IndianLawNotes.com

Ritesh Khatri v. Shyam Sundar Khatri, 2025:  — राजस्थान हाईकोर्ट

Ritesh Khatri v. Shyam Sundar Khatri, 2025:  — राजस्थान हाईकोर्ट का विस्तृत विश्लेषण


परिचय

       परिवारिक संपत्ति के विवाद भारत में अत्यधिक सामान्य हैं, विशेषकर तब जब वयस्क या विवाहित संतान अपने माता-पिता के घर या संपत्ति में रहने का दावा अधिकार के रूप में करने लगती है। यह भ्रम प्रचलित सोच से भी उत्पन्न होता है कि “बेटे का घर पर अधिकार होता है” या “विवाहित संतान को पिता की संपत्ति से निकाला नहीं जा सकता।” किंतु विधि का वास्तविक सिद्धांत इससे बिल्कुल भिन्न है।

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण फैसले Ritesh Khatri v. Shyam Sundar Khatri (2025:RJ-JP:42107) में यह स्पष्ट कर दिया है कि:

“वयस्क और विवाहित संतान अपने पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति में बिना उसकी इच्छा, अनुमति या सहमति के रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं रखती।’’

यह निर्णय न केवल संपत्ति अधिकारों को लेकर प्रचलित गलत धारणाओं को समाप्त करता है, बल्कि वृद्ध माता-पिता के संरक्षण और उनकी संपत्ति के अधिकार को भी दृढ़ता से स्थापित करता है।

इस लेख में हम इस फैसले की तथ्यात्मक पृष्ठभूमि, कानूनी मुद्दे, हाईकोर्ट की तर्कशृंखला, प्रासंगिक कानून, सुप्रीम कोर्ट के आधार, और इस मामले के सामाजिक व विधिक प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे।


मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)

मामले में याचिकाकर्ता पिता – श्याम सुंदर खत्री थे, जिन्होंने अपने वयस्क विवाहित पुत्र रीतेश खत्री के विरुद्ध वह घर खाली कराने की मांग की, जो उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति थी।
पिता ने अदालत से यह कहा कि:

  • पुत्र और बहू दोनों ही वर्षों से उनके साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे,
  • घरेलू कलह बढ़ा रहे थे,
  • पिता–माता पर मानसिक और आर्थिक दबाव बना रहे थे,
  • और जब पिता ने अपनी संपत्ति के उपयोग और निवास पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया, पुत्र ने “अधिकार” होने का गलत दावा कर दिया।

पिता ने कहा कि वह घर पूरी तरह उनकी स्वयं की कमाई से खरीदा गया था और उनका पुत्र किसी भी प्रकार से सह-स्वामी या सह-उत्तराधिकारी नहीं है।

ट्रायल कोर्ट ने पिता के पक्ष में निर्णय दिया। पुत्र ने यह आदेश चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की।


मुख्य कानूनी प्रश्न (Key Legal Issue)

क्या कोई वयस्क / विवाहित पुत्र अपने पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति में रहने का कानूनी अधिकार रखता है?

राजस्थान हाईकोर्ट ने इस प्रश्न का उत्तर अत्यंत स्पष्ट शब्दों में दिया:

“नहीं। बिना पिता की अनुमति—कानून किसी भी वयस्क या विवाहित संतान को उसके पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति में रहने का अधिकार नहीं देता।”


स्वयं अर्जित संपत्ति और वयस्क संतान के अधिकार — कानूनी स्थिति

1. स्वयं अर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property)

यदि कोई संपत्ति—

  • पिता की नौकरी,
  • व्यवसाय,
  • व्यापारिक लाभ,
  • व्यक्तिगत निवेश,
  • या अन्य व्यक्तिगत स्रोतों से खरीदी गई है,

तो वह स्वयं अर्जित संपत्ति है।

यहां पिता—

  • पूर्ण मालिक हैं
  • संपत्ति का उपयोग–नियमन (possession & enjoyment) उनकी पूर्ण इच्छा पर निर्भर
  • वे चाहे तो किसी को भी प्रवेश की अनुमति दें
  • चाहे तो किसी को भी रहने से मना कर सकते हैं

2. वयस्क संतान का अधिकार नहीं

भारत में कोई ऐसा कानून नहीं है जो यह कहता हो कि:

  • विवाहित पुत्र,
  • विवाहित पुत्री,
  • या उनके जीवनसाथी (बहू/जमाई)

को पिता की संपत्ति में रहने का जन्मसिद्ध अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है:

“Adult children cannot claim a right of residence in the self-acquired property of their parents.”


हाईकोर्ट का विस्तृत विश्लेषण

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में निम्न बिंदुओं पर सबसे अधिक जोर दिया:


1. पिता के घर पर “co-owner” होने का कोई आधार नहीं

कोर्ट ने पाया कि:

  • न तो पुत्र ने संपत्ति खरीदने में कोई योगदान दिया
  • न वह Title या Ownership का हिस्सा था
  • न कोई सह-निवेश या संयुक्त अधिग्रहण का रिकॉर्ड था

इसलिए पुत्र का दावा निराधार था।


2. वयस्क और विवाहित होना—स्वतंत्रता का संकेत है

अदालत ने कहा:

“एक वयस्क और विवाहित व्यक्ति को कानून स्वतंत्र मानता है। वह माता-पिता पर निर्भर रहने का दावा अधिकार के रूप में नहीं कर सकता।”

विवाह के बाद पति–पत्नी एक स्वतंत्र इकाई बन जाते हैं और:

  • निवास
  • जीवन
  • आजीविका

की जिम्मेदारी स्वयं वहन करनी होती है।


3. सहमति (Consent) ही एकमात्र आधार है

यदि पिता अनुमति देते हैं, तो पुत्र घर में रह सकता है।
लेकिन—

  • अनुमति वापस ली जाए,
  • या पिता प्रवेश रोक दें,

तो संतान के पास कोई कानूनी उपाय नहीं रहता।


4. घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में भी पुत्र को सुरक्षा नहीं

बहू को तो DV Act में Shared Household का अधिकार मिल सकता है, पर:

  • पुत्र
  • जमाई
  • या अन्य रिश्तेदार

को DV Act में कोई अधिकार नहीं है।


5. पिता का शांतिपूर्ण जीवन और गरिमा सर्वोपरि

अदालत ने कहा कि किसी भी वृद्ध माता-पिता को अपनी खुद की संपत्ति में—

  • भय
  • दबाव
  • उत्पीड़न
  • या मानसिक तनाव

में रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।


6. अदालत ने अपील खारिज की

पुत्र की अपील को “कानून का दुरुपयोग” मानते हुए पूरी तरह खारिज किया गया और पिता के अधिकार को पुष्टि दी गई।


सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसलों का उल्लेख

इस मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों का हवाला दिया, जिनमें प्रमुख हैं—

1. S.R. Batra v. Taruna Batra (2007)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

  • Shared household का अधिकार केवल पति की संपत्ति में
  • माता-पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति पर न पुत्र का अधिकार, न बहू का

2. Adil v. Union of India (SC)

वयस्क पुत्र का निवास अधिकार केवल अनुमति पर निर्भर।

3. Prabha Tyagi v. Kamlesh Devi

Shared household की परिभाषा सीमित है—संपत्ति मालिक की सहमति महत्त्वपूर्ण है।

हाईकोर्ट ने इन्हीं संतुलित सिद्धांतों को अपना आधार बनाया।


यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है? (Importance of the Judgment)

1. वृद्ध माता-पिता को सुरक्षा

भारत में कई वृद्ध माता–पिता अपने ही घर में परेशानियों से गुजरते हैं। यह निर्णय उन्हें कानूनी ताकत प्रदान करता है।

2. पारिवारिक संपत्ति विवादों पर स्पष्टता

यह निर्णय दो स्पष्ट नियम स्थापित करता है:

  • स्वयं अर्जित संपत्ति में संतान अधिकार नहीं जता सकती
  • संतान को यदि रहना है तो अनुमति जरूरी है

3. Domestic Violence Act का गलत उपयोग रोकने में सहायक

बहू द्वारा घर को “shared household” बताकर मुकदमा करने में भी न्यायालय यह देखेगा कि संपत्ति किसकी है।

4. सामाजिक भ्रम दूर हुआ

यह गलत धारणा समाप्त होती है कि “बेटे को निकाल नहीं सकते।”
कानून स्पष्ट है:
“Owner decides who stays.”


स्वयं अर्जित संपत्ति में संतान अथवा बहू कब रह सकती है?

1. अगर पिता स्वयं अनुमति दें

सहमति मौजूद हो तो संतान रह सकती है।

2. यदि संपत्ति पैतृक साबित हो

पर यह साबित करना अत्यंत कठिन होता है।

3. यदि पिता ने Gift Deed/Will से अधिकार दिया हो

वरना—कानूनी रूप से कोई हक नहीं है।


व्यावहारिक प्रभाव (Practical Impact)

A. माता-पिता क्या कर सकते हैं?

  • अपनी संपत्ति पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं
  • घर से बाहर निकलने का निर्देश दे सकते हैं
  • पुलिस/SDO/Collector को शिकायत कर सकते हैं
  • Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act के तहत संतान को बेदखल कर सकते हैं

B. संतान क्या नहीं कर सकती?

  • घर पर कब्जा
  • अधिकार का दावा
  • stay order की मांग
  • Domestic Violence Act का दुरुपयोग

कानूनी सिद्धांत की पुनः पुष्टि

इस निर्णय ने एक बार फिर यह सिद्धांत स्थापित कर दिया है कि:

“माता-पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति पर किसी भी संतान—विवाहित या अविवाहित—का कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है।”

अधिकार तभी है:

  • पिता की मृत्यु के बाद
  • और तभी जब वसीयत न हो

जीवनकाल में पिता की इच्छा ही सर्वोच्च है।


फैसले का सामाजिक संदेश

1. पारिवारिक सम्मान और मर्यादा

माता-पिता का सम्मान कानूनी एवं नैतिक दोनों दृष्टि से अनिवार्य है।

2. स्वतंत्र जीवन की अपेक्षा

विवाहित संतानों को स्वतंत्र रूप से जीवनयापन करना चाहिए—यह कानून का भी संदेश है।

3. घर परिवार को विवाद मुक्त रखना

ऐसे निर्णय विवादों को रोकेगा और कानून के दुरुपयोग को कम करेगा।


निष्कर्ष

Ritesh Khatri v. Shyam Sundar Khatri, 2025:RJ-JP:42107 का निर्णय भारतीय संपत्ति कानून का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
राजस्थान हाईकोर्ट ने बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में कहा कि—

  • पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति पर
  • किसी भी वयस्क या विवाहित संतान का
  • रहने का न तो मौलिक, न वैधानिक, और न ही जन्मसिद्ध अधिकार है।

यह अधिकार केवल पिता की इच्छा, अनुमति, और सहमति पर निर्भर करता है।

इस निर्णय ने माता-पिता के सम्मान और उनके जीवन की गरिमा की रक्षा करते हुए संपत्ति कानून में एक बार फिर मजबूत और स्पष्ट सिद्धांत स्थापित किया है।