LAW SIMPLIFIED – भारत में Lawyer, Advocate, Barrister और Solicitor में अंतर
भूमिका (Introduction)
कानूनी व्यवसाय किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र की न्यायिक व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। भारत में कानून संविधान पर आधारित है और न्याय का उद्देश्य केवल अपराधों को दंडित करना नहीं, बल्कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना और समाज में विधि-व्यवस्था बनाए रखना भी है।
कानूनी पेशे में कार्य करने वाले व्यक्ति — जैसे Lawyer (वकील), Advocate (अधिवक्ता), Barrister (बारिस्टर) और Solicitor (सॉलिसिटर) — सभी कानून से जुड़े होते हैं, लेकिन इनके अधिकार, कार्यक्षेत्र और पहचान में अंतर है। आम जनता इन शब्दों को अक्सर एक समान मान लेती है, जबकि भारतीय कानून के अनुसार इनकी स्थिति भिन्न है।
यह लेख इन चारों शब्दों का भारतीय संदर्भ में विस्तृत विश्लेषण करता है और बताता है कि इनके बीच क्या मुख्य अंतर हैं, विशेष रूप से Advocates Act, 1961 और Bar Council of India के प्रावधानों के संदर्भ में।
I. भारत में कानूनी पेशे का परिचय (Overview of Legal Profession in India)
भारत में एक एकीकृत कानूनी व्यवस्था (Unified Legal System) है। इसका अर्थ यह है कि भारत में केवल एक श्रेणी के विधिक पेशेवर को मान्यता प्राप्त है — और वह है Advocate (अधिवक्ता)।
इस व्यवस्था को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है — Advocates Act, 1961, जिसके अंतर्गत निम्नलिखित विषयों का प्रावधान किया गया है:
- अधिवक्ताओं के नामांकन (Enrollment) की प्रक्रिया,
- राज्य और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अधिकार एवं कर्तव्य,
- अधिवक्ताओं का अनुशासनात्मक नियंत्रण (Disciplinary Control), और
- अधिवक्ताओं को देश की किसी भी अदालत में वकालत करने का अधिकार।
इस प्रकार, जबकि इंग्लैंड या अन्य देशों में वकीलों की अलग-अलग श्रेणियाँ होती हैं (जैसे Barrister और Solicitor), भारत में केवल “Advocate” को ही मान्यता प्राप्त है।
II. LAWYER (वकील)
Lawyer शब्द का प्रयोग सामान्य रूप से किसी भी व्यक्ति के लिए किया जाता है जिसने कानून (Law) की डिग्री — अर्थात् LLB (Bachelor of Laws) — प्राप्त की हो।
🔹 योग्यता:
- किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से LLB की डिग्री प्राप्त करना।
🔹 कानूनी स्थिति:
- केवल LLB की डिग्री होना “Lawyer” कहलाने के लिए पर्याप्त है।
- लेकिन यदि वह व्यक्ति Bar Council में पंजीकृत नहीं है, तो उसे अदालत में वकालत (practice) करने का अधिकार नहीं होता।
🔹 भूमिका:
- ऐसा व्यक्ति कानूनी परामर्श दे सकता है, ड्राफ्टिंग या दस्तावेज़ तैयार कर सकता है, लेकिन अदालत में पेश नहीं हो सकता।
📘 उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति LLB पूरा करने के बाद वकालत परीक्षा पास नहीं करता या बार काउंसिल में नामांकन नहीं करवाता, तो वह केवल “Lawyer” कहलाता है, “Advocate” नहीं।
III. ADVOCATE (अधिवक्ता)
Advocate वह व्यक्ति होता है जो:
- कानून की डिग्री (LLB) प्राप्त कर चुका हो,
- State Bar Council में पंजीकृत (Enrolled) हो, और
- Bar Council of India द्वारा आयोजित All India Bar Examination (AIBE) उत्तीर्ण कर चुका हो।
🔹 कानूनी अधिकार:
- अधिवक्ता को भारत की किसी भी अदालत — चाहे वह निचली अदालत हो, उच्च न्यायालय हो या सर्वोच्च न्यायालय — में पेश होने और वकालत करने का अधिकार होता है।
- यह अधिकार Advocates Act, 1961 की धारा 30 द्वारा प्रदान किया गया है।
🔹 मुख्य कर्तव्य:
- अपने मुवक्किल (client) के हितों की रक्षा करना,
- अदालत में न्याय की सहायता करना,
- पेशेवर आचार संहिता (Professional Ethics) का पालन करना।
📘 निष्कर्ष:
भारत में “Lawyer” और “Advocate” में यही मुख्य अंतर है कि Lawyer केवल डिग्रीधारी होता है, जबकि Advocate न्यायालय में कार्य करने के लिए अधिकृत होता है।
IV. BARRISTER (बारिस्टर)
Barrister शब्द की उत्पत्ति ब्रिटिश कानूनी प्रणाली से हुई है।
यह एक यूके-आधारित विधिक उपाधि (UK-based Legal Title) है, जो उस व्यक्ति को दी जाती है जिसने इंग्लैंड या वेल्स की किसी Inn of Court से प्रशिक्षण प्राप्त किया हो और Bar Examination पास किया हो।
🔹 भारत में स्थिति:
- भारत में Barrister शब्द कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है।
- स्वतंत्रता से पूर्व, जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था, तब कई भारतीय वकील इंग्लैंड जाकर “Barrister-at-Law” बनते थे।
- जैसे — महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू आदि प्रसिद्ध “Barristers” थे।
🔹 वर्तमान में:
- आज भारत में Barrister के लिए कोई विशेष मान्यता या अलग पेशेवर दर्जा नहीं है।
- ऐसे व्यक्ति यदि भारत में वकालत करना चाहते हैं, तो उन्हें भी Advocates Act, 1961 के तहत बार काउंसिल में पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है।
📘 संक्षेप में:
Barrister एक ब्रिटिश परंपरा से जुड़ा पद है, जबकि भारत में यह केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है।
V. SOLICITOR (सॉलिसिटर)
Solicitor मुख्य रूप से वह विधिक पेशेवर होता है जो अदालत में पेश होने के बजाय कानूनी दस्तावेज़ तैयार करने, अनुबंधों (Contracts) को ड्राफ्ट करने, और कॉर्पोरेट कानूनी कार्यों से संबंधित कार्य करता है।
🔹 कार्य:
- क्लाइंट को कानूनी सलाह देना,
- अनुबंध, वसीयत, एग्रीमेंट और दस्तावेज़ तैयार करना,
- कंपनी कानून, संपत्ति विवाद और व्यापारिक समझौते संभालना।
🔹 भारत में स्थिति:
- भारत में “Solicitor” की कोई व्यापक वैधानिक मान्यता नहीं है।
- केवल मुंबई (Bombay High Court jurisdiction) में Solicitor प्रणाली सीमित रूप से प्रचलित है, जहाँ Bombay Incorporated Law Society इस पद की परीक्षा और पंजीकरण कराती है।
📘 अर्थात:
Solicitor भारत में केवल कुछ शहरों (मुख्यतः मुंबई) तक सीमित हैं और अदालत में पेश नहीं होते।
VI. मुख्य अंतर सारणी (Key Differences Table)
| क्रमांक | श्रेणी | योग्यता | मान्यता | कार्यक्षेत्र | स्थिति (भारत में) |
|---|---|---|---|---|---|
| 1 | Lawyer (वकील) | LLB डिग्री | बार काउंसिल में पंजीकृत नहीं | कानूनी सलाह, ड्राफ्टिंग | अदालत में वकालत नहीं कर सकता |
| 2 | Advocate (अधिवक्ता) | LLB + AIBE + पंजीकरण | राज्य बार काउंसिल | किसी भी अदालत में वकालत | पूर्ण मान्यता प्राप्त |
| 3 | Barrister (बारिस्टर) | इंग्लैंड में कानूनी प्रशिक्षण | यूके में मान्यता प्राप्त | मुकदमेबाज़ी, अदालत में पेशी | भारत में मान्यता नहीं |
| 4 | Solicitor (सॉलिसिटर) | लॉ डिग्री + प्रैक्टिस अनुभव | सीमित (मुंबई में) | कानूनी दस्तावेज़, कॉर्पोरेट सलाह | सीमित मान्यता |
VII. निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय कानूनी प्रणाली में एकीकृत पेशेवर ढांचा (Unified Legal Profession) अपनाया गया है, जिसमें केवल “Advocate” को अदालत में पेश होने और न्यायिक प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार प्राप्त है।
- Lawyer केवल डिग्रीधारी व्यक्ति होता है,
- Advocate वही व्यक्ति है जो बार काउंसिल में पंजीकृत होकर अदालत में वकालत कर सकता है,
- Barrister केवल ब्रिटिश कानून प्रणाली की ऐतिहासिक उपाधि है, और
- Solicitor दस्तावेज़ी या परामर्श कार्यों में विशेषज्ञ होता है, जिसका भारत में सीमित अस्तित्व है।
इस प्रकार, भारत में Advocate का दर्जा सर्वोच्च माना जाता है क्योंकि वही व्यक्ति न्यायालय में अपने मुवक्किल की ओर से उपस्थित होकर न्याय की रक्षा कर सकता है।