हेमराज बनाम सीमा देवी (2022, राजस्थान उच्च न्यायालय): घरेलू हिंसा की शिकायत बिना FIR के भी संभव – एक ऐतिहासिक निर्णय
परिचय:
राजस्थान उच्च न्यायालय ने हेमराज बनाम सीमा देवी (2022) मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि घरेलू हिंसा से संबंधित शिकायत दर्ज कराने के लिए प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) आवश्यक नहीं है। यह निर्णय घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को त्वरित राहत दिलाने की दिशा में एक मील का पत्थर माना जा सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस केस में हेमराज द्वारा एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें यह तर्क दिया गया कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अंतर्गत महिला द्वारा की गई शिकायत केवल तभी मान्य है जब पहले उसके खिलाफ FIR दर्ज की गई हो। प्रतिवादी सीमा देवी ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत की थी और न्यायिक आदेश प्राप्त किया था।
याचिकाकर्ता का तर्क:
हेमराज का तर्क था कि:
- घरेलू हिंसा की कार्यवाही आपराधिक प्रकृति की होती है, अतः इसका प्रारंभ एक FIR से ही होना चाहिए।
- बिना आपराधिक शिकायत (FIR) के ऐसे आदेशों की वैधता संदेहास्पद है।
- मजिस्ट्रेट द्वारा पारित संरक्षण आदेश कानून की उचित प्रक्रिया का उल्लंघन है।
प्रतिवादी का पक्ष:
सीमा देवी की ओर से यह दलील दी गई कि:
- घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 एक सिविल प्रकृति का विशेष कानून है, जिसका उद्देश्य पीड़िता को तत्काल राहत देना है।
- यह कानून महिलाओं को बिना आपराधिक प्रक्रिया में उलझे त्वरित संरक्षण प्रदान करता है।
- FIR की अनिवार्यता की शर्त अधिनियम की आत्मा के विरुद्ध होगी।
उच्च न्यायालय का निर्णय:
न्यायमूर्ति पुष्पेन्द्र सिंह भाटी की एकल पीठ ने यह निर्णय सुनाया, जिसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित बिंदुओं को स्पष्ट किया गया:
- घरेलू हिंसा अधिनियम का उद्देश्य:
यह अधिनियम दंडात्मक नहीं, बल्कि संरक्षणात्मक और उपचारात्मक प्रकृति का है। इसका उद्देश्य पीड़िता को तुरंत संरक्षण और सहायता प्रदान करना है, न कि आरोपी को दंडित करना। - FIR की अनिवार्यता नहीं:
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा आदेश जारी करने के लिए FIR की कोई आवश्यकता नहीं है। पीड़िता सीधे मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर सकती है। - कार्यवाही की प्रक्रिया:
अधिनियम की धारा 12 के तहत, मजिस्ट्रेट को प्राप्त शिकायत पर सुनवाई कर वह अंतरिम या अंतिम आदेश पारित कर सकता है, चाहे FIR दर्ज हो या नहीं। - पीड़िता की सुरक्षा सर्वोपरि:
अदालत ने कहा कि यदि FIR को अनिवार्य कर दिया जाए, तो इससे महिलाओं को मिलने वाली त्वरित राहत में देरी हो सकती है, जिससे अधिनियम का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।
महत्त्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
- “घरेलू हिंसा अधिनियम पीड़ित महिला के अधिकारों की रक्षा के लिए एक विशेष विधायी साधन है, जिसे तकनीकी प्रक्रियाओं में उलझाकर कमजोर नहीं किया जा सकता।”
- “FIR की बाध्यता नहीं होने से महिलाएं असहाय स्थिति में भी तत्काल न्याय प्राप्त कर सकती हैं।”
न्यायालय का निष्कर्ष:
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा की शिकायत पर मजिस्ट्रेट द्वारा लिया गया संज्ञान और पारित आदेश पूरी तरह वैध और कानूनसम्मत है।
महत्व और प्रभाव:
यह निर्णय देश भर के न्यायालयों में घरेलू हिंसा अधिनियम की व्याख्या और क्रियान्वयन की दिशा को स्पष्ट करता है। इससे यह संदेश गया कि:
- महिला अधिकारों की रक्षा को तकनीकी बाधाओं में नहीं बाँधा जा सकता।
- घरेलू हिंसा के मामलों में त्वरित राहत सर्वोपरि है।
- मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया संरक्षण आदेश स्वतंत्र रूप से मान्य होता है।
निष्कर्ष:
हेमराज बनाम सीमा देवी निर्णय ने घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की आत्मा को सशक्त किया है। यह स्पष्ट किया गया कि महिला की सुरक्षा और गरिमा सर्वोच्च है, और उसे न्याय प्राप्त करने के लिए FIR जैसी आपराधिक प्रक्रिया में उलझने की आवश्यकता नहीं है। यह फैसला लैंगिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।