₹24 लाख चेक डिशॉनर केस में बड़ी राहत: मणिपुर हाई कोर्ट ने कहा—सिर्फ चेक पर हस्ताक्षर स्वीकारना पर्याप्त नहीं, कानूनी देनदारी का प्रमाण अनिवार्य
Manoj Kumar v. Mahendra Kumar, Crl. Appeal No. 24/2023, निर्णय दिनांक 17 अक्टूबर 2025 — मणिपुर उच्च न्यायालय
भूमिका
चेक डिशॉनर (Cheque Dishonour) से संबंधित मुकदमों में अक्सर यह विवाद सामने आता है कि क्या मात्र चेक पर हस्ताक्षर स्वीकार कर लेना, विधिक देनदारी (Legally Enforceable Debt) का पर्याप्त प्रमाण माना जा सकता है?
मणिपुर हाई कोर्ट ने Manoj Kumar v. Mahendra Kumar केस में इस प्रश्न पर विस्तृत निर्देश दिए और यह स्पष्ट किया कि:
केवल हस्ताक्षर की स्वीकृति से कानूनी देनदारी सिद्ध नहीं होती।
सेक्शन 138 और 139 के तहत presumption तभी लागू होगा जब शिकायतकर्ता प्रारंभिक देनदारी का मजबूत आधार प्रस्तुत करे।
इस महत्वपूर्ण फैसले में अदालत ने अपीलकर्ता की याचिका निरस्त करते हुए निचली अदालत के acquittal (बरी करने) के निर्णय को सही ठहराया।
मामले की पृष्ठभूमि
- आरोपी (Respondent) महेंद्र कुमार के खिलाफ शिकायतकर्ता (Appellant) मनोज कुमार ने दावा किया था कि उसने ₹24,00,000/- नकद उधार दिए थे।
- इस देनदारी के निर्वाह हेतु आरोपी ने एक चेक जारी किया, जो बाउंस हो गया।
- निचली अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता नकद भुगतान का विश्वसनीय प्रमाण प्रस्तुत करने में असफल रहा, इसलिए आरोपी को बरी कर दिया गया।
- शिकायतकर्ता ने इस acquittal के खिलाफ मणिपुर हाई कोर्ट में आपील दायर की।
अपील में उठाए गए मुख्य बिंदु
अपीलकर्ता का तर्क था:
- आरोपी ने चेक पर हस्ताक्षर स्वीकार किया है।
- सेक्शन 139 NI Act के तहत presumption स्वतः लागू होता है।
- निचली अदालत ने presumption को गलत तरह से appreciate किया।
वहीं, आरोपी का पक्ष:
- चेक सुरक्षा हेतु साइन किया गया था, वह किसी उधार का परिणाम नहीं था।
- ₹24 लाख नकद देने का कोई विश्वसनीय दस्तावेज नहीं है।
- शिकायतकर्ता अपने कथन में कई बार विरोधाभासी बयान दे चुका है।
- presumption तब तक लागू नहीं होता जब तक देनदारी का न्यूनतम आधार साबित न हो।
हाई कोर्ट के समक्ष महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न
क्या मात्र ‘हस्ताक्षर स्वीकारने’ से ही धारा 139 के तहत वैधानिक presumption लागू हो जाता है?
या
शिकायतकर्ता को प्रारंभिक स्तर पर देनदारी का कुछ आधार प्रस्तुत करना अनिवार्य है?
NI Act की धारा 138 और 139: संक्षिप्त व्याख्या
धारा 138 — चेक अनादरण (Dishonour)
किसी चेक के बाउंस होने और कानूनी नोटिस के बाद भुगतान न करने पर अपराध माना जाता है।
धारा 139 — Presumption in favour of holder
यदि चेक पर हस्ताक्षर आरोपी का है, तो माना जाता है कि चेक किसी देनदारी के निर्वाह हेतु दिया गया है, जब तक कि आरोपी इसके विपरीत साबित न करे।
लेकिन इस presumption को लागू करने के लिए कुछ अदालतें प्रारंभिक देनदारी का “minimum foundation” आवश्यक मानती हैं।
हाई कोर्ट का विस्तृत विश्लेषण
मणिपुर हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख फैसलों का हवाला दिया:
- Bharat Barrel & Drum Manufacturing Co. v. Amin Chand Pyarelal
- Basalingappa v. Mudibasappa
- Rangappa v. Sri Mohan
इन निर्णयों के आधार पर हाई कोर्ट ने कहा:
Presumption चालू करने के लिए ‘foundational facts’ स्थापित करना शिकायतकर्ता का दायित्व है।
1. ₹24 लाख नकद भुगतान का कोई दस्तावेज नहीं
- न तो कोई रसीद,
- न कोई बैंक स्टेटमेंट,
- न कोई गवाह,
- न कोई contemporaneous document।
अदालत ने कहा:
“इतनी बड़ी राशि का नकद भुगतान बिना किसी रिकॉर्ड के अविश्वसनीय प्रतीत होता है।”
2. चेक पर हस्ताक्षर मान लेना, देनदारी का पर्याप्त प्रमाण नहीं
अदालत ने स्पष्ट किया:
“Signature per se sufficient नहीं है।
Presumption तभी शुरू होगा जब complainant minimally prove करे कि debt वास्तव में अस्तित्व में था।”
3. आरोपी ने शुरुआत से ही consideration प्राप्त करने से इनकार किया
Accused का consistent defence था:
- चेक security के रूप में साइन किया गया था
- उसे कभी ₹24 लाख नहीं मिले
इस “a priori denial” को अदालत ने विश्वसनीय माना।
4. Complaint की कहानी अप्राकृतिक और अप्रमाणित
शिकायतकर्ता विभिन्न मौकों पर अलग-अलग बातें कहता पाया गया।
अदालत के अनुसार:
“Complainant ने onus probandi (प्रारंभिक भार) discharge नहीं किया। ऐसी स्थिति में presumption लागू नहीं हो सकता।”
हाई कोर्ट का निष्कर्ष
मणिपुर हाई कोर्ट ने कहा—
- निचली अदालत का निर्णय न तो perverse है
- न ही उसमें कोई legal infirmity है
- शिकायतकर्ता पूरी तरह से असफल रहा
- आरोपी के acquittal को हस्तक्षेप योग्य नहीं माना जा सकता
इसलिए—
“Appeal dismissed in limine.”
(मामला प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज)
इस फैसले का व्यापक महत्व
- बड़े नकद लेनदेन का मौखिक दावा पर्याप्त नहीं
अदालतें documentary evidence को अनिवार्य मानेंगी। - Presumption का गलत उपयोग रोकने के लिए स्पष्ट संदेश
NI Act की धाराओं का दुरुपयोग करने के प्रयासों पर अंकुश। - उधार देने वालों हेतु चेतावनी
बिना दस्तावेज के बड़ी राशि देना खुद मुकदमा कमजोर कर देता है। - Trial Courts की power को उच्च न्यायालय का समर्थन
Acquittal को आसानी से पलटा नहीं जा सकता।
लेनदेन करने वालों के लिए सीख
- किसी भी बड़े cash लेन-देन को documented रखें।
- Payment receipts, agreement, witness statements अनिवार्य हैं।
- चेक को security के रूप में देने से विवाद की संभावना बढ़ जाती है।
- कभी भी चेक पर खाली हस्ताक्षर न करें।
निष्कर्ष
Manoj Kumar v. Mahendra Kumar का निर्णय NI Act से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
यह स्पष्ट करता है कि:
सिर्फ चेक पर हस्ताक्षर स्वीकार करना presumption खड़ा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
Debt का अस्तित्व साबित करना complainant की पहली जिम्मेदारी है।
जब तक शिकायतकर्ता यह “foundational proof” प्रस्तुत नहीं करेगा, तब तक Section 139 का presumption लागू नहीं होगा।
इस प्रकार मणिपुर हाई कोर्ट ने निचली अदालत के “acquittal” को पूरी तरह सही ठहराया और अपील को निरस्त कर दिया।