“हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत पत्नी द्वारा तलाक याचिका दायर करने के लिए क्षेत्रीय अधिकारिता: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का निर्णय”

“हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत पत्नी द्वारा तलाक याचिका दायर करने के लिए क्षेत्रीय अधिकारिता: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का निर्णय”


परिचय:
हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) के अंतर्गत यदि पत्नी तलाक की याचिका दायर करती है, तो उसे वास्तव में उस न्यायालय की क्षेत्रीय सीमा में निवास करना चाहिए जहाँ याचिका दायर की जा रही है। यह निर्णय सेक्शन 19(iii-a) की व्याख्या के संदर्भ में दिया गया है।


संबंधित प्रावधान: सेक्शन 19(iii-a), हिंदू विवाह अधिनियम, 1955:
सेक्शन 19 के अनुसार, विवाह अधिनियम के अंतर्गत याचिका निम्नलिखित न्यायालयों में दायर की जा सकती है:

  • जहाँ विवाह हुआ हो;
  • जहाँ प्रतिवादी निवास करता हो;
  • यदि याचिकाकर्ता पत्नी है, तो वह जिला न्यायालय जहाँ वह वास्तव में याचिका की प्रस्तुति की तिथि को निवास कर रही हो

यह उप-खंड (iii-a) स्पष्ट रूप से बताता है कि पत्नी द्वारा याचिका उसी क्षेत्र में दायर की जा सकती है जहाँ वह असली और वास्तविक रूप से निवास कर रही हो, न कि केवल अस्थायी या औपचारिक निवास।


उच्च न्यायालय का निर्णय:
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस प्रावधान की व्याख्या करते हुए कहा कि “residing” का अर्थ केवल नाम मात्र का निवास नहीं है, बल्कि वह वास्तविक, स्थायी और ईमानदार निवास होना चाहिए। अगर पत्नी केवल याचिका दाखिल करने की नीयत से किसी स्थान पर जाती है और वहां रहना आरंभ करती है, तो यह क्षेत्रीय अधिकारिता (territorial jurisdiction) को स्थापित नहीं करता।


न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • केवल कानूनी तकनीक के रूप में निवास स्थान बदलना और याचिका दायर करना, न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
  • यदि पत्नी किसी अन्य राज्य या जिले में केवल मुकदमा दायर करने हेतु स्थानांतरित होती है, तो यह “residing” की वास्तविक भावना का उल्लंघन है।
  • न्यायालय को यह देखना होगा कि क्या निवास वास्तविक, स्थायी और स्वतंत्र निर्णय पर आधारित है।

इस निर्णय का महत्व:

  1. फोरम शॉपिंग (Forum Shopping) पर रोक लगेगी।
  2. पति के विरुद्ध अनुचित कानूनी लाभ लेने के प्रयास सीमित होंगे।
  3. क्षेत्रीय अधिकारिता के निर्धारण में स्पष्टता आएगी।
  4. वैवाहिक मुकदमों की निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित होगी।

निष्कर्ष:
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का यह निर्णय तलाक से जुड़े मामलों में क्षेत्रीय अधिकारिता की अवधारणा को सुदृढ़ करता है। यह न केवल न्यायालयों के कार्यक्षेत्र को स्पष्ट करता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि पति-पत्नी के मध्य विवाद न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग के बिना सुलझाए जाएं।