🔷 औरंगजेब विवादः शिवसेना सांसद नरेश म्हस्के को बॉम्बे हाईकोर्ट का नोटिस — अबू आज़मी पर दर्ज कराई थी FIR
औरंगजेब से जुड़ी एक विवादास्पद टिप्पणी के मामले में अब कानूनी पेंच और गहराता जा रहा है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने शिवसेना (शिंदे गुट) के सांसद नरेश म्हस्के को नोटिस जारी किया है, जिसमें उनसे पूछा गया है कि उन्होंने समाजवादी पार्टी के नेता अबू आसिम आज़मी के खिलाफ दर्ज FIR को लेकर क्या स्पष्टीकरण देना है। यह मामला न केवल धार्मिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से संवेदनशील है, बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सांप्रदायिक सद्भाव और कानून के दायरे में राजनीतिक गतिविधियों की सीमा को लेकर भी महत्वपूर्ण बन चुका है।
🔶 मामले की पृष्ठभूमि:
इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब अबू आज़मी ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मुगल सम्राट औरंगजेब का ज़िक्र करते हुए कुछ टिप्पणियाँ कीं, जिन्हें शिवसेना (शिंदे गुट) ने “आपत्तिजनक” और “देशद्रोही प्रवृत्ति” का करार दिया। इसके बाद नरेश म्हस्के ने उनके खिलाफ FIR दर्ज कराई, जिसमें कहा गया कि अबू आज़मी की बातें समाज को भड़काने वाली हैं और इससे सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुँच सकता है।
🔶 बॉम्बे हाईकोर्ट की सुनवाई और नोटिस:
अबू आज़मी ने FIR को रद्द करने की मांग करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि:
- उन्होंने इतिहास से जुड़े तथ्यों पर बात की थी, ना कि किसी समुदाय या व्यक्ति को उकसाने की नीयत से।
- यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Article 19(1)(a)) के दायरे में आता है।
- FIR में कोई ठोस आधार या प्रथम दृष्टया अपराध की पुष्टि नहीं होती।
इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की पीठ ने नरेश म्हस्के सहित राज्य सरकार और संबंधित पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी कर उत्तर देने के लिए समय दिया है।
🔶 राजनीतिक पृष्ठभूमि और विवाद:
- औरंगजेब का नाम महाराष्ट्र की राजनीति में लगातार विवाद का विषय रहा है, खासकर छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत को लेकर।
- बीते समय में औरंगजेब के नाम पर पोस्टर, बयानबाजी और सोशल मीडिया पोस्ट के चलते कई स्थानों पर तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है।
- शिवसेना (शिंदे गुट) और भाजपा इसे “हिंदू अस्मिता” के खिलाफ प्रयास बताकर राजनीतिक मुद्दा बना रही हैं, वहीं अबू आज़मी जैसे नेता इसे इतिहास और तथ्यात्मक विमर्श बताते हैं।
🔶 कानूनी और संवैधानिक दृष्टिकोण:
यह मामला कई अहम संवैधानिक पहलुओं को छूता है:
- धारा 153A और 295A (धार्मिक भावनाएं भड़काना) के तहत मामला दर्ज हुआ है, लेकिन इन धाराओं के दुरुपयोग पर अतीत में कई बार सुप्रीम कोर्ट ने चेताया है।
- न्यायालय को यह देखना होगा कि क्या अबू आज़मी का वक्तव्य “सिर्फ ऐतिहासिक संदर्भ” में था या वह वास्तव में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाला था।
- यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि राजनीतिक प्रतिशोध में FIR दर्ज कराना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग तो नहीं है।
🔷 निष्कर्ष:
औरंगजेब को लेकर उठे विवाद ने एक बार फिर साबित किया है कि भारत में इतिहास, धर्म और राजनीति की रेखाएँ अक्सर आपस में उलझ जाती हैं।
बॉम्बे हाईकोर्ट का यह नोटिस इस पूरे मामले को एक कानूनी कसौटी पर कसने का अवसर देगा, जिससे यह तय किया जा सके कि क्या FIR वाकई में जरूरी थी या महज़ राजनीतिक दबाव और ध्रुवीकरण का औजार।
आने वाले दिनों में इस मामले की सुनवाई न केवल महाराष्ट्र की राजनीति, बल्कि देशव्यापी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम धार्मिक संवेदनशीलता की बहस को नई दिशा दे सकती है।