़्हवंगडी सामुदायिक रिज़र्व

इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि समुदाय आधारित संरक्षण वास्तव में सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है।


चुनौतियाँ

  • संसाधनों की कमी: कुछ क्षेत्रों में पर्याप्त वित्तीय और तकनीकी सहायता न मिल पाने से रिज़र्व निष्क्रिय हो जाते हैं।
  • जनजागरूकता की कमी: कई समुदायों को अब भी इन प्रावधानों की जानकारी नहीं है।
  • संघर्ष और सत्ता संतुलन: कई बार वन विभाग और स्थानीय समुदायों के बीच अधिकारों को लेकर विवाद उत्पन्न हो जाता है।

निष्कर्ष

2002 का संशोधन वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में एक दूरदर्शी कदम था जिसने संरक्षण के लोकतंत्रीकरण की दिशा में भारत को आगे बढ़ाया। सामुदायिक और संरक्षण रिज़र्व की अवधारणाओं ने यह सिद्ध कर दिया कि पर्यावरण संरक्षण तभी स्थायी हो सकता है जब उसमें स्थानीय जन सहभागिता सुनिश्चित की जाए। यह संशोधन वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में सरकार और समाज के बीच एक सेतु का कार्य करता है, जो भारत की जैव विविधता को सुरक्षित रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।