⚖️ इंजीनियरिंग और तकनीकी सेवा शुल्क को भी कस्टम मूल्य में जोड़ना अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय — कोल इंडिया लिमिटेड बनाम कस्टम्स हाउस, कोलकाता

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⚖️ इंजीनियरिंग और तकनीकी सेवा शुल्क को भी कस्टम मूल्य में जोड़ना अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय — कोल इंडिया लिमिटेड बनाम कस्टम्स हाउस, कोलकाता

लेख:

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें स्पष्ट किया कि किसी आयातक (Importer) द्वारा चुकाए गए इंजीनियरिंग और तकनीकी सेवा शुल्क (Engineering and Technical Service Fees) को भी आयातित वस्तुओं के निर्धारण योग्य मूल्य (Assessable Value) में शामिल किया जाएगा। यह फैसला ‘कोल इंडिया लिमिटेड बनाम कस्टम्स हाउस, कोलकाता’ (M/s. Coal India Limited Vs. Commissioner of Customs (Port), Customs House, Kolkata) मामले में दिया गया है और यह सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 (Customs Act, 1962) की व्याख्या में एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश स्थापित करता है।

मामले की पृष्ठभूमि:
कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) ने कुछ आयातित स्पेयर पार्ट्स (Spare Parts) को भारत में आयात किया। इस आयात के साथ कंपनी ने उन स्पेयर पार्ट्स के उपयोग, इंस्टॉलेशन और संचालन हेतु विदेशी सप्लायर को इंजीनियरिंग और तकनीकी सेवाओं के एवज में एक अलग शुल्क भी अदा किया। सीमा शुल्क अधिकारी (Customs Authorities) ने यह निर्णय लिया कि इस सेवा शुल्क को भी सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 14 के तहत ‘Assessable Value’ में जोड़ा जाना चाहिए, ताकि उचित सीमा शुल्क वसूला जा सके। कोल इंडिया लिमिटेड ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
🔹 सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि जब आयातित वस्तु (Spare Parts) का उपयोग उसके इंस्टॉलेशन और संचालन से जुड़ा हो और इसके लिए विदेशी सप्लायर द्वारा सेवा शुल्क लिया गया हो, तो यह शुल्क ‘Assessable Value’ में जोड़ना आवश्यक है।
🔹 अदालत ने कहा कि यह सेवा शुल्क वस्तुतः आयातित माल के मूल्य का हिस्सा है, क्योंकि इन सेवाओं के बिना आयातित स्पेयर पार्ट्स का उपयोग संभव नहीं होता।
🔹 सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 14 के तहत ‘Transaction Value’ की परिभाषा में आयात से संबंधित सभी शुल्क और सेवाएं शामिल होती हैं, चाहे वह प्रत्यक्ष रूप से वस्तु के मूल्य में जुड़ा हो या अलग से अदा किया गया हो।

कानूनी तर्क और व्याख्या:
➡️ सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 14 के तहत ‘Transaction Value’ का अर्थ है — वह मूल्य जो वस्तु के आयात के लिए चुकाया गया है या चुकाया जाना है, जिसमें आयात से संबंधित सभी शुल्क और सेवाएं शामिल होती हैं।
➡️ अदालत ने GATT Valuation Agreement और भारतीय सीमा शुल्क नियमों के अनुसार यह भी स्पष्ट किया कि Transaction Value में वस्तु के उपयोग से पूर्व या उपयोग के लिए आवश्यक इंजीनियरिंग शुल्क भी जोड़ा जाना चाहिए।
➡️ यदि इन सेवाओं को अलग से भुगतान किया जाए, तो भी वे वस्तु के उपयोग का एक अनिवार्य हिस्सा मानी जाती हैं और ‘Assessable Value’ का हिस्सा बनेंगी।

मुख्य बिंदु:
✅ इंजीनियरिंग और तकनीकी सेवाओं के शुल्क को ‘Assessable Value’ में जोड़ना अनिवार्य होगा।
✅ स्पेयर पार्ट्स के संचालन और इंस्टॉलेशन से जुड़ी सेवाओं के लिए अदा किया गया शुल्क वस्तु के मूल्य में शामिल माना जाएगा।
✅ सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 14 के तहत Transaction Value का व्यापक अर्थ है, जिसमें आयात से संबंधित सभी शुल्क और सेवाएं शामिल हैं।
✅ यह निर्णय सीमा शुल्क अधिकारियों के आकलन को और अधिक पारदर्शी और न्यायसंगत बनाता है।

निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सीमा शुल्क कानून के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रस्तुत करता है। यह फैसला बताता है कि इंजीनियरिंग और तकनीकी सेवाओं के शुल्क को अलग से रखकर सीमा शुल्क से बचना संभव नहीं है। इस फैसले से आयातकों और सीमा शुल्क अधिकारियों — दोनों के लिए स्पष्टता बढ़ेगी और शुल्क निर्धारण में एकरूपता आएगी।