हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: नॉमिनी होने से नहीं मिलती पूरी संपत्ति, वारिसों का भी बराबर अधिकार
प्रस्तावना
भारत में पारिवारिक संपत्ति और सेवा लाभ (Service Benefits) के बंटवारे को लेकर अक्सर विवाद सामने आते हैं। कई बार व्यक्ति यह मान बैठते हैं कि किसी बैंक खाते, बीमा पॉलिसी, पीएफ, पेंशन या अन्य संपत्ति में उनका नाम नॉमिनी (Nominee) के रूप में दर्ज हो जाना उन्हें संपूर्ण संपत्ति का स्वामित्व प्रदान करता है। लेकिन न्यायालय समय-समय पर स्पष्ट कर चुके हैं कि नॉमिनी केवल एक ट्रस्टी (Trustee) होता है, असली मालिकाना हक कानूनी वारिसों (Legal Heirs) का होता है। हाल ही में ग्वालियर हाईकोर्ट ने इसी सिद्धांत को पुनः स्थापित करते हुए एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें सीआरपीएफ जवान अतुल सिंह तोमर की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी और मां के बीच हुए विवाद का निपटारा किया गया।
प्रकरण की पृष्ठभूमि
सीआरपीएफ के जवान अतुल सिंह तोमर की सड़क दुर्घटना में असामयिक मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद उनके सेवा लाभों और संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर विवाद खड़ा हो गया।
- जवान की पत्नी नेहा तोमर का कहना था कि वे नॉमिनी हैं और इसलिए उन्हें संपूर्ण सेवा लाभ और संपत्ति का अधिकार मिलना चाहिए।
- वहीं जवान की मां सुधा तोमर ने दावा किया कि वे भी वैधानिक उत्तराधिकारी (Legal Heir) हैं और पुत्र की संपत्ति पर उनका भी अधिकार है।
जब यह विवाद न्यायालय पहुँचा, तो ग्वालियर हाईकोर्ट ने विस्तार से सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण आदेश दिया।
कोर्ट का निर्णय
हाईकोर्ट ने कहा कि—
- केवल नॉमिनी होना किसी को संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व नहीं देता।
- नॉमिनी का कार्य केवल लाभ की प्राप्ति करना और फिर उसे कानूनी वारिसों में बाँटना होता है।
- उत्तराधिकार कानून (Succession Law) के अनुसार, संपत्ति पर समान रूप से मृतक की पत्नी और मां दोनों का अधिकार है।
- अतः जवान की पत्नी और मां को संपत्ति और सेवा लाभ आधा-आधा बाँटकर दिया जाए।
यह फैसला न केवल मृतक के परिवार के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक कानूनी मार्गदर्शन है।
नॉमिनी की कानूनी स्थिति
भारत में नॉमिनी को लेकर सबसे बड़ी भ्रांति यही है कि लोग इसे “वारिस” मान लेते हैं। लेकिन विभिन्न कानूनों और सुप्रीम कोर्ट/हाईकोर्ट के फैसलों के अनुसार नॉमिनी केवल एक कानूनी प्रतिनिधि (Legal Representative) होता है।
- बैंकिंग कानूनों के तहत, नॉमिनी को खाते की राशि निकालने का अधिकार होता है, परंतु वह इसे अपने पास रखने का अधिकारी नहीं होता।
- बीमा पॉलिसी या पीएफ (PF) में भी नॉमिनी केवल राशि प्राप्त करता है, वास्तविक मालिकाना हक उत्तराधिकार कानून के अनुसार तय होता है।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख फैसले
- Sarla Goel v. Kishan Chand (2009) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नॉमिनी संपत्ति का मालिक नहीं होता, वह केवल राशि प्राप्त कर अन्य वारिसों को सौंपने का माध्यम है।
- Shakti Yezdani v. Jayanand Jayant Salgaonkar (2020, SC) – कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सहकारी समिति अधिनियम (Cooperative Societies Act) में नॉमिनी को केवल प्रबंधन का अधिकार है, मालिकाना हक वैधानिक वारिसों का होता है।
इन फैसलों के आलोक में ग्वालियर हाईकोर्ट का यह निर्णय पूरी तरह से स्थापित न्यायिक सिद्धांतों के अनुरूप है।
उत्तराधिकार कानून का प्रावधान
भारत में संपत्ति के उत्तराधिकार का निर्धारण हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956) सहित अन्य व्यक्तिगत कानूनों (Personal Laws) के अनुसार होता है।
- यदि मृतक व्यक्ति पुरुष है और पीछे पत्नी तथा मां हैं, तो दोनों Class-I Heirs मानी जाती हैं।
- इस स्थिति में संपत्ति और सेवा लाभ दोनों में बराबर का हिस्सा बंटता है।
- नॉमिनी की उपस्थिति या अनुपस्थिति इस बंटवारे को प्रभावित नहीं करती।
इस फैसले का महत्व
ग्वालियर हाईकोर्ट का यह फैसला कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है:
- भ्रांति का निवारण – आम लोगों में यह गलत धारणा है कि नॉमिनी ही मालिक होता है। यह फैसला स्पष्ट करता है कि वास्तविक स्वामित्व वारिसों का होता है।
- परिवारिक विवादों में मार्गदर्शन – संपत्ति बंटवारे के मामलों में यह निर्णय भविष्य में न्यायालयों और परिवारों के लिए एक मिसाल बनेगा।
- समान अधिकार की पुष्टि – यह आदेश महिलाओं के अधिकारों को भी मजबूत करता है, क्योंकि मृतक की पत्नी और मां दोनों को बराबरी का हक दिया गया।
- कानूनी स्पष्टता – यह फैसला नॉमिनी और वारिस के बीच के कानूनी अंतर को और भी स्पष्ट करता है।
सामाजिक प्रभाव
भारतीय समाज में अक्सर देखा जाता है कि मृत्यु के बाद परिवारों में संपत्ति को लेकर विवाद खड़े हो जाते हैं। कई बार नॉमिनी बने व्यक्ति संपत्ति या सेवा लाभ को स्वयं का अधिकार समझ लेते हैं और अन्य वारिसों को वंचित कर देते हैं।
- इस आदेश से यह संदेश जाएगा कि नॉमिनी केवल “ट्रस्टी” है।
- उत्तराधिकार कानून के तहत सभी पात्र वारिसों को हिस्सा मिलेगा।
- इससे परिवारों में होने वाले विवाद और मुकदमेबाजी की संख्या घट सकती है।
व्यावहारिक सुझाव
इस प्रकरण के आलोक में कुछ व्यावहारिक सुझाव भी सामने आते हैं—
- वसीयत (Will) बनवाना – यदि व्यक्ति स्पष्ट करना चाहता है कि उसकी संपत्ति किसे मिलेगी, तो उसे विधिवत वसीयत बनवानी चाहिए।
- कानूनी जानकारी रखना – परिवार के सभी सदस्यों को उत्तराधिकार कानून की जानकारी होनी चाहिए, ताकि विवाद न हो।
- नॉमिनी पर अत्यधिक निर्भर न रहना – केवल नॉमिनी बनाना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि अंततः मालिकाना हक वारिसों का होता है।
- संवाद और समझौता – परिवारों को आपस में संवाद स्थापित कर न्यायपूर्ण बंटवारे की ओर बढ़ना चाहिए।
आलोचनात्मक दृष्टिकोण
कुछ लोग मानते हैं कि नॉमिनी को ही पूर्ण स्वामित्व मिलना चाहिए, क्योंकि मृतक ने जानबूझकर उसी का नाम आगे किया। परंतु यह दृष्टिकोण उत्तराधिकार कानून के विरुद्ध है।
- यदि मृतक वाकई केवल नॉमिनी को सब कुछ देना चाहता था, तो उसे वसीयत बनानी चाहिए थी।
- बिना वसीयत के, केवल नॉमिनी बनाना कानूनी वारिसों के अधिकारों को समाप्त नहीं कर सकता।
निष्कर्ष
ग्वालियर हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल संबंधित परिवार के लिए न्यायपूर्ण समाधान है, बल्कि यह सम्पूर्ण समाज के लिए एक मार्गदर्शक आदेश है। इस फैसले से स्पष्ट होता है कि—
- नॉमिनी केवल राशि/संपत्ति प्राप्त करने वाला प्रतिनिधि है, मालिक नहीं।
- वास्तविक मालिकाना हक उत्तराधिकार कानून के अनुसार कानूनी वारिसों का होता है।
- पत्नी और मां जैसे Class-I Heirs को संपत्ति और सेवा लाभ में बराबर हिस्सा मिलेगा।
यह फैसला उन सभी लोगों के लिए एक चेतावनी है, जो नॉमिनी होने को ही संपत्ति पर पूर्ण अधिकार मानते हैं। भविष्य में, यदि लोग अपनी संपत्ति का वास्तविक उत्तराधिकार तय करना चाहते हैं, तो उन्हें वसीयत बनानी होगी। अन्यथा, संपत्ति का बंटवारा कानून के अनुसार सभी वारिसों में होगा।