हेरोइन के साथ पकड़े गए दोषी की सजा निलंबन याचिका खारिज: हाईकोर्ट ने कहा – “नशे की आदत समाज के लिए खतरनाक”
❝न्यायपालिका को नशीली दवाओं के खिलाफ कठोर रुख अपनाना होगा❞
🏛️ कोर्ट: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय
👨⚖️ न्यायाधीश: जस्टिस सुमीत गोयल
🔷 परिचय
भारत, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में मादक द्रव्यों की लत (Drug Addiction) एक विकराल समस्या बन चुकी है। इससे न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य बल्कि कानून-व्यवस्था, सामाजिक ढांचे और आर्थिक संसाधनों पर भी व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। इस संदर्भ में, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए हेरोइन रखने के दोषी व्यक्ति की सजा निलंबित करने से स्पष्ट इंकार कर दिया है।
🔷 मामला क्या था?
एक व्यक्ति को 500 ग्राम हेरोइन के साथ पकड़ा गया था और उसे NDPS Act की धारा 21(C) के तहत 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गई थी। दोषी ने इस सजा के खिलाफ सजा निलंबन (Suspension of Sentence) के लिए याचिका दायर की थी, यह दावा करते हुए कि:
- वह **3 साल से अधिक समय से हिरासत में है।
- मामले में उसे झूठा फंसाया गया है।
- पुलिस गवाहों के अलावा कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था।
- पूरे केस की कहानी एकतरफा और संदिग्ध है।
🔷 हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
न्यायमूर्ति सुमीत गोयल की एकल पीठ ने इस याचिका को सख्ती से खारिज करते हुए कहा:
❝न्यायालय गहरी चिंता के साथ यह देख रहा है कि मादक पदार्थों का प्रसार अब हमारे समाज के लिए एक घातक खतरा बन चुका है।❞
- हेरोइन जैसी निर्मित दवाओं का उपयोग अत्यधिक खतरनाक है।
- नशे के आदी लोग अपनी आदतों को पूरा करने के लिए छोटे-मोटे और हिंसक अपराधों की ओर बढ़ जाते हैं।
- अदालत ने माना कि इस प्रकार के अपराध अब सार्वजनिक स्वास्थ्य, व्यवस्था और सामाजिक ढांचे को पूरी तरह से चुनौती दे रहे हैं।
🔷 न्यायालय की कानूनी दृष्टि
- NDPS अधिनियम एक विशेष कानून है जो मादक पदार्थों के मामलों में सामान्य दया या रियायत के सिद्धांतों को सीमित करता है।
- NDPS Act में सख्त सजा का प्रावधान इसलिए है ताकि नशे के नेटवर्क को जड़ से उखाड़ा जा सके।
- अदालत ने कहा कि केवल यह तर्क कि पुलिस के अलावा कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है — सजा निलंबन का आधार नहीं हो सकता।
🔷 सामाजिक और विधिक महत्व
यह फैसला केवल एक अभियुक्त से संबंधित नहीं है — यह पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
- नशे के खिलाफ लड़ाई में न्यायपालिका को मुलायम रवैया नहीं अपनाना चाहिए।
- इस प्रकार की याचिकाओं से न केवल अपराधियों को राहत मिलती है, बल्कि न्याय व्यवस्था की कठोरता भी कमजोर होती है।
- न्यायालय ने अपने फैसले में कानून, नीति और नैतिक जिम्मेदारी — तीनों को एकसाथ संतुलित किया।
🔷 निष्कर्ष
यह फैसला दर्शाता है कि न्यायपालिका अब मादक द्रव्यों के दुरुपयोग पर कोई नरमी नहीं बरतना चाहती। NDPS जैसे मामलों में न केवल दोषियों को सजा मिलनी चाहिए, बल्कि उन्हें रियायतें देना समाज के साथ अन्याय होगा।
❝हताश नशेड़ी समाज के लिए खतरा हैं — उन्हें दया नहीं, सुधार की ज़रूरत है।❞
❝न्यायालय का प्राथमिक कर्तव्य अपराधियों को राहत देना नहीं, बल्कि समाज को सुरक्षित रखना है।❞