लेख शीर्षक:
“हिब्बा विवाद में घोषणा बनाम रद्दीकरण का सिद्धांत: Hussain Ahmed Choudhury & Ors बनाम हबीबुर रहमान (2025)”
परिचय:
सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय Hussain Ahmed Choudhury & Ors v. Habibur Rahman (2025 SC, CA No. 5470 of 2016) ने संपत्ति कानून में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत की पुष्टि की है—जब कोई व्यक्ति किसी विलेख को चुनौती देता है, तो उसके द्वारा की गई चुनौती की प्रकृति इस बात पर निर्भर करती है कि वह व्यक्ति उस विलेख का निष्पादक (executant) है या नहीं। यह निर्णय विशिष्ट राहत अधिनियम (Specific Relief Act), 1963 की धारा 31 और 34 की व्याख्या करते हुए दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि:
विवाद का विषय एक हिब्बा (Gift Deed) था, जिसे वैधता की दृष्टि से चुनौती दी गई थी। इसमें प्रश्न यह था कि क्या याचिकाकर्ता, जो उस विलेख के निष्पादक (executant) नहीं थे, सीधे तौर पर विलेख को रद्द कराने की मांग कर सकते हैं या उन्हें केवल घोषणा (declaration) तक ही सीमित रहना होगा।
मुख्य विधिक प्रश्न:
- यदि कोई व्यक्ति किसी विलेख का निष्पादक (executant) है और उसे अमान्य कराना चाहता है, तो क्या उसे उस विलेख की रद्दीकरण की मांग करनी चाहिए?
- यदि कोई व्यक्ति उस विलेख का निष्पादक नहीं है, तो क्या वह केवल यह घोषणा प्राप्त कर सकता है कि वह विलेख उस पर बाध्यकारी नहीं है?
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि—
- विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 31 उस स्थिति में लागू होती है, जब कोई व्यक्ति स्वयं विलेख का निष्पादक हो और उसे यह भय हो कि वह दस्तावेज उसके विरुद्ध प्रयोग किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में, उसे विलेख को रद्द कराने (cancellation) के लिए याचिका दाखिल करनी होती है।
- दूसरी ओर, धारा 34 के अंतर्गत, यदि कोई गैर-निष्पादक व्यक्ति (non-executant) यह कहता है कि कोई विलेख अवैध, शून्य (void), या उस पर बाध्यकारी नहीं है, तो वह केवल घोषणा (declaration) मांग सकता है।
इस प्रकार, यदि कोई व्यक्ति किसी विलेख में पक्षकार नहीं है, और केवल यह कहता है कि वह विलेख उस पर लागू नहीं होता, तो उसे उस विलेख को रद्द कराने की आवश्यकता नहीं होती।
विवादित हिब्बा विलेख पर न्यायालय की दृष्टि:
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में वादकर्ता विलेख के निष्पादक नहीं थे, इसलिए उन्हें केवल यह घोषणा प्राप्त करने का अधिकार था कि वह हिब्बा विलेख उनके अधिकारों को प्रभावित नहीं करता। यह दृष्टिकोण सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती निर्णयों के अनुरूप है, जैसे कि Annamalai v. Sri Venkatesa Thayagaraja Mandir और Suhrid Singh v. Randhir Singh।
न्यायिक महत्व और प्रभाव:
यह निर्णय संपत्ति विवादों, विशेष रूप से हिब्बा, वसीयत, या अन्य स्वैच्छिक विलेखों की वैधता को चुनौती देने के मामलों में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्पष्ट करता है कि किस स्थिति में कौन-सा उपचार उचित है: रद्दीकरण (cancellation) या केवल घोषणा (declaration)। साथ ही, यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करके ऐसे लोग जो विलेख में पक्ष नहीं हैं, अनावश्यक रूप से रद्दीकरण की प्रक्रिया द्वारा न्यायालयों का समय नष्ट न करें।
निष्कर्ष:
Hussain Ahmed Choudhury & Ors बनाम Habibur Rahman का निर्णय भारतीय संपत्ति कानून और विशिष्ट राहत अधिनियम की व्याख्या में एक मील का पत्थर है। इसने न केवल विधिक सिद्धांतों को स्पष्ट किया है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया है कि मुकदमेबाजी की प्रकृति वादी की स्थिति के अनुसार न्यायिक रूप से उपयुक्त हो। यह न्यायालय की विवेकपूर्ण और तकनीकी रूप से परिपक्व दृष्टिकोण का प्रतीक है।