🏛️ बिक्री विलेख पर स्टांप शुल्क निर्धारण में “विलेख निष्पादन की तिथि” का महत्व: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का मार्गदर्शक निर्णय
🔍 परिचय:
स्टांप शुल्क एक महत्वपूर्ण राजस्व स्रोत होता है जिसे राज्य सरकार संपत्ति के क्रय-विक्रय के समय वसूलती है। जब कोई संपत्ति बेची जाती है, तो उसका मूल्य निर्धारण और उस पर लागू स्टांप शुल्क का निर्धारण कब और किस मूल्य के आधार पर किया जाए—यह एक प्रमुख कानूनी प्रश्न रहा है। इसी संदर्भ में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि स्टांप शुल्क की गणना बिक्री विलेख (Sale Deed) के निष्पादन के समय की बाजार मूल्य (Market Value) के आधार पर की जाएगी, न कि एग्रीमेंट टू सेल (Agreement to Sell) के समय के मूल्य पर।
⚖️ मामले की पृष्ठभूमि:
- अक्सर यह देखा गया है कि संपत्ति के क्रय-विक्रय से पूर्व दोनों पक्षों के बीच एक एग्रीमेंट टू सेल (Agreement to Sell) तैयार किया जाता है, जिसमें उस समय की कीमत पर सहमति बनती है।
- किन्तु कई बार बिक्री विलेख के निष्पादन में वर्षों लग जाते हैं, जिसके दौरान संपत्ति का बाजार मूल्य बढ़ जाता है।
- इस परिस्थिति में प्रश्न यह उठता है कि स्टांप शुल्क एग्रीमेंट टू सेल के मूल्य पर लगेगा या बिक्री विलेख निष्पादन के समय के मूल्य पर?
🧑⚖️ उच्च न्यायालय का निर्णय:
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस विषय पर निर्णय देते हुए कहा कि:
“स्टांप शुल्क की गणना करते समय, प्रासंगिक मूल्य वह होगा जो बिक्री विलेख निष्पादन की तिथि पर संपत्ति का बाजार मूल्य है।”
- न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि Agreement to Sell मात्र एक वादा है, न कि संपत्ति का हस्तांतरण।
- जबकि Sale Deed संपत्ति का वैधानिक हस्तांतरण करती है और इसी समय उस पर स्टांप शुल्क देय होता है।
- इसीलिए Agreement to Sell की कीमत को स्टांप शुल्क निर्धारण में आधार नहीं बनाया जा सकता।
📚 प्रासंगिक कानूनी प्रावधान:
- भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 के अंतर्गत, संपत्ति के हस्तांतरण पर स्टांप शुल्क बाज़ार मूल्य पर देय होता है।
- “Market Value” का अर्थ है उस संपत्ति का मूल्य जो उसी क्षेत्र में तुलनीय संपत्ति की बिक्री पर प्राप्त हो सकता है।
- “Execution of Document” की तिथि को ही अंतिम मानते हुए शुल्क का निर्धारण किया जाता है।
📌 न्यायालय के इस निर्णय का प्रभाव:
- न्यायिक स्पष्टता: अब यह स्पष्ट हो गया है कि संपत्ति हस्तांतरण की प्रक्रिया में स्टांप शुल्क का निर्धारण बिक्री विलेख निष्पादन की तिथि पर आधारित होगा।
- विवादों में कमी: खरीदार और विक्रेता दोनों के बीच स्टांप शुल्क को लेकर उत्पन्न होने वाले विवादों में कमी आएगी।
- राजस्व की रक्षा: राज्य सरकार को वास्तविक बाजार मूल्य के अनुसार स्टांप शुल्क मिलेगा, जिससे राजस्व हानि रोकी जा सकेगी।
- विधिक प्रक्रिया में पारदर्शिता: दस्तावेजों की समय पर निष्पादन की आवश्यकता को बल मिलेगा।
📝 निष्कर्ष:
यह निर्णय स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि “Agreement to Sell” केवल एक अग्रिम समझौता है, न कि विधिक स्वामित्व हस्तांतरण का दस्तावेज। इसलिए स्टांप शुल्क का निर्धारण उस तिथि के बाजार मूल्य पर ही होगा जिस दिन “Sale Deed” निष्पादित की जाती है। यह निर्णय सम्पत्ति लेन-देन की प्रक्रिया को और अधिक न्यायसंगत, पारदर्शी और कानूनी दृष्टि से सुव्यवस्थित बनाता है।