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💼 धारा 138 NI Act | जब तक ऋण का अस्तित्व प्रमाणित न हो, सांविधिक अनुमान लागू नहीं होता: दिल्ली हाईकोर्ट ने ₹8.5 लाख चेक बाउंस केस में आरोपी को बरी करने का फैसला बरकरार रखा
लेख:
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 (Negotiable Instruments Act, 1881, Section 138) के तहत आपराधिक जिम्मेदारी तय करने के लिए आवश्यक सांविधिक अनुमान (Statutory Presumption) तभी लगाया जा सकता है जब ऋण (Debt) या देनदारी (Liability) का अस्तित्व न्यायालय के समक्ष पर्याप्त प्रमाणित किया जाए। कोर्ट ने ₹8.5 लाख के चेक बाउंस केस में ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को बरी करने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि शिकायतकर्ता आरोपी के खिलाफ ऋण या देनदारी साबित करने में विफल रहा।
मामले की पृष्ठभूमि:
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उससे ₹8.5 लाख उधार लिया था और बदले में एक चेक जारी किया। चेक बाउंस हो गया, जिसके बाद शिकायतकर्ता ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमा दायर किया।
ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के आधार पर कहा कि शिकायतकर्ता यह साबित करने में असमर्थ रहा कि आरोपी वास्तव में उससे ऋण लिया था या कोई वैध देनदारी थी। अतः आरोपी को बरी कर दिया गया। शिकायतकर्ता ने इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी।
दिल्ली हाईकोर्ट का निर्णय:
🔹 हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 138 के तहत सांविधिक अनुमान (Presumption under Section 139) तभी उठता है जब शिकायतकर्ता पहले यह दिखाने में सफल होता है कि चेक किसी ऋण या देनदारी की अदायगी के लिए दिया गया था।
🔹 यदि शिकायतकर्ता यह प्रथम दृष्टया साबित करने में विफल रहता है कि कोई ऋण या देनदारी थी, तो आरोपी के खिलाफ सांविधिक अनुमान लागू ही नहीं होता।
🔹 हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य कमजोर और परस्पर विरोधाभासी थे और ऋण के अस्तित्व का पर्याप्त प्रमाण नहीं दे सके।
🔹 इस प्रकार, आरोपी को बरी करने का ट्रायल कोर्ट का फैसला उचित था।
कानूनी तर्क और व्याख्या:
➡️ धारा 138 का उद्देश्य वित्तीय अनुशासन बनाए रखना है, ताकि लोग दिए गए चेक को सम्मानपूर्वक भुनाएं।
➡️ धारा 139 में कहा गया है कि जब कोई चेक प्रस्तुत किया जाता है, तो यह माना जाएगा कि वह चेक किसी ऋण या देनदारी के भुगतान के लिए जारी किया गया था।
➡️ लेकिन यह सांविधिक अनुमान तभी लगेगा जब शिकायतकर्ता यह साबित कर दे कि वास्तव में कोई ऋण या देनदारी थी — यानी ‘Legally Enforceable Debt’ का अस्तित्व हो।
➡️ यदि ऋण का अस्तित्व ही न्यायालय में सिद्ध नहीं होता, तो आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
मुख्य बिंदु:
✅ सांविधिक अनुमान तभी लगाया जाएगा जब शिकायतकर्ता प्रथम दृष्टया ऋण या देनदारी का प्रमाण दे।
✅ केवल चेक का जारी होना पर्याप्त नहीं है; ऋण या देनदारी का भी प्रमाण होना अनिवार्य है।
✅ यदि ऋण का अस्तित्व सिद्ध नहीं होता तो आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
✅ ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को बरी करने का फैसला दिल्ली हाईकोर्ट ने सही माना।
निष्कर्ष:
यह फैसला चेक बाउंस मामलों में आरोपी के अधिकारों की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि केवल चेक का प्रस्तुत होना ही आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त न माना जाए। ऋण या देनदारी के अस्तित्व का प्रमाण देना शिकायतकर्ता की जिम्मेदारी है और यह न्यायालय द्वारा गंभीरता से परीक्षण किया जाएगा। यह निर्णय चेक बाउंस कानून की व्याख्या को और अधिक संतुलित बनाता है।