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🛑 “घृणा भाषण को सहन नहीं किया जा सकता”: सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख


🛑 “घृणा भाषण को सहन नहीं किया जा सकता”: सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख

(Vishal Tiwari बनाम भारत संघ, सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय)


🔍 भूमिका

भारत जैसे बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक देश में घृणा भाषण (Hate Speech) न केवल संवैधानिक मूल्यों के लिए खतरा है, बल्कि सामाजिक सद्भाव को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा कि “घृणा भाषण को किसी भी स्थिति में सहन नहीं किया जा सकता है”, और इसे “लोहे के हाथ से” रोकने की आवश्यकता है।


⚖️ मामले की पृष्ठभूमि – Vishal Tiwari v. Union of India

याचिकाकर्ता विशाल तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए उन घटनाओं पर चिंता व्यक्त की जिनमें देश में सांप्रदायिक नफरत को फैलाने की कोशिशें की गईं और घृणा फैलाने वाले भाषणों का उपयोग करके समाज में तनाव उत्पन्न किया गया।

उन्होंने मांग की कि ऐसे मामलों में त्वरित और कठोर कार्रवाई की जाए और भविष्य में इस प्रकार की गतिविधियों को रोकने हेतु दिशानिर्देश निर्धारित किए जाएं।


🧑‍⚖️ सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और टिप्पणियां

सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:

1. घृणा भाषण के प्रति शून्य सहिष्णुता की आवश्यकता

कोर्ट ने कहा कि “Hate speech can’t be tolerated at all”, यह स्वतंत्रता की सीमा का उल्लंघन करता है और अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत निषिद्ध श्रेणी में आता है।

2. “लोहे के हाथ” से निपटना होगा

सुप्रीम कोर्ट ने यह जोर देकर कहा कि यदि समय रहते इस पर अंकुश न लगाया गया तो देश की एकता और अखंडता को गहरा आघात पहुँच सकता है।

3. कानून प्रवर्तन एजेंसियों की भूमिका

कोर्ट ने पुलिस और अन्य एजेंसियों से कहा कि वे तटस्थ और निष्पक्ष रूप से कार्य करें, और किसी भी प्रकार के घृणा भाषण को राजनीतिक प्रभाव या दबाव के कारण नजरअंदाज न करें।


📚 कानूनी परिप्रेक्ष्य में घृणा भाषण

⚖️ घृणा भाषण बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) इस पर संविधान-सम्मत सीमाएं भी निर्धारित करता है, जैसे:

  • सार्वजनिक व्यवस्था
  • नैतिकता
  • राज्य की सुरक्षा
  • किसी समुदाय के विरुद्ध घृणा

घृणा भाषण इन प्रतिबंधों का उल्लंघन करता है और इसीलिए दंडनीय है।


🔎 पूर्ववर्ती मामलों में रुख

सुप्रीम कोर्ट पहले भी Pravasi Bhalai Sangathan v. Union of India (2014) और Amitabh Bachchan v. Union of India जैसे मामलों में कह चुका है कि:

  • Hate speech समाज में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा का बीज बो सकता है।
  • इसका प्रभाव लंबे समय तक समाज के कमजोर तबकों पर पड़ता है

🌐 वर्तमान परिप्रेक्ष्य में निर्णय का महत्व

  • इस निर्णय से यह स्पष्ट संदेश गया है कि कोई भी, चाहे वह नेता हो, धर्मगुरु हो या आम नागरिक – यदि वह समाज में नफरत फैलाता है तो उसे कानून का सामना करना पड़ेगा
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर फैलाए जा रहे hate content पर भी यह निर्णय लागू होता है।

निष्कर्ष

Vishal Tiwari बनाम भारत संघ मामला भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को और मजबूत करता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह स्पष्ट और कड़ा रुख यह दर्शाता है कि घृणा फैलाने वालों को अब कानून से बचने की छूट नहीं दी जाएगी।
इस फैसले से समाज को यह संदेश भी गया कि भारत का संविधान केवल स्वतंत्रता की बात नहीं करता, बल्कि उसकी गरिमा और सीमाओं की रक्षा करना भी उतना ही आवश्यक है।