⚖️ 9 वर्षों की देरी और पेटेंट का उपयोग न करने पर अंतरिम निषेधाज्ञा से इनकार | दिल्ली उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला

⚖️ 9 वर्षों की देरी और पेटेंट का उपयोग न करने पर अंतरिम निषेधाज्ञा से इनकार | दिल्ली उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला

प्रकरण: पेटेंट उल्लंघन विवाद में अंतरिम राहत अस्वीकृत | CPC Order 39 Rules 1 & 2 | Delhi High Court Judgment


🔹 भूमिका:

पेटेंट कानून का मूल उद्देश्य नवाचार की रक्षा करना और आविष्कारक को उसके बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण देना है। लेकिन किसी पेटेंटधारी द्वारा समय पर अपने अधिकारों का प्रयोग न करना और भारत में पेटेंट का कोई व्यावसायिक उपयोग (working of patent) न करना, न्यायालय में राहत पाने की उसकी संभावना को कमजोर कर सकता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय के इस निर्णय में अदालत ने स्पष्ट किया कि:

“यदि पेटेंटधारी वर्षों तक अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं करता और भारत में उस पेटेंट का कोई उपयोग नहीं दिखा पाता, तो वह अंतरिम निषेधाज्ञा (injunction) पाने का अधिकारी नहीं बनता।”


🔹 मामले की पृष्ठभूमि:

  • वादकर्ता (plaintiff) एक प्रौद्योगिकी कंपनी थी जिसने वर्ष 2010 में पेटेंट प्राप्त किया था।
  • प्रतिवादी (defendant) 2014 से कथित रूप से उस पेटेंट का उल्लंघन कर रहा था।
  • वादकर्ता ने 2014 में कानूनी नोटिस भेजे थे, जिनमें FRAND (Fair, Reasonable and Non-Discriminatory) शर्तों पर गैर-विशिष्ट लाइसेंस (non-exclusive license) देने की पेशकश की गई थी।
  • लेकिन वाद दायर किया गया वर्ष 2019 के बाद, यानी लगभग 9 वर्षों की देरी से।
  • वादकर्ता ने CPC के ऑर्डर 39 रूल 1 व 2 के तहत अंतरिम निषेधाज्ञा की मांग की, जिससे प्रतिवादी को आगे के व्यापार से रोका जा सके।

🔹 मुख्य कानूनी मुद्दे:

  1. क्या 9 वर्षों की देरी के बावजूद वादकर्ता को अंतरिम निषेधाज्ञा मिलनी चाहिए?
  2. क्या पेटेंट का भारत में उपयोग न किया जाना निषेधाज्ञा पर प्रभाव डालता है?
  3. क्या आरोपित उत्पाद वाकई पेटेंट के स्वतंत्र दावों (independent claims) का उल्लंघन करते हैं?
  4. क्या संतुलन की कसौटी (balance of convenience) वादी के पक्ष में है?

🔹 अदालत की टिप्पणियाँ:

🔸 1. अनावश्यक देरी (Inordinate Delay):

  • वादकर्ता ने 2010 में पेटेंट प्राप्त किया और 2014 से उल्लंघन की जानकारी थी, इसके बावजूद वाद लगभग 9 वर्ष बाद दायर किया गया।
  • कोई उपयुक्त स्पष्टीकरण देरी के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया।
  • अदालत ने कहा कि ऐसी लंबी और बिना स्पष्टीकरण वाली देरी अंतरिम राहत के खिलाफ जाती है।

🔸 2. पेटेंट का “Working” न होना:

  • वादकर्ता यह साबित नहीं कर पाया कि उसने भारत में पेटेंट का कोई औद्योगिक या व्यावसायिक उपयोग किया
  • प्रीसेडेंट के अनुसार, ऐसा पेटेंटधारी जो अपने पेटेंट का उपयोग नहीं करता, उसे अंतरिम राहत की मांग करने का नैतिक व कानूनी अधिकार कमजोर हो जाता है।

🔸 3. उल्लंघन का तकनीकी मूल्यांकन:

  • अदालत ने claim construction की तकनीकी कसौटी लागू की।
  • कहा गया कि यदि प्रतिवादी का उत्पाद independent claims का उल्लंघन नहीं करता, तो dependent claims का उल्लंघन स्वतः सिद्ध नहीं होता।

🔸 4. संतुलन और अपूरणीय क्षति (Balance of Convenience & Irreparable Harm):

  • अदालत ने माना कि अगर निषेधाज्ञा दी जाती है, तो प्रतिवादी को भारी आर्थिक नुकसान होगा, जबकि वादी वर्षों तक निष्क्रिय रहा।
  • इसलिए संतुलन प्रतिवादी के पक्ष में है

🔹 न्यायालय का निर्णय:

  • CPC Order 39 Rules 1 & 2 के तहत अंतरिम निषेधाज्ञा की याचिकाएँ खारिज कर दी गईं।
  • प्रतिवादी को उत्पाद बेचने से नहीं रोका गया, लेकिन उसे अपने विक्रय का लेखा-जोखा (accounts of sales) सुरक्षित रखने का निर्देश दिया गया, जिससे यदि अंतिम निर्णय में उल्लंघन सिद्ध हो, तो क्षतिपूर्ति तय की जा सके।

🔚 निष्कर्ष:

इस फैसले ने न्यायिक दृष्टिकोण से कुछ स्पष्ट मानक स्थापित किए हैं:

“पेटेंट उल्लंघन के मामलों में अंतरिम राहत प्राप्त करने के लिए वादकर्ता को तत्परता, सुसंगतता और भारत में पेटेंट के व्यावसायिक उपयोग को साबित करना आवश्यक है। केवल पंजीकरण या कानूनी नोटिस भेजना पर्याप्त नहीं होता।”


📌 महत्वपूर्ण निष्कर्ष बिंदु:

अंतरिम निषेधाज्ञा के लिए तत्परता अनिवार्य है
भारत में पेटेंट का प्रयोग (“Working”) दिखाना आवश्यक है
Claim Construction की कसौटी से तकनीकी मूल्यांकन
Dealy और Non-Use से संतुलन प्रतिवादी के पक्ष में चला जाता है
अंतिम न्याय के लिए लेखा-जोखा सुरक्षित रखने का आदेश