शीर्षक:
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी: केंद्र सरकार को शीघ्रता से कॉलेजियम की सिफारिशें मंजूर करनी होंगी, उच्च न्यायालयों में रिक्तियों को लेकर जताई गहरी चिंता
लेख:
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सख्त शब्दों में निर्देश देते हुए कहा कि कॉलेजियम द्वारा की गई न्यायिक नियुक्तियों की सिफारिशों को समयबद्ध तरीके से मंजूरी देना अनिवार्य है। अदालत ने उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि न्यायिक व्यवस्था में देरी न्यायिक प्रशासन को बाधित कर रही है और न्यायिक विश्वास पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।
मामले का पृष्ठभूमि:
देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के कई पद लंबे समय से खाली पड़े हैं, जिससे लंबित मुकदमों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इन रिक्तियों को भरने के लिए केंद्र सरकार को अनेक नामों की सिफारिशें भेजी थीं, जिनमें से कई को अब तक मंजूरी नहीं मिली। इस संदर्भ में कुछ याचिकाओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट का ध्यान आकृष्ट किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ:
🔹 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नियुक्तियों की सिफारिशें लंबित रखने की प्रवृत्ति न्यायपालिका की कार्यक्षमता को बाधित कर रही है।
🔹 न्यायालय ने केंद्र सरकार को याद दिलाया कि संविधान के तहत न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायिक कार्य के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करना उसकी जिम्मेदारी है।
🔹 अदालत ने दोहराया कि कॉलेजियम की सिफारिशें “उचित समयसीमा” में ही निर्णय की जानी चाहिए, अन्यथा इससे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न होती है।
🔹 न्यायालय ने कहा, “उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की भारी कमी के चलते लाखों मामले लंबित पड़े हैं। यदि शीघ्र नियुक्तियाँ नहीं की जातीं तो यह आम जनता के न्याय के अधिकार का उल्लंघन होगा।”
कानूनी और संवैधानिक दृष्टिकोण:
➡️ संविधान के अनुच्छेद 217 के तहत उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, लेकिन यह कॉलेजियम की सिफारिशों पर आधारित होती है।
➡️ सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी अपने फैसलों में (जैसे कि Third Judges Case, 1998) यह स्थापित किया है कि केंद्र सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों को उचित समय में स्वीकार या ठुकरा सकती है, लेकिन ‘अनिश्चितकाल तक’ उन्हें लंबित नहीं रखा जा सकता।
➡️ न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, और नियुक्तियों में देरी से यह स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
मुख्य बिंदु:
✅ केंद्र सरकार को कॉलेजियम की सिफारिशों पर ‘अनिश्चितकालीन निर्णय’ का अधिकार नहीं।
✅ न्यायिक रिक्तियों को शीघ्र भरने की जरूरत, ताकि लंबित मुकदमों का बोझ कम हो सके।
✅ न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं समयबद्धता जरूरी।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश भारतीय न्यायपालिका की कार्यकुशलता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। न्यायपालिका में रिक्त पदों के चलते आम जनता को न्याय मिलने में जो देरी होती है, वह संविधान में प्रदत्त उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। यह फैसला केंद्र सरकार को याद दिलाता है कि न्यायपालिका के कार्य में सहयोग और नियुक्तियों की प्रक्रिया को समयबद्ध करना केवल संवैधानिक दायित्व ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र के लिए भी अनिवार्य है।