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📝 “जोखिम का हस्तांतरण (धारा 26) – विक्रय वस्तु अधिनियम, 1930 के अंतर्गत एक विस्तृत अध्ययन”

शीर्षक:
📝 “जोखिम का हस्तांतरण (धारा 26) – विक्रय वस्तु अधिनियम, 1930 के अंतर्गत एक विस्तृत अध्ययन”


🔹 प्रस्तावना

विक्रय वस्तु अधिनियम, 1930 (Sales of Goods Act, 1930) भारतीय व्यापार कानून का एक महत्वपूर्ण अधिनियम है, जो वस्तुओं की बिक्री से संबंधित अधिकारों और दायित्वों को नियंत्रित करता है। इस अधिनियम की धारा 26 एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह निर्धारित करती है कि वस्तु से संबंधित जोखिम (risk of loss or damage) कब और किस पर स्थानांतरित होता है — विक्रेता पर या खरीदार पर।


🔸 धारा 26 का मूल सिद्धांत

धारा 26 का मुख्य सिद्धांत यह है:

जोखिम उस व्यक्ति पर होता है, जिसके पास वस्तु का स्वामित्व होता है, जब तक कि अनुबंध में कुछ और तय न किया गया हो।”

अर्थात्, जैसे ही किसी वस्तु का स्वामित्व (Ownership/Property) खरीदार को स्थानांतरित हो जाता है, उसी क्षण से उससे संबंधित जोखिम (Risk) भी खरीदार पर आ जाता है, भले ही वस्तु की डिलीवरी बाद में हो।


🔹 धारा 26 का पाठ (Text of Section 26)

Unless otherwise agreed, the goods remain at the seller’s risk until the property therein is transferred to the buyer, but when the property therein is transferred to the buyer, the goods are at the buyer’s risk whether delivery has been made or not.”

(हिंदी में सारांश: जब तक अनुबंध में अलग से कुछ तय न हो, वस्तुओं का जोखिम विक्रेता के पास तब तक बना रहता है जब तक कि स्वामित्व खरीदार को स्थानांतरित न हो जाए; एक बार स्वामित्व स्थानांतरित हो जाने पर, डिलीवरी हुई हो या नहीं, जोखिम खरीदार पर होता है।)


🔸 धारा 26 के प्रमुख तत्व

  1. जोखिम और स्वामित्व साथ-साथ चलते हैं:
    • सामान्य नियम के अनुसार, जोखिम का हस्तांतरण स्वामित्व के हस्तांतरण के साथ ही होता है।
  2. अनुबंध के विपरीत प्रावधान की अनुमति:
    • यदि विक्रेता और खरीदार विशेष रूप से अनुबंध में यह तय कर लें कि जोखिम किसी विशेष स्थिति में ही स्थानांतरित होगा, तो वही मान्य होगा।
  3. डिलीवरी का समय महत्वहीन:
    • स्वामित्व स्थानांतरण के बाद वस्तु की डिलीवरी हुई या नहीं, यह जोखिम के स्थानांतरण को प्रभावित नहीं करता।

🔹 उदाहरण द्वारा समझाइए

उदाहरण 1:

A ने B को 10 टन गेहूं बेचा। अनुबंध के अनुसार, स्वामित्व तुरंत B को स्थानांतरित हो गया, लेकिन डिलीवरी तीन दिन बाद होनी थी। दूसरे दिन गोदाम में आग लग गई और गेहूं जल गया।

➡️ नतीजा: नुकसान B को उठाना पड़ेगा क्योंकि स्वामित्व उसके पास पहले ही स्थानांतरित हो चुका था, और इस कारण जोखिम भी।

उदाहरण 2:

यदि A और B ने अनुबंध में लिखा हो कि “वस्तु का जोखिम तभी खरीदार पर स्थानांतरित होगा जब वस्तु की डिलीवरी हो जाएगी”, तो आग लगने की स्थिति में नुकसान A को उठाना होगा।


🔸 न्यायिक दृष्टिकोण (Judicial Interpretation)

भारतीय न्यायालयों ने स्पष्ट किया है कि जहां अनुबंध मौन है (i.e., silence in contract), वहाँ धारा 26 के सामान्य सिद्धांत लागू होंगे। लेकिन यदि अनुबंध में स्पष्ट रूप से जोखिम से संबंधित कोई शर्त लिखी गई है, तो उसी के अनुसार कार्य होगा।


🔹 व्यावसायिक महत्व

  • व्यापारिक लेन-देन में यह धारा दोनों पक्षों को स्पष्टता प्रदान करती है।
  • यह विवाद की स्थिति में उत्तरदायित्व तय करने में मदद करती है।
  • बीमा (Insurance) से संबंधित निर्णयों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।

🔸 निष्कर्ष

धारा 26 विक्रय वस्तु अधिनियम का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो यह स्पष्ट करता है कि वस्तु के नुकसान या क्षति की स्थिति में किस पक्ष को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इसका सिद्धांत “Risk follows ownership” न केवल सैद्धांतिक रूप से बल्कि व्यावहारिक व्यापारिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत आवश्यक है। सभी विक्रेता और खरीदारों को अनुबंध करते समय इस प्रावधान का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना चाहिए, ताकि भविष्य में किसी विवाद या नुकसान की स्थिति से बचा जा सके।