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🏛️ “डिस्चार्ज नहीं, न्याय की रक्षा: सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख अभियोजन साक्ष्यों की अनदेखी पर”

🏛️ “डिस्चार्ज नहीं, न्याय की रक्षा: सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख अभियोजन साक्ष्यों की अनदेखी पर”

(State Vs Eluri Srinivasa Chakravarthi & Ors.)

“केवल प्रतिवादी की ओर से प्रस्तुत सामग्री के आधार पर आरोपी को दोषमुक्त नहीं किया जा सकता, जब अभियोजन की रिपोर्ट प्रथम दृष्टया अपराध का संकेत देती है।”
यह महत्वपूर्ण टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में State Vs Eluri Srinivasa Chakravarthi and Others केस में की, जिसमें निचली अदालत द्वारा अभियुक्तों को धारा 239 सीआरपीसी के तहत डिस्चार्ज (discharge) किए जाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया


⚖️ मामले की पृष्ठभूमि:

इस केस में ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को Section 239 CrPC (Discharge in warrant cases based on police report) के तहत अभियोजन साक्ष्यों पर विचार किए बिना केवल बचाव पक्ष द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर आरोप मुक्त कर दिया।

यह आदेश सत्र न्यायालय द्वारा पारित किया गया था जिसे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय पर गंभीर आपत्ति जताई।


🔍 सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:

सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

“Discharge के चरण पर न्यायालय को केवल चार्जशीट, केस डायरी, और अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों पर विचार करना होता है। बचाव पक्ष द्वारा लाए गए दस्तावेजों पर भरोसा करके आरोपमुक्त करना कानून का उल्लंघन है।”

Bench: न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी दी।


📜 धारा 239 CrPC की विधिक व्याख्या:

🔹 Section 239 CrPC (Discharge in warrant cases):

यदि मजिस्ट्रेट यह पाता है कि प्रथम दृष्टया (prima facie) कोई मामला नहीं बनता, तो वह आरोपी को discharge कर सकता है।
लेकिन:
यह निर्णय केवल अभियोजन द्वारा दिए गए साक्ष्यों और दस्तावेजों के आधार पर लिया जाना चाहिए, न कि बचाव पक्ष की ओर से पहले ही प्रस्तुत किए गए बचाव पर।


⚠️ सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी:

“Discharge stage पर बचाव पक्ष का पक्ष लेना, न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन है। इससे निष्पक्ष जांच और अभियोजन का अधिकार समाप्त हो सकता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दोहराया कि डिस्चार्ज का स्तर केवल एक प्रारंभिक छंटाई है, जिसमें यह देखा जाता है कि क्या मुकदमा चलाने लायक साक्ष्य हैं या नहीं।


निष्कर्ष:

State Vs Eluri Srinivasa Chakravarthi मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए एक दिशा-निर्देशक है। इस फैसले से स्पष्ट होता है कि:

  • Discharge (धारा 239 CrPC) केवल अभियोजन की रिपोर्ट और दस्तावेजों के आधार पर होना चाहिए।
  • बचाव पक्ष द्वारा लाए गए तथ्यों पर इस स्तर पर भरोसा करना न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन है।
  • अदालत को निष्पक्ष जांच और अभियोजन की गरिमा को बनाए रखना चाहिए।

यह निर्णय ट्रायल न्यायालयों को यह सिखाता है कि न्याय केवल निष्कर्ष नहीं, प्रक्रिया का भी नाम है, और प्रक्रिया का पालन करना ही न्याय का सम्मान है।