“हिस्ट्रीशीटर के घर देर रात दबिश देना निजता का उल्लंघन है: इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी”

“हिस्ट्रीशीटर के घर देर रात दबिश देना निजता का उल्लंघन है: इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी”

परिचय:
भारत के संविधान में प्रदत्त निजता के अधिकार (Right to Privacy) को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए यह स्पष्ट किया कि यह अधिकार किसी नागरिक की आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर समाप्त नहीं हो जाता। कोर्ट ने कहा कि हिस्ट्रीशीटर घोषित व्यक्ति के घर पर भी देर रात पुलिस दबिश देना उसके निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। यह निर्णय न केवल मानवाधिकारों के संरक्षण की दिशा में एक मजबूत संकेत है, बल्कि पुलिस कार्यप्रणाली के प्रति एक चेतावनी भी है।


मामले की पृष्ठभूमि:
यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति अनिल कुमार की खंडपीठ ने प्रयागराज निवासी समंदर पांडेय की याचिका पर पारित किया। याची ने आरोप लगाया कि पुलिस ने बिना किसी उचित कानूनी प्रक्रिया के उनकी हिस्ट्रीशीट खोली, और फिर रात में घर पर दबिश देकर उन्हें और उनके परिवार को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। साथ ही उन्हें बिना कारण थाने बुलाकर परेशान किया गया।


याचिका में प्रस्तुत मुख्य दलीलें:

  1. हिस्ट्रीशीट खोलना कानून सम्मत नहीं है।
  2. रात के समय बार-बार पुलिस दबिश देना निजता और मानसिक शांति का उल्लंघन है।
  3. बिना अपराध या साक्ष्य के, केवल पुराने रिकॉर्ड के आधार पर पुलिस द्वारा प्रताड़ना की जा रही है।

हाईकोर्ट की टिप्पणियाँ एवं आदेश:
कोर्ट ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और अन्य उच्च न्यायालयों के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:

हर व्यक्ति को संविधान द्वारा प्रदत्त निजता का अधिकार प्राप्त है, चाहे उसका अतीत कुछ भी रहा हो। हिस्ट्रीशीटर होना कोई वैध आधार नहीं है कि पुलिस नागरिकों को रात में उनके घरों से जबरन उठाए या डराए-धमकाए।

कोर्ट ने दिए गए प्रमुख आदेश:

  • याची के घर पर देर रात दबिश देने पर तत्काल रोक लगाई गई है।
  • राज्य सरकार, पुलिस कमिश्नरेट प्रयागराज, और संबंधित थाना प्रभारी को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया गया है।
  • रजिस्ट्रार अनुपालन को निर्देश दिया गया है कि 48 घंटे के भीतर इस आदेश की प्रति मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के माध्यम से प्रयागराज के पुलिस आयुक्त को पहुंचाई जाए
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कानून-व्यवस्था के नाम पर व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

न्यायिक महत्त्व:
इस निर्णय का व्यापक संवैधानिक और मानवाधिकार पहलुओं पर प्रभाव पड़ता है:

  • यह पुलिस को याद दिलाता है कि अनुशासन और प्रक्रिया के भीतर रहकर कार्य करना उनकी बाध्यता है
  • यह हिस्ट्रीशीटर या पूर्व आरोपित व्यक्तियों के भी मौलिक अधिकारों को मान्यता देता है, जिन्हें अक्सर पुलिस मनमानी का शिकार बनाती है।
  • यह निर्णय नागरिकों के सम्मान और मानसिक शांति के संरक्षण की दिशा में उच्च न्यायालय की संवेदनशीलता को दर्शाता है।

निष्कर्ष:
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है — न पुलिस, न अपराधीनिजता का अधिकार भारतीय संविधान का आधार है, और इसका उल्लंघन किसी भी हाल में नहीं किया जा सकता, चाहे संबंधित व्यक्ति पर कितने भी आरोप क्यों न लगे हों। यह फैसला न्याय की आत्मा को बल देता है और संविधान में निहित मूल अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक सशक्त कदम है।