1991 का संशोधन – वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में चिड़ियाघर और अनुसंधान संबंधी प्रावधानों की ऐतिहासिक वृद्धि

शीर्षक: 1991 का संशोधन – वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में चिड़ियाघर और अनुसंधान संबंधी प्रावधानों की ऐतिहासिक वृद्धि


परिचय

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत में वन्य जीवों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण विधिक उपकरण है। यह अधिनियम समय-समय पर संशोधित होता रहा है ताकि उभरती हुई आवश्यकताओं और चुनौतियों का समाधान किया जा सके। इसी क्रम में 1991 का संशोधन (Wildlife Protection Amendment Act, 1991) विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा। इस संशोधन ने अधिनियम में “चिड़ियाघर” (Zoo) की स्पष्ट परिभाषा जोड़ी और अनुसंधान एवं वैज्ञानिक अध्ययन के क्षेत्र में वन्यजीवों से संबंधित कार्यों के लिए कानूनी अनुमति की व्यवस्था की।


संशोधन की पृष्ठभूमि

1990 के दशक की शुरुआत में वन्यजीवों की सुरक्षा और वैज्ञानिक अध्ययन को संतुलित करने की आवश्यकता महसूस की गई। साथ ही, देशभर में फैले अनियंत्रित और अव्यवस्थित चिड़ियाघरों की स्थिति चिंता का विषय बन रही थी। इसलिए वर्ष 1991 में एक व्यापक संशोधन के माध्यम से अधिनियम को अधिक संगठित, वैज्ञानिक और व्यावहारिक बनाया गया।


मुख्य विशेषताएँ – 1991 संशोधन

1. चिड़ियाघर की परिभाषा का समावेश

1991 संशोधन के तहत अधिनियम में पहली बार “चिड़ियाघर” (Zoo) शब्द को परिभाषित किया गया।
यह परिभाषा धारा 2 (39) में जोड़ी गई:

“चिड़ियाघर का अर्थ है कोई भी स्थल जहाँ जानवरों को कैद में रखा जाता है और जिसे जनता के अवलोकन के लिए प्रदर्शित किया जाता है, चाहे वह स्थायी हो या अस्थायी।”

इस परिभाषा से यह स्पष्ट हो गया कि सभी प्रकार के छोटे-बड़े पशु प्रदर्शनी स्थल इस अधिनियम के अंतर्गत आएंगे और इनकी निगरानी एवं पंजीकरण अनिवार्य होगा।


2. चिड़ियाघरों के विनियमन हेतु प्रावधान

  • अधिनियम में संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई कि कोई भी चिड़ियाघर बिना राष्ट्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (Central Zoo Authority – CZA) की अनुमति के कार्य नहीं कर सकता।
  • चिड़ियाघरों को वैज्ञानिक, शैक्षणिक, संरक्षण संबंधी मानकों को पूरा करना अनिवार्य कर दिया गया।
  • इसके अंतर्गत पशुओं की देखभाल, भोजन, आवास और चिकित्सा संबंधी न्यूनतम मानकों का निर्धारण किया गया।

3. वन्यजीव अनुसंधान को अनुमति

इस संशोधन द्वारा अधिनियम में वन्यजीवों पर वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए विशेष प्रावधान जोड़े गए।
मुख्य बिंदु:

  • अनुसंधान संस्थानों, विश्वविद्यालयों और मान्यता प्राप्त वैज्ञानिक संगठनों को वन्यजीवों पर अनुसंधान की अनुमति दी जा सकती है।
  • इसके लिए राज्य सरकार या केंद्र सरकार से पूर्वानुमति आवश्यक होगी।
  • अनुसंधान केवल उन उद्देश्यों के लिए हो सकते हैं जो संरक्षण, चिकित्सा, प्रजनन या जैविक अध्ययन से संबंधित हों।

संशोधन के प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव

  • चिड़ियाघरों की गुणवत्ता में सुधार हुआ। जानवरों के लिए बेहतर आवास और सुरक्षा सुनिश्चित हुई।
  • वन्यजीव अनुसंधान को वैधानिक मान्यता मिली, जिससे वैज्ञानिक समुदाय को संरक्षण आधारित अध्ययन में सहायता मिली।
  • जनजागरूकता में वृद्धि हुई क्योंकि अधिक पारदर्शी और प्रमाणित चिड़ियाघर जनता के सामने आए।

लंबी अवधि में योगदान

  • वर्ष 1992 में Central Zoo Authority (CZA) की स्थापना हुई, जिसने पूरे देश में चिड़ियाघरों की गुणवत्ता मानकों को निर्धारित किया और निगरानी प्रणाली को मजबूत किया।
  • वन्यजीवों की वैज्ञानिक प्रजनन योजनाएँ आगे बढ़ सकीं, जिससे संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा संभव हुई।

चुनौतियाँ और आलोचना

  • कुछ निजी चिड़ियाघर मानकों को पूरा करने में असफल रहे और बंद करने पड़े।
  • अनुसंधान अनुमति की प्रक्रिया प्रारंभ में जटिल और समय-लेवा थी, जिससे वैज्ञानिक कार्यों में देरी होती थी।
  • कई संस्थानों को पर्याप्त जानकारी न होने के कारण अनुसंधान प्रस्ताव खारिज किए जाते थे।

निष्कर्ष

1991 का संशोधन वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में एक क्रांतिकारी बदलाव के रूप में सामने आया। इसने न केवल चिड़ियाघरों को विनियमित किया, बल्कि वन्यजीवों पर वैज्ञानिक अनुसंधान को संस्थागत स्वरूप प्रदान किया। यह संशोधन भारत में वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक संतुलनकारी दृष्टिकोण को जन्म देता है, जहाँ संरक्षण, अध्ययन और जनभागीदारी – तीनों को एकसाथ महत्व दिया गया।