शीर्षक:
🏦 अमान्य चेक का अनादर भारतीय दंड संहिता की धारा 138 के तहत दायित्व नहीं बनाता: इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय — इलाहाबाद बैंक के चेक 30-09-2021 के बाद अमान्य घोषित
लेख:
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि यदि कोई चेक अमान्य हो चुका है और उसका भुगतान बैंकों द्वारा रोक दिया गया है, तो उसके अनादर (dishonour) के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 138 (Negotiable Instruments Act, 1881) के तहत आपराधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती। अदालत ने कहा कि इलाहाबाद बैंक के चेक 30 सितंबर 2021 के बाद अमान्य घोषित हो चुके हैं और इस अवधि के बाद यदि ऐसे चेक का भुगतान न हो तो वह धारा 138 के तहत अभियोजन योग्य नहीं है।
मामले की पृष्ठभूमि:
विवाद का मुख्य मुद्दा यह था कि याची के द्वारा इलाहाबाद बैंक (जो अब इंडियन बैंक में विलीन हो चुका है) के एक चेक को 2022 में प्रस्तुत किया गया। बैंक ने भुगतान करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि 30-09-2021 के बाद इलाहाबाद बैंक के चेक अमान्य हैं। इसके बाद चेकधारक ने धारा 138 के तहत मुकदमा दायर कर दिया।
धारा 138 के तहत जब चेक का भुगतान बैंक द्वारा “insufficient funds” या “payment stopped” जैसे कारणों से रोका जाता है, तो चेक जारीकर्ता के खिलाफ आपराधिक दायित्व बनता है। लेकिन यहाँ मामला अलग था — चेक स्वयं बैंक द्वारा तकनीकी कारण से अमान्य घोषित हो चुका था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय:
🔹 कोर्ट ने कहा कि जब बैंक ने 30-09-2021 के बाद इलाहाबाद बैंक के सभी चेक अमान्य घोषित कर दिए थे, तो उसके बाद जारी कोई भी चेक वैध दस्तावेज नहीं रह जाता।
🔹 अतः ऐसे चेक के अनादर को धारा 138 के तहत अभियोजन के लिए आधार नहीं बनाया जा सकता।
🔹 धारा 138 में ‘validly drawn cheque’ की अवधारणा शामिल है — यानी वह चेक जो वैध रूप से बैंक द्वारा स्वीकार किया जाता हो।
🔹 जब बैंक ने पहले ही ग्राहकों को सूचित कर दिया था कि चेक 30-09-2021 के बाद अमान्य हो जाएंगे, तो चेकधारक को यह पता होना चाहिए था कि वह चेक वैध नहीं है।
कानूनी तर्क और व्याख्या:
➡️ धारा 138 का उद्देश्य जानबूझकर चेक का भुगतान न करने वाले दोषियों को दंडित करना है, ताकि व्यापार में विश्वसनीयता बनी रहे।
➡️ लेकिन जब स्वयं चेक वैध दस्तावेज नहीं है — यानी बैंक उसे स्वीकार ही नहीं कर रहा — तो वह धारा 138 के तहत “legally enforceable debt” के भुगतान का साधन नहीं माना जा सकता।
➡️ कोर्ट ने कहा कि धारा 138 तभी लागू होगी जब चेक वैध रूप से प्रस्तुत किया गया हो और बैंक द्वारा तकनीकी रूप से अस्वीकृत न किया गया हो।
मुख्य बिंदु:
✅ इलाहाबाद बैंक के सभी चेक 30-09-2021 के बाद अमान्य हो चुके हैं, क्योंकि बैंक का विलय इंडियन बैंक में हो गया था।
✅ ऐसा अमान्य चेक यदि बैंक में प्रस्तुत किया जाता है और उसका भुगतान रोक दिया जाता है तो उस पर धारा 138 के तहत मुकदमा नहीं चल सकता।
✅ धारा 138 का उद्देश्य केवल वैध चेक का भुगतान न करने पर दंडात्मक कार्रवाई करना है, न कि अमान्य दस्तावेजों पर।
निष्कर्ष:
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय बैंकिंग व्यवस्था में व्यावहारिक स्पष्टता लाने वाला है। यह फैसला बताता है कि धारा 138 का दायित्व केवल उन्हीं मामलों में लागू होगा, जहाँ चेक वैध रूप से जारी किया गया हो और बैंक द्वारा तकनीकी रूप से मान्य हो। यह निर्णय न केवल चेकधारकों को, बल्कि बैंक ग्राहकों और वकीलों के लिए भी मार्गदर्शक बनेगा।