“20 महीनों बाद दर्ज हुआ ‘प्रतिशोधात्मक 498A मुकदमा’ रद्द: राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा—कानून का दुरुपयोग वैवाहिक विवादों में हथियार नहीं बन सकता”
परिचय
भारतीय समाज में वैवाहिक विवाद भावनात्मक, सामाजिक और कानूनी—तीनों स्तरों पर जटिल माने जाते हैं। समय-समय पर अदालतों ने यह माना है कि दहेज उत्पीड़न से संबंधित आपराधिक मुकदमे (धारा 498A, IPC) महिलाओं की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। परंतु यह भी उतना ही सत्य है कि 498A का दुरुपयोग भी कई मामलों में देखने को मिलता है, जिसके कारण निर्दोष व्यक्तियों को मानसिक, सामाजिक और पेशेवर रूप से भारी क्षति उठानी पड़ती है।
इसी संदर्भ में राजस्थान हाईकोर्ट का हालिया निर्णय एक महत्वपूर्ण मिसाल बनकर उभरता है। अदालत ने 20 महीने बाद दर्ज हुई पत्नी की क्रूरता संबंधी FIR को रद्द करते हुए यह माना कि—
“यह मामला प्रतिशोध और दुर्भावना से प्रेरित है, और केवल पति द्वारा दायर तलाक याचिका का जवाब देने हेतु दर्ज किया गया है।”
यह फैसला समस्त न्यायिक तंत्र के लिए यह संदेश भी देता है कि यदि कोई आपराधिक मुकदमा दांव-पेच और बदले की भावना से प्रेरित प्रतीत हो, तो अदालत हस्तक्षेप करने से नहीं हिचकेगी।
मामले की पृष्ठभूमि
- पति और पत्नी लगभग 20 महीने पहले अलग हो चुके थे।
- अलगाव के दौरान पत्नी ने किसी प्रकार का कोई आपराधिक आरोप या शिकायत दर्ज नहीं की।
- इतने लंबे समय तक चुप रहने के बाद, पत्नी ने अचानक धारा 498A, 406, 323, 506 सहित अन्य प्रावधानों के तहत पति और उसके परिवार के खिलाफ FIR दर्ज करवायी।
- FIR दर्ज होने के कुछ समय बाद पाया गया कि पति ने अदालत में तलाक याचिका दायर की थी।
- पत्नी ने अपना तलाक वाद में जवाब—counter reply—498A FIR दर्ज करने के बाद ही प्रस्तुत किया।
- इससे पति ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि यह FIR
- दुर्भावना से प्रेरित है,
- तलाक वाद को प्रभावित करने हेतु दायर की गई है,
- तथा इसका उद्देश्य केवल पति को मानसिक और कानूनी प्रताड़ना देना है।
मुख्य प्रश्न
राजस्थान हाईकोर्ट के समक्ष निम्नलिखित प्रश्न महत्वपूर्ण थे—
- क्या 20 महीने की अत्यधिक देरी FIR की विश्वसनीयता को प्रभावित करती है?
- क्या FIR दर्ज करने का समय यह दर्शाता है कि यह ‘प्रतिशोध’ का परिणाम है?
- क्या तलाक याचिका के जवाब के रूप में दर्ज 498A को अदालत रद्द कर सकती है?
- क्या यह मामला दहेज उत्पीड़न का वास्तविक केस है या वैवाहिक विवाद में ‘कानूनी हथियार’ का दुरुपयोग?
हाईकोर्ट का विस्तृत विश्लेषण
न्यायमूर्ति आनंद शर्मा ने पूरे मामले का गहन विश्लेषण करते हुए कई महत्वपूर्ण अवलोकन प्रस्तुत किए।
1. 20 महीने की देरी संदेहास्पद और अप्राकृतिक
अदालत ने कहा कि—
- यदि वास्तव में पत्नी को शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना थी,
- या कोई गंभीर क्रूरता का मामला था,
तो वह अलग होने के तुरंत बाद शिकायत दर्ज करवातीं।
20 महीने तक कोई शिकायत न करना, फिर पति की तलाक याचिका मिलते ही FIR कर देना, यह स्पष्ट रूप से मंसूबा और इरादे पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
अदालत ने कहा—
“Such an unusual and unexplained delay erodes the credibility of the allegations.”
2. FIR तलाक याचिका का जवाब प्रतीत होती है
अदालत के अनुसार—
- पत्नी ने तलाक याचिका के खिलाफ कोई जवाब नहीं दिया
- जैसे ही पति ने तलाक की प्रक्रिया आगे बढ़ाई, पत्नी ने तुरंत 498A FIR दर्ज करवायी
- यह FIR की समय-सारिणी दर्शाती है कि मामला प्रतिक्रिया स्वरूप (retaliatory) है
न्यायालय ने पाया कि—
“The sequence of events clearly establishes that the FIR is motivated and was lodged solely to counter the divorce petition.”
3. 498A का दुरुपयोग — सुप्रीम कोर्ट की चेतावनियाँ
राजस्थान हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई प्रमुख फैसलों का उल्लेख किया—
(i) प्रीति गुप्ता बनाम राज्य—2010
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 498A का दुरुपयोग गंभीर सामाजिक समस्या बन चुका है।
(ii) अरनेस कुमार बनाम राज्य—2014
SC ने पुलिस को निर्देशित किया कि 498A मामलों में तुरंत गिरफ्तारी न करें, क्योंकि अक्सर मामले अतिरंजित या दुर्भावना से प्रेरित होते हैं।
(iii) कंचन शर्मा मामला—2018
जहां कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवादों में भावनात्मक आक्रोश आपराधिक मुकदमे में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने इन्हें आधार बनाते हुए कहा कि इस FIR में भी दुरुपयोग की स्पष्ट झलक दिखाई देती है।
4. पत्नी की तलाक याचिका में कोई ठोस तथ्य नहीं
अदालत ने यह भी पाया कि—
- पत्नी ने तलाक वाद में आरोपों को दोहराया मात्र,
- कोई स्वतंत्र सबूत, चिकित्सा रिपोर्ट, गवाह, संदेश या अन्य सामग्री नहीं थी,
- हिंसा या दहेज मांग के आरोपों की पुष्टि हेतु कोई contemporaneous रिकॉर्ड नहीं था।
इससे न्यायालय ने कहा—
“The allegations are vague, omnibus, and appear to have been drafted solely for the purpose of pressurizing the husband.”
5. आपराधिक प्रक्रिया दंडात्मक हथियार नहीं बन सकती
कोर्ट ने सख्त शब्दों में कहा—
- वैवाहिक संबंध टूटने पर कानून का इस्तेमाल बदले की भावना से नहीं किया जा सकता।
- 498A के तहत मुकदमा तभी वैध होता है जब घटनाएँ तत्काल, विशिष्ट और प्रमाणित हों।
- जब मुकदमे का उद्देश्य तलाक रोकना या पति को डराना हो, तो ऐसे मुकदमे को अदालत रद्द कर सकती है।
न्यायाधीश ने लिखा—
“Criminal law cannot be permitted to be misused to settle matrimonial scores.”
अंतिम आदेश
राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया—
- पत्नी द्वारा दर्ज FIR को रद्द किया जाता है।
- FIR का उद्देश्य वास्तविक प्रताड़ना नहीं बल्कि प्रतिशोध है।
- तलाक याचिका को प्रभावित करने हेतु आपराधिक कानून का दुरुपयोग नहीं हो सकता।
अदालत ने पुलिस को आगे किसी भी प्रकार की कार्रवाई रोकने का निर्देश दिया।
निर्णय के व्यापक प्रभाव
यह फैसला न केवल इस विशेष मामले में महत्वपूर्ण है बल्कि पूरे देश के लिए मार्गदर्शक बनेगा।
1. 498A के दुरुपयोग पर रोक
498A एक महत्वपूर्ण संरक्षण है, परंतु उसका दुरुपयोग रोकना भी न्यायपालिका की जिम्मेदारी है। यह निर्णय दोनों के बीच संतुलन बनाता है।
2. तलाक मुकदमों में ‘काउंटर FIR’ की प्रवृत्ति पर नियंत्रण
अदालतों को अब ऐसे मामलों में समय, घटना-क्रम, सबूत और उद्देश्य पर अधिक सावधानी बरतनी होगी।
3. न्यायपालिका का विवेक और संवेदनशीलता
यह निर्णय बताता है कि अदालतें
- वैवाहिक विवादों की संवेदनशील प्रकृति समझती हैं,
- परंतु यह भी सुनिश्चित करती हैं कि आपराधिक कानून का दुरुपयोग न हो।
4. निर्दोष लोगों को राहत
इस प्रकार के प्रतिशोधात्मक मुकदमों से अक्सर
- पति,
- ससुराल पक्ष,
- और विशेषकर बुजुर्ग माता-पिता
अनावश्यक आपराधिक प्रक्रिया से परेशान होते हैं।
यह निर्णय ऐसी पीड़ा को कम करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
निष्कर्ष
राजस्थान हाईकोर्ट का यह फैसला एक अत्यंत महत्वपूर्ण कानूनी हस्तक्षेप है।
यह स्पष्ट करता है कि—
“498A कानून का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा है, न कि पति या ससुराल को प्रताड़ित करना।”
20 महीनों की देरी, तलाक याचिका के बाद अचानक FIR, और घटनाओं की गैर-विशिष्टता स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि मामला वास्तविक नहीं बल्कि ‘प्रतिशोधात्मक’ था।
अदालत ने बड़े संतुलित और संवेदनशील तरीके से यह निष्कर्ष निकाला कि आपराधिक कानून वैवाहिक विवादों में हथियार नहीं बनना चाहिए।