पॉक्सो अपराध: जघन्य लेकिन अत्यधिक क्रूरता रहित – मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा मौत की सजा कम कर उम्रकैद में बदली गई
प्रस्तावना
भारत में बच्चों के साथ यौन अपराधों (POCSO Offences) को सबसे गंभीर अपराधों की श्रेणी में रखा गया है। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO Act, 2012) का उद्देश्य बच्चों को यौन उत्पीड़न, शोषण और बलात्कार जैसे अपराधों से सुरक्षित करना है। इन अपराधों में दोषियों को कठोर से कठोर सजा दी जाती है, और कई मामलों में अदालतें मृत्युदंड तक सुनाती हैं।
हाल ही में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक अत्यंत संवेदनशील और गंभीर मामले में, जहाँ एक 20 वर्षीय युवक ने चार साल की बच्ची से बलात्कार किया था, निचली अदालत द्वारा दी गई मृत्युदंड की सजा को उम्रकैद में परिवर्तित कर दिया। यह फैसला 19 जून 2025 को सुनाया गया।
अपराध का विवरण
अभियोजन पक्ष (Prosecution) के अनुसार, घटना इस प्रकार हुई –
- दोषी, जो अनुसूचित जनजाति से संबंधित था और उस समय 20 वर्ष का था, शिकायतकर्ता की झोपड़ी में गया और सोने के लिए चारपाई मांगी।
- रात में उसने पास के एक घर का दरवाजा खोला, जहाँ चार साल तीन महीने की बच्ची अपने माता-पिता के साथ सो रही थी।
- उसने बच्ची का अपहरण किया और उसके साथ बलात्कार किया।
- बलात्कार के बाद, आरोपी ने बच्ची का गला घोंटने की कोशिश की और उसे मरा हुआ समझकर आम के बाग में फेंक दिया।
- बच्ची गंभीर अवस्था में मिली और स्थायी रूप से विकलांग हो गई।
यह अपराध अत्यंत जघन्य था और समाज को झकझोर देने वाला था।
ट्रायल कोर्ट का फैसला
निचली अदालत (Special POCSO Court/Trial Court) ने मामले की सुनवाई करते हुए निम्नलिखित धाराओं के तहत आरोपी को दोषी पाया –
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएँ –
- धारा 363 (अपहरण)
- धारा 450 (गंभीर अपराध हेतु घर में घुसपैठ)
- धारा 376(ए) और 376 एबी (12 वर्ष से कम आयु की बच्ची से बलात्कार)
- धारा 307 (हत्या का प्रयास)
- धारा 201 (सबूत मिटाने का प्रयास)
- पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act, 2012) की धाराएँ –
- धारा 5 और 6 (गंभीर यौन अपराधों के लिए विशेष प्रावधान)
अदालत ने कहा कि इस अपराध ने पीड़िता को जीवनभर के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से अपंग बना दिया है। इसलिए, निचली अदालत ने आरोपी को मृत्युदंड (Death Penalty) सुनाया।
उच्च न्यायालय की सुनवाई और फैसला
जब मामला अपील के रूप में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय पहुँचा, तो पीठ ने सभी तथ्यों और साक्ष्यों पर विचार किया।
उच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ
- अदालत ने माना कि आरोपी का कृत्य अत्यंत गंभीर और जघन्य है।
- पीड़िता को स्थायी विकलांगता का सामना करना पड़ा है, जो उसके पूरे जीवन को प्रभावित करेगा।
- हालांकि, अदालत ने यह भी देखा कि यह अपराध अत्यधिक क्रूरता (Excessive Brutality) के साथ नहीं किया गया था।
- आरोपी की उम्र (20 वर्ष), सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, और अपराध के पीछे की मानसिकता को भी ध्यान में रखा गया।
फैसला
- अदालत ने मृत्युदंड की सजा को उम्रकैद (Life Imprisonment) में बदल दिया।
- अदालत ने कहा कि यह मामला “दुर्लभतम में दुर्लभ (Rarest of the Rare)” की श्रेणी में नहीं आता, जो मृत्युदंड देने का आधार होता है।
- हालांकि, अपराध की गंभीरता को देखते हुए आरोपी को कठोरतम उम्रकैद दी गई।
कानूनी पहलू
1. दुर्लभतम में दुर्लभ (Rarest of the Rare Doctrine)
भारत में मृत्युदंड केवल उन्हीं मामलों में दिया जाता है जो “दुर्लभतम में दुर्लभ” की श्रेणी में आते हैं। यह सिद्धांत बचना सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980) मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित किया गया था।
2. पॉक्सो अधिनियम का उद्देश्य
- बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षा देना।
- पीड़िता की पहचान की गोपनीयता बनाए रखना।
- त्वरित सुनवाई और कठोर दंड का प्रावधान।
3. संविधान का दृष्टिकोण
- अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार मृत्युदंड के मामलों में भी न्यायालय द्वारा संतुलित किया जाता है।
- सजा का उद्देश्य केवल प्रतिशोध (Retribution) नहीं बल्कि सुधार और निवारण (Reformation & Deterrence) भी है।
सामाजिक प्रभाव
- इस घटना ने समाज को गहराई से झकझोरा। चार साल की बच्ची के साथ हुई यह निर्मम घटना लोगों की संवेदनाओं को उद्वेलित करती है।
- ऐसे मामलों में न्यायपालिका के फैसले समाज को यह संदेश देते हैं कि अपराधी सजा से नहीं बच सकता।
- वहीं, मृत्युदंड और उम्रकैद के बीच संतुलन बनाने का कार्य अदालतों द्वारा बड़े विवेक से किया जाता है।
आलोचना और समर्थन
आलोचना
- कई लोगों का मानना है कि ऐसे अपराधों में मृत्युदंड ही उचित दंड है, क्योंकि यह न केवल पीड़िता बल्कि पूरे समाज के लिए भयावह है।
- मृत्युदंड से संभावित अपराधियों में भय उत्पन्न होता है।
समर्थन
- मृत्युदंड को उम्रकैद में बदलने का समर्थन करते हुए कहा जाता है कि –
- मानवाधिकारों की रक्षा आवश्यक है।
- आरोपी की उम्र और परिस्थिति को देखते हुए सुधार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
- संविधान और न्यायपालिका का सिद्धांत है कि मृत्युदंड केवल अपवाद (exception) होना चाहिए।
निष्कर्ष
यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली की उस संतुलित सोच को दर्शाता है, जहाँ एक ओर अदालत अपराध की गंभीरता और पीड़िता के जीवनभर के दर्द को स्वीकार करती है, वहीं दूसरी ओर वह आरोपी के सुधार और न्यायिक सिद्धांतों का भी ध्यान रखती है।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का यह निर्णय बताता है कि –
- पॉक्सो अपराध अत्यंत जघन्य और समाज के लिए खतरा हैं।
- लेकिन मृत्युदंड केवल उन्हीं मामलों में दिया जाएगा जो दुर्लभतम में दुर्लभ हों।
- न्यायालय का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि न्याय के सिद्धांतों को संतुलित करना है।
इस फैसले से यह स्पष्ट संदेश जाता है कि कानून अपराधी को सजा देने में कभी नरमी नहीं बरतेगा, लेकिन सजा न्यायसंगत और संवैधानिक मानकों के अनुरूप होगी।
✍️ लेखक का विचार:
यह फैसला समाज और न्यायपालिका दोनों के लिए सीख है। बच्चों के साथ यौन अपराधों को रोकने के लिए कठोर दंड आवश्यक हैं, लेकिन साथ ही न्यायिक विवेक का इस्तेमाल करके यह तय करना भी जरूरी है कि कौन-सा मामला मृत्युदंड योग्य है और कौन-सा नहीं।