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BNSS की धारा 106 के तहत जांच एजेंसी को बैंक खाता फ्रीज करने का अधिकार नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

BNSS की धारा 106 के तहत जांच एजेंसी को बैंक खाता फ्रीज करने का अधिकार नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

भूमिका

        भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में हाल के वर्षों में बड़े विधायी परिवर्तन हुए हैं। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) को प्रतिस्थापित करते हुए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita – BNSS) को लागू किया गया है। BNSS का उद्देश्य आपराधिक प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, त्वरित और नागरिक अधिकारों के अनुकूल बनाना है। इसी संदर्भ में बॉम्बे हाईकोर्ट ने BNSS की धारा 106 की व्याख्या करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि इस धारा के अंतर्गत जांच एजेंसी को बैंक खाता फ्रीज (Freeze) करने का कोई वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं है

      यह निर्णय न केवल जांच एजेंसियों की शक्तियों की सीमा तय करता है, बल्कि नागरिकों के संपत्ति अधिकार, व्यापारिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत आर्थिक स्वतंत्रता की भी रक्षा करता है।


मामले की पृष्ठभूमि

       मामले में याचिकाकर्ता के बैंक खाते को जांच एजेंसी द्वारा फ्रीज कर दिया गया था। जांच एजेंसी ने BNSS की धारा 106 का सहारा लेते हुए यह दावा किया कि जांच के दौरान किसी भी “संपत्ति” या “वस्तु” को सुरक्षित रखने के लिए खाता फ्रीज करना आवश्यक है।

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में यह तर्क दिया कि—

  1. BNSS की धारा 106 केवल वस्तुओं (property/articles) की जब्ती या संरक्षण से संबंधित है,
  2. इसमें बैंक खाता फ्रीज करने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है,
  3. बिना विधिक प्राधिकार के बैंक खाता फ्रीज करना संविधान के अनुच्छेद 300A (संपत्ति का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन है।

BNSS की धारा 106: कानूनी संरचना

      BNSS की धारा 106 को यदि साधारण भाषा में समझा जाए तो इसका उद्देश्य है—

  • अपराध से संबंधित वस्तुओं या संपत्ति को
  • जांच या ट्रायल के दौरान
  • सुरक्षित रखना या जब्त करना,
    ताकि साक्ष्य नष्ट न हों या अवैध लाभ का उपयोग न किया जा सके।

परंतु धारा 106 में कहीं भी “बैंक खाता फ्रीज” करने का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। यह बात इस फैसले की केंद्रीय धुरी है।


बॉम्बे हाईकोर्ट का विश्लेषण

1. बैंक खाता ‘वस्तु’ नहीं है

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि—

  • बैंक खाता एक वित्तीय अधिकार (financial right) है,
  • यह कोई भौतिक वस्तु (physical property) नहीं है जिसे धारा 106 के अंतर्गत जब्त किया जा सके।

       अदालत ने कहा कि यदि विधायिका का उद्देश्य जांच एजेंसियों को बैंक खाते फ्रीज करने का अधिकार देना होता, तो वह इसे स्पष्ट शब्दों में कानून में शामिल करती


2. CrPC और BNSS की तुलना

       अदालत ने पुराने CrPC के प्रावधानों और नए BNSS की तुलना करते हुए कहा—

  • CrPC की धारा 102 के अंतर्गत भी बैंक खाता फ्रीज करने को लेकर न्यायिक विवाद रहे हैं,
  • सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्टों ने समय-समय पर यह कहा कि बैंक खाता फ्रीज करना एक गंभीर कदम है और इसके लिए स्पष्ट वैधानिक अधिकार आवश्यक है।

       BNSS में जब विधायिका ने नए सिरे से कानून बनाया, तब भी उसने बैंक खाता फ्रीज करने का स्पष्ट अधिकार नहीं दिया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जांच एजेंसी की शक्तियों को सीमित रखा गया है।


3. संविधानिक अधिकारों की रक्षा

      बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस फैसले में संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेदों का उल्लेख किया—

  • अनुच्छेद 300A: किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से केवल विधि द्वारा ही वंचित किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में आर्थिक स्वतंत्रता भी निहित है।

      बिना किसी स्पष्ट कानूनी प्रावधान के बैंक खाता फ्रीज करना व्यक्ति की रोजमर्रा की जिंदगी, व्यापार, वेतन, इलाज और पारिवारिक दायित्वों पर गंभीर प्रभाव डालता है।


4. “जांच की सुविधा” के नाम पर अधिकारों का हनन नहीं

अदालत ने कहा कि—

“जांच एजेंसी की सुविधा या आशंका मात्र के आधार पर नागरिकों के मौलिक और वैधानिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।”

यदि एजेंसी को लगता है कि धन अपराध की आय (proceeds of crime) है, तो—

  • उसे संबंधित विशेष कानूनों (जैसे PMLA, Companies Act, Income Tax Act आदि) के तहत
  • सक्षम न्यायालय या प्राधिकरण से अनुमति लेनी होगी।

फैसले का निष्कर्ष

बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा—

  • BNSS की धारा 106 के अंतर्गत जांच एजेंसी को बैंक खाता फ्रीज करने का अधिकार नहीं है,
  • बिना वैधानिक प्रावधान के किया गया खाता फ्रीज अवैध और मनमाना है,
  • ऐसे मामलों में प्रभावित व्यक्ति हाईकोर्ट में राहत पाने का हकदार है।

अदालत ने संबंधित बैंक खाते को डी-फ्रीज (Unfreeze) करने का निर्देश दिया।


फैसले का व्यापक प्रभाव

1. जांच एजेंसियों की सीमाएं तय

यह फैसला जांच एजेंसियों को स्पष्ट संदेश देता है कि—

  • वे कानून की सीमाओं में रहकर ही कार्य करें,
  • “व्यापक जांच शक्तियों” की आड़ में मनमानी नहीं की जा सकती।

2. नागरिकों और व्यापारियों के लिए राहत

अक्सर देखा गया है कि—

  • जांच के शुरुआती चरण में ही बैंक खाते फ्रीज कर दिए जाते हैं,
  • जिससे व्यापार ठप हो जाता है और निर्दोष व्यक्ति भी गंभीर आर्थिक संकट में आ जाता है।

यह निर्णय ऐसे सभी नागरिकों के लिए सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करेगा।


3. भविष्य की विधायी दिशा

यह फैसला विधायिका के लिए भी एक संकेत है कि—

  • यदि भविष्य में बैंक खाता फ्रीज करने जैसी शक्तियां देना आवश्यक समझा जाए,
  • तो उसे स्पष्ट, संतुलित और न्यायिक नियंत्रण के साथ कानून में शामिल किया जाना चाहिए।

निष्कर्षात्मक टिप्पणी

       बॉम्बे हाईकोर्ट का यह निर्णय BNSS की व्याख्या में एक मील का पत्थर है। यह न केवल जांच एजेंसियों की शक्तियों पर अंकुश लगाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कानून का उद्देश्य अपराध नियंत्रण हो, न कि नागरिक अधिकारों का दमन

       इस फैसले ने एक बार फिर यह सिद्ध किया है कि भारतीय न्यायपालिका संविधान की आत्मा—न्याय, स्वतंत्रता और विधि के शासन—की प्रहरी है।