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हेल करने वाली विधि, हानि नहीं पहुँचाने वाली: Orissa High Court ने रेल दुर्घटना मृतक को मुआवजा दिए जाने का आदेश

“हेल करने वाली विधि, हानि नहीं पहुँचाने वाली: Orissa High Court ने रेल दुर्घटना मृतक को मुआवजा दिए जाने का आदेश — Satyajit Swain बनाम Union of India का न्यायशास्त्र”


प्रस्तावना

किसी नागरिक के रेल यात्रा के दौरान अप्रत्याशित दुर्घटना में हानि होना न केवल व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि राज्य-प्राधिकरणों की जिम्मेदारी और संवैधानिक न्याय की परीक्षा का विषय बन जाता है। 25 दिसंबर 2006 को Neelachal Express में यात्रा के दौरान, Sarbeswar Swain नामक व्यक्ति को कथित “सहसा झटका (sudden jolt)” से गिरने की दुर्घटना हुई, जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई। उनके वैध वारिस Satyajit Swain ने मुआवजे की मांग की।

Railway Claims Tribunal ने इस दावे को खारिज कर दिया। उसके बाद मामला Orissa High Court, Cuttack गया, जहाँ न्यायमूर्ति Sanjeeb K. Panigrahi ने यह महत्वपूर्ण निर्णय दिया कि वो निर्णय खारिज किया जाए और मुआवजा दिया जाए। इस निर्णय में न्यायाधीश ने कहा:

“Beneficial legislation must be given effect to in a manner that heals, not in a manner that harms.”

इस लेख में हम इस फैसले की गहराई से समीक्षा करेंगे — तथ्य, कानूनी प्रश्न, न्यायालय की व्याख्या, “beneficial legislation” की भूमिका, और इस निर्णय के सामाजिक और कानूनी निहितार्थ।


तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

दुर्घटना की घटना और दावे की शुरुआत

  1. यात्रा और दुर्घटना
    — 25 दिसंबर 2006 को, मृतक Sarbeswar Swain Allahabad से Cuttack की यात्रा कर रहे थे, रेलगाड़ी Neelachal Express (Train No. 12816) में।
    — उसी रात, कथित रूप से, “सहसा झटका” (sudden jolt) के कारण वह गाड़ी के डिब्बे के अंदर गिर गए। इस गिरावट से उन्हें गंभीर मस्तिष्क एवं अन्य शरीर चोटें आईं।
    — उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया (Gaya Government Hospital), लेकिन 27 दिसंबर 2006 को उन्होंने उपचार के दौरान अपनी जान गंवाई।
  2. दावा पंजीकरण
    — 27 अगस्त 2007 को, legal heir (वारिस) Satyajit Swain ने Railway Claims Tribunal के समक्ष एक दावा दाखिल किया। वह ₹4,00,000 (चार लाख) मुआवजे की मांग करते हुए मृतक की आकस्मिक मृत्यु का आधार प्रस्तुत किया।
    — इस दावे के समर्थन में, उन्होंने यह आरोप लगाया कि रेलवे की तरफ से लापरवाही या उत्तरदायित्व होना चाहिए, क्योंकि दुर्घटना रेलगाड़ी के संचालन के दौरान हुई।
  3. Tribunal की प्रथम खारिजी
    — 12 दिसंबर 2014 को, Railway Claims Tribunal ने उस दावे को खारिज कर दिया। Tribunal ने यह निष्कर्ष निकाला कि मृत्यु का कारण “cardiac arrest (हृदयाघात)” था, न कि गिरावट और चोटों की वजह से।
    — इस तरह उन्होंने दावा खारिज कर दिया।
  4. पहली अपील और पुनर्समीक्षा
    — असंतुष्ट होकर, Satyajit ने Orissa High Court में एक अपील दायर की — F.A.O. No. 273 of 2015।
    — इस अपील पर High Court ने 5 दिसंबर 2023 को यह निर्णय लिया कि Post-mortem रिपोर्ट में मृत्यु के कारण “हृदयाघात” नहीं, बल्कि “shock and hemorrhage” है — इसलिए Tribunal की प्रारंभिक निष्कर्ष को खारिज करते हुए मामला पुनर्भिक्षित (remand) किया।
  5. Tribunal की पुनर्समीक्षापरक निर्णय और पुनः खारिज
    — Tribunal ने पुनर्समीक्षा के बाद भी दावा खारिज कर दिया। उसका तर्क था कि घटना “inside the train” (गाड़ी के भीतर) हुई, न कि “falling from train” (गाड़ी से गिरना)। Tribunal ने यह कहा कि धारा 123(c)(2) (definition of untoward incident) उस प्रकार की गिरावट को नहीं कवर करती।
    — Tribunal ने यह भी कहा कि “coincidental shock / hemorrhage” को दुर्घटना से जोड़ने का ठोस साक्ष्य नहीं है।
  6. High Court में अंतिम अपील और निर्णय
    — Satyajit Swain ने पुन: High Court में अपील (F.A.O. No. 206 of 2024) की। Orissa High Court ने 10 सितंबर 2025 को अपने निर्णय में Tribunal और उसकी खारिजी को उलट दिया।
    — High Court ने कहा कि दुर्घटना “untoward incident” की परिभाषा में आती है, Railway को strict liability (no fault liability) की जिम्मेदारी है, और कोई भी exception (स्वयंहत्या, आपराधिक कृत्य, शराब, प्राकृतिक कारण आदि) सिद्ध नहीं हुआ।
    — High Court ने ₹9,23,562 (नौ लाख तेइस हजार पाँच सौ बासठ) मुआवजे की राशि वारिस को भुगतान करने का आदेश दिया, चार महीनों के भीतर, अन्यथा 7% वार्षिक ब्याज देने का भी निर्देश दिया।
  7. न्यायालय की तीखी टिप्पणियाँ
    — न्यायालय ने रेलवे प्रशासन की धीमी, झगड़ालू और प्रतिरोधात्मक मानसिकता की कड़ी निंदा की। कहा कि उपेक्षा और कथित विरोधी रवैये ने पीड़ित परिवार को वर्षों तक न्याय के लिए भटकाया।
    — न्यायाधीश ने यह स्पष्ट कहा: “Beneficial legislation must be given effect to in a manner that heals, not in a manner that harms.”
    — उन्होंने यह भी कहा कि मृतक अन्याय नहीं था — वह एक कानूनन यात्री था, न कि दुर्घटना के समय किसी अवैध स्थल पर मौजूद या अंतरालकारी (trespasser) था।

कानूनी एवं न्यायशास्त्रीय विश्लेषण

यह मामला कई संवैधानिक एवं विधिक सिद्धांतों को सामने लाता है — विशेष रूप से रेल यात्री सुरक्षा, strict liability, लाभकारी कानून की व्याख्या, और न्याय में तेजी व संवेदनशीलता।

1. विधान-प्रावधान: अधिनियम और धाराएँ

(i) धारा 123(c) और धारा 123(c)(2) — “untoward incident”

  • Railways Act, 1989 की धारा 123(c) विभिन्न “untoward incidents” (अनपेक्षित हानिकारक घटनाएँ) की परिभाषा देती है।
  • विशेष रूप से 123(c)(2) में यह कहा गया है कि “the accidental falling of any passenger from a train carrying passengers” एक untoward incident है।
  • एक विवाद था — क्या “falling inside the train compartment (गाड़ी अंदर गिरना)” को इस परिभाषा में शामिल करना चाहिए? Tribunal ने यह कहा कि “fall from train (गाड़ी से गिरना)” को ही यह धारा कवर करती है।

(ii) धारा 124-A — मुआवजे की जिम्मेदारी (Compensation liability)

  • यदि कोई “untoward incident” रेल संचालन के दौरान होती है, तो धारा 124-A कहती है कि रेल प्रशासन strict liability (दोष सिद्धि नहीं जरूरी) के अंतर्गत मुआवजा देने के लिए बाध्य है। इस भाग में यह कहा गया है कि चाहे कोई लापरवाही (negligence) सिद्ध हो या न हो, रेल प्रशासन को मुआवजे की जिम्मेदारी है, बशर्तु कि घटना “untoward incident” की श्रेणी में आती हो और exceptions (स्वयंहत्या, आत्महत्या प्रयास, अपराध, शराब/मदिरा, प्राकृतिक कारण/बीमारी आदि) लागू न हों।
  • कानून यह कहता है कि यह व्यवस्था अन्य कानूनों की तुलना में विशेष प्रावधान है, और इसका दायरा व्यापक है।

(iii) Railway Accidents and Untoward Incidents (Compensation) Rules, 1990

  • इन नियमों के अधीन मुआवजे की ** तालिका (Schedule)** निर्धारित है, जिसमें दुर्घटना समय के अनुसार मुआवजे की राशि तय रहती है।
  • 22 दिसंबर 2016 की एक अधिसूचना (Notification) द्वारा इन मुआवजे की राशि संशोधित की गई और यह संशोधन 1 जनवरी 2017 से लागू माना जाए।
  • High Court ने यह सिद्धांत लागू किया कि यदि ब्याज जोड़ कर पुरानी राशि (accumulated with interest) संशोधित राशि से अधिक हो जाए, तो अधिक राशि ही लाभार्थी को मिले।

2. कानूनी तर्क — पक्षों की दलीलें और न्यायालय की दृष्टि

(i) पक्ष Satyajit Swain (वारिस / एप्पिलेंट) की दलीलें

  1. बोनाफाइड यात्री (Bona fide passenger)
    — वे तर्क देते हैं कि मृतक के पास वैध यात्रा टिकट था, और वह एक सामान्य यात्री था। इसलिए वह विशेष दर्जे का यात्री था।
    — Railway प्रशासन को यह साबित करना चाहिए था कि मृतक किसी अपवाद (exceptions) में आता है।
  2. घटना “untoward incident” के अन्तर्गत आती है
    — वे Supreme Court के निर्णय Union of India v. Prabhakaran Vijaya Kumar (2008) का हवाला देते हैं, जिसमें कहा गया कि अंतर (fall inside vs fall from train) तकनीकी नहीं होनी चाहिए, और beneficial legislation को व्यापक रूप में लागू किया जाना चाहिए।
    — वे कह सकते हैं कि अपराध, लापरवाही, contributory negligence आदि का तर्क railroad को छूट नहीं देना चाहिए, क्योंकि कानून strict liability बनाता है।
  3. Railway के पक्ष में कोई excepción सिद्ध नहीं हुई
    — वे कहते हैं कि रेलवे ने न तो स्वयंहत्या / आत्महत्या प्रयास सिद्ध किया, न अपराध, न शराब/व्यसन, न प्राकृतिक कारण / बीमारी आदि। अतः exceptions धारा 124-A के अंतर्गत लागू नहीं होते।
  4. Delay और न्याय की देरी का दलील
    — उन्हें यह तर्क देना होगा कि इतनी लंबे समय की देरी (लगभग 19 साल) न्याय की विरासत पर प्रश्न खड़ी करती है।
    — न्यायालय को यह ध्यान देना चाहिए कि न्याय समय पर हो — क्योंकि मुआवजहीन देर से मिले, उसके लाभ कम हों।

(ii) पक्ष Railway / सरकार (Respondent) की दलीलें

  1. घटना “untoward incident” की संहिता बाहर
    — रेलवे यह तर्क कर सकता है कि यह घटना धारा 123(c)(2) की परिभाषा में नहीं आती क्योंकि वह “inside falling” है, न “fall from train” जैसा शब्द। Tribunal ने वही तर्क अपनाया।
    — Railway कह सकती है कि हादसा “coincidental shock / hemorrhage” का मामला है, और गिरावट से जुड़े साक्ष्य ठोस नहीं हैं।
  2. दावा साक्ष्य की कमी
    — रेलवे यह तर्क कर सकता है कि दावे पक्ष ने घटना के समय झटका / गिरावट का ठोस साक्ष्य नहीं पेश किया — जैसे गवाह, रिपोर्ट, तकनीकी विश्लेषण आदि। Tribunal ने इसे आधार बनाकर खारिज किया।
    — Railway कह सकती है कि मृतक की गिरावट स्वयं की त्रुटि या contributory negligence का परिणाम हो सकती है। हालांकि, यह exception धारा 124-A में नहीं दी गई।
  3. Exceptions का आधार
    — Railway यह यह कोशिश कर सकती है कि मृत्यु प्राकृतिक कारण / बीमारी / हृदयाघात था — जैसा Tribunal ने पहले निष्कर्ष निकाला। इस तर्क को Railway Tribunal ने पहले अपनाया था।
    — Railway कह सकती है कि यदि यह सिद्ध हो जाए कि मृतक पहले से बीमारी का शिकार था, तो कानून की exception लागू हो सकती है।

3. High Court की व्याख्या और निर्णायक दृष्टिकोण

High Court ने निम्न प्रमुख बिंदुओं और तर्कों पर निर्णय दिया:

  1. fall inside = fall from train
    — High Court ने Tribunal की विभाजन (fall inside vs fall from) को तकनीकी और अनुचित माना। Supreme Court के Prabhakaran Vijaya Kumar निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि difference को उपयोगी और उद्देश्यपरक दृष्टिकोण से देखना चाहिए।
    — यदि वह अंतर मान लिया जाए, तो यात्रियों की रक्षा की मंशा को कमजोर कर दिया जाएगा।
  2. Strict Liability और “no fault” सिद्धांत
    — High Court ने स्पष्ट किया कि धारा 124-A एक non-fault / no fault liability प्रावधान है — मुआवजा देना रेलवे का दायित्व है यदि घटना untoward incident की श्रेणी में आती हो।
    — Railway को यह साबित करना चाहिए कि घटना exception के अंतर्गत आती है — न कि यात्री को दोषी माना जाए।
  3. interpretation of Beneficial Legislation
    — High Court ने यह दृष्टिकोण अपनाया कि ऐसी विधि जो सामाजिक कल्याण की दृष्टि से बनी हो (beneficial legislation), उसे उपकारी स्वरूप में व्याख्यायित किया जाना चाहिए — वह विधि बढ़िया न्याय दे, न कि विपरीत।
    — “heal, not harm” की अभिव्यक्ति इसी दर्शन को दर्शाती है — मुआवजा देने वाली विधि को कठोर या technical व्याख्या से दूर रखना चाहिए।
  4. Compensation की गणना
    — High Court ने पुरानी तालिका की राशि (₹4,00,000) को ब्याज के साथ बढ़ाया (7% प्रति वर्ष) यानि लगभग ₹9,23,562, और इसे Railway की संशोधित मुआवजा राशि (₹8,00,000) के साथ तुलना की। चूंकि ब्याज सहित पुरानी राशि अधिक थी, इसलिए उस राशि को मुआवजा रूप में स्वीकार किया।
    — उसने Railway को आदेश दिया कि वह चार महीनों के भीतर यह राशि वारिस के बैंक खाते में जमा करे, अन्यथा 7% ब्याज दे।
  5. न्यायालय की टिप्पणी और सामाजिक चेतना
    — न्यायालय ने Railway प्रशासन की प्रतिरोधात्मक मानसिकता की कड़ी आलोचना की। यह कहा कि Railway की ताकत (monopoly) के साथ उसकी जिम्मेदारी भी बहुत बड़ी है। यदि किसी यात्री की मृत्यु हो जाए, परिवार को वर्षों तक न्याय के लिए लड़ना न पड़े।
    — यह भी कहा गया कि न्याय की देरी (19 वर्ष) न्याय प्रणाली की आलोचना है — न्याय देर से देना, न्याय नहीं देना बराबर हो सकता है।

“Beneficial Legislation” अवधारणा और न्यायशास्त्र

यह निर्णय “beneficial legislation” (उपकारी / कल्याणकारी विधि) की व्याख्या एवं न्यायशास्त्र को पुनर्जीवित करता है। निम्न बिंदुओं पर ध्यान देने योग्य है:

  1. उपकारी विधि क्या है?
    — ऐसी विधियाँ जो सामाजिक कल्याण, नागरिक सुरक्षा, दुर्बल पक्षों की रक्षा आदि उद्देश्य से बनाई जाएँ। ये विधियाँ सिर्फ नियम-नियंत्रण नहीं करती, बल्कि न्याय देने की दिशा में होती हैं।
    — उपकारी विधि को थोड़ी अधिक उदारता से व्याख्यायित किया जाना चाहिए ताकि विधि का उद्देश्य बाधित न हो।
  2. “Heal, Not Harm” दृष्टिकोण
    — न्यायालय का यह कथन कि विधि को मरोड़ कर हानि पहुँचाने वाली नहीं, बल्कि सुधार करने वाली (heal) होनी चाहिए — यह व्याख्यात्मक दर्शन को स्पष्ट करता है।
    — यदि विधि को technical रूप से या अनुचित सीमा तक उपयोग किया जाए, तो वह अपने लक्ष्य को विकृत कर देगी।
  3. Interpretation Principles
    — ऐसे विधियों की व्याख्या (statutory interpretation) में Literal rule (शाब्दिक अर्थ) की तुलना में Purposive / Teleological (उद्देश्यपरक) व्याख्या अधिक उपयुक्त है।
    — Technicalities, कठोरताएँ, निषेधात्मक व्याख्याएँ (narrow) नहीं, बल्कि व्यावहारिक, न्यायोन्मुख व्याख्याएँ अपनानी चाहिए।
  4. न्यायपालिका का दायित्व
    — न्यायालय को यह देखना चाहिए कि विवेचित कानून जनता की अपेक्षाओं, न्याय की मांग और संवैधानिक मूल्यों से मेल खाए।
    — यदि न्यायालय केवल तकनीकी आधार पर m boolquashing / खारिजी करे, तो विधि का लक्ष्य अधूरा रह जाएगा।

इस प्रकार, High Court ने इस दृष्टिकोण को इस तथ्यात्मक विवाद में आत्मसात किया — न केवल साक्ष्यों और प्रावधानों को देखा, बल्कि समाज की अपेक्षा, न्यायसंस्थाओं की प्रतिष्ठा और विधि के उद्देश्य को भी ध्यान में रखा।


प्रभाव, चुनौतियाँ और निहितार्थ

1. कानूनी मार्गदर्शन और प्रीसिडेंट (precedent)

  • यह निर्णय अन्य High Courts और निचली न्यायालयों के लिए एक मार्गदर्शक (persuasive precedent) बनेगा, विशेष रूप से ऐसी मामलों में जहाँ मृतक यात्री के लिए railway दुर्घटना के दावे हों।
  • विधि-व्याख्या में “beneficial legislation” के सिद्धांत को मजबूत करेगा, ताकि न्यायालय technical pedantry में फँसे बिना न्याय दे सके।

2. रेलवे प्रशासन और दायित्व

  • रेलवे को यह चेतावनी है कि वह litigation-oriented (झगड़ालू) रवैया न अपनाए। दुर्घटना होने पर तुरंत सहायता, मुआवजे की प्रक्रिया को सरल और सहायक बनाना चाहिए।
  • रेलवे को अपनी internal safety protocols, जांच प्रक्रियाएँ, दुर्घटना रिकॉर्ड और जवाबदेही तंत्र को सुदृढ़ करना होगा, ताकि ऐसे दावों की संख्या कम हो और न्याय की प्रक्रिया तेज हो।

3. पीड़ित परिवारों को राहत

  • इस फैसले से यह स्पष्ट संकेत जाता है कि पीड़ित परिवारों को वर्षों तक न्याय की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए।
  • यदि न्यायालय समयबद्ध फैसले दें, तो दुखी परिवारों को अपेक्षित मुआवजा शीघ्र मिल सके।

4. देरी की समस्या का ज्वलंत उदाहरण

  • लगभग 19 वर्ष की देरी इस मामले में न्याय प्रणाली की गंभीर समस्या को उजागर करती है — “justice delayed is justice denied” का सिद्धांत पुनरुत्थान करता है।
  • इस तरह की लंबी लड़ाइयाँ आम नागरिकों के लिए असहनीय होती हैं और न्याय व्यवस्था की धारणा को क्षति पहुँचाती हैं।

5. संवैधानिक दृष्टिकोण

  • यह मामला यह रेखांकित करता है कि राज्य-उपकरणों (State instrumentalities) की जिम्मेदारी सिर्फ राजनैतिक नहीं, बल्कि संवैधानिक और न्यायशास्त्रिक है।
  • यदि राज्य नागरिकों के जीवन से जुड़ी दुर्घटनाओं में मुआवजा देने में विफल रहे, तो उसका संविदानिक मूल्यों के खिलाफ जाना माना जाए।
  • “स्वयं को सेवा करने वाला राज्य” की अवधारणा पुनर्जीवित होती है — कि राज्य नागरिकों की रक्षा, सुविधा और न्याय की गारंटी देने वाला होना चाहिए।

निष्कर्ष

Satyajit Swain vs Union of India / Orissa High Court का यह निर्णय सिर्फ एक मुआवजा विवाद को हल नहीं करता — वह विधि-व्याख्या, न्यायशास्त्र और राज्य की जवाबदेही के बीच संतुलन की एक मिसाल है।

मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • दुर्घटना “inside the train” भी untoward incident की श्रेणी में आती है, यदि सही साक्ष्य हों।
  • धारा 124-A के अंतर्गत रेलवे को strict liability के आधार पर मुआवजा देना होगा, यदि घटना exceptions के अंतर्गत न हो।
  • “Beneficial legislation” का सिद्धांत यह कहता है कि ऐसी विधियाँ जनता को राहत दें, न कि उन्हें विधि की कठोर व्याख्या से वंचित करें।
  • न्यायालय ने तकनीकी तर्कों की जगह न्याय, संवेदनशीलता और विधि की उद्देश्यपूर्ण व्याख्या को महत्व दिया।
  • लगभग 19 वर्ष की देरी ने यह समस्या उजागर की कि न्याय व्यवस्था को तेजी, पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में सुधार करना आवश्यक है।
  • इस फैसले से पीड़ितों को न्याय मिलने की संभावना बढ़ी है, और प्रशासन को जिम्मेदार ठहराने की सामाजिक एवं विधिक प्रेरणा मिलेगी।