हाईकोर्ट का अनोखा फैसला: युवती के फोटो पर अभद्र टिप्पणी और स्टॉकिंग के आरोपी को सोशल मीडिया से तीन साल दूर रहने की शर्त पर जमानत
प्रस्तावना
डिजिटल युग में सोशल मीडिया हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका है। यह संवाद, जानकारी साझा करने और अभिव्यक्ति का माध्यम है। लेकिन जिस तरह इसका सकारात्मक उपयोग होता है, उसी तरह इसका दुरुपयोग भी समाज के लिए खतरा बनता जा रहा है। खासकर महिलाओं और युवतियों के खिलाफ ऑनलाइन उत्पीड़न, अभद्र टिप्पणी, स्टॉकिंग और निजी फोटो/वीडियो से छेड़छाड़ जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। ऐसे में न्यायालय की भूमिका केवल सजा देने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वह अपराध रोकथाम और सुधार के बीच संतुलन बनाने का भी प्रयास करता है।
हाल ही में राजस्थान हाईकोर्ट का एक ऐसा ही फैसला सामने आया है, जिसने समाज और कानून की दृष्टि से एक नई राह दिखाई। कोर्ट ने एक युवक को युवती की फोटो पर अभद्र टिप्पणी और स्टॉकिंग करने के मामले में जमानत तो दी, लेकिन इसके साथ यह शर्त रखी कि आरोपी तीन साल तक सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करेगा।
घटना की पृष्ठभूमि
यह मामला करौली जिले के हिंडौन सिटी का है। फरवरी 2025 में वहां की एक शादीशुदा युवती ने थाने में एफआईआर दर्ज कराई। शिकायत में आरोप था कि एक 19 वर्षीय युवक ने उसकी फोटो को एडिट करके उसमें हथियार (जैसे चाकू आदि) जोड़ दिए और उन्हें सोशल मीडिया पर शेयर किया। इसके साथ ही युवक ने अभद्र टिप्पणी भी की और लगातार युवती का पीछा कर उसे परेशान करने लगा।
पीड़िता का कहना था कि आरोपी उसे धमकाता है और उसके वैवाहिक जीवन को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। इस आधार पर पुलिस ने मामला दर्ज कर युवक को गिरफ्तार किया।
जमानत याचिका और पक्षकारों की दलीलें
- याचिकाकर्ता (आरोपी) की ओर से दलीलें
- युवक की उम्र महज 19 साल है, वह अभी पढ़ाई कर रहा है।
- उसने जानबूझकर अपराध नहीं किया बल्कि यह एक तरह की नादानी थी।
- मामले की जांच पूरी हो चुकी है, इसलिए उसके फरार होने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की संभावना नहीं है।
- अधिवक्ता गिरीश खंडेलवाल ने यह भी कहा कि आरोपी का भविष्य दांव पर है और उसे सुधार का अवसर मिलना चाहिए।
- पीड़िता और सरकारी पक्ष की दलीलें
- आरोपी ने लगातार युवती को परेशान किया है।
- उस पर धमकाने और वैवाहिक जीवन को खराब करने के प्रयास का आरोप है।
- जमानत मिलने पर आरोपी दोबारा पीड़िता को नुकसान पहुंचा सकता है।
- ऐसे मामलों में सख्ती जरूरी है ताकि समाज में गलत संदेश न जाए।
हाईकोर्ट का आदेश
न्यायमूर्ति अशोक कुमार जैन ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जमानत याचिका स्वीकार की, लेकिन इसके साथ कई सख्त शर्तें लगाईं।
- सोशल मीडिया से दूरी
- आरोपी तीन साल तक किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल नहीं करेगा।
- वह अपने नाम या किसी अन्य नाम से नया खाता भी नहीं बनाएगा।
- फोटो और वीडियो हटाना
- आरोपी को पीड़िता और उसके परिवार से जुड़े फोटो व वीडियो को क्लाउड या किसी भी अन्य स्टोरेज से हटाना होगा।
- भविष्य की निगरानी
- आरोपी यदि किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल पाया गया तो उसकी जमानत तुरंत रद्द कर दी जाएगी।
- यदि उसने पीड़िता या उसके परिवार को किसी भी तरह से नुकसान पहुँचाया तो जमानत स्वतः समाप्त हो जाएगी।
कानूनी और सामाजिक महत्व
यह आदेश कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है:
- साइबर अपराध पर नियंत्रण : यह दिखाता है कि अदालतें डिजिटल अपराधों को गंभीरता से ले रही हैं।
- सुधारात्मक दृष्टिकोण : सजा देने के बजाय आरोपी को सुधार का मौका दिया गया, जिससे वह भविष्य में अपराध से दूर रह सके।
- पीड़िता की सुरक्षा : कोर्ट ने साफ किया कि पीड़िता की निजता और सुरक्षा सर्वोच्च है।
- भविष्य के लिए नजीर : यह आदेश अन्य मामलों में भी उदाहरण बन सकता है, जहां सोशल मीडिया दुरुपयोग हुआ है।
सामाजिक दृष्टिकोण
आजकल सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणी, स्टॉकिंग और निजी फोटो से छेड़छाड़ जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। इस मामले में हाईकोर्ट का निर्णय युवाओं को यह सिखाता है कि—
- सोशल मीडिया पर की गई हर गतिविधि कानूनी दायरे में आती है।
- ऑनलाइन उत्पीड़न भी अपराध है, जिसे अदालत हल्के में नहीं लेती।
- कानून केवल सजा देने तक सीमित नहीं, बल्कि सुधार और सामाजिक संतुलन की दिशा में भी कदम उठाता है।
संभावित प्रभाव
- युवाओं पर रोकथामकारी असर : तीन साल तक सोशल मीडिया से दूरी की शर्त युवा पीढ़ी को साइबर अपराध की गंभीरता समझने में मदद करेगी।
- न्यायपालिका की नई सोच : यह आदेश दिखाता है कि अदालतें अब साइबर अपराधों से निपटने के लिए नए और व्यावहारिक उपाय तलाश रही हैं।
- समाज में जागरूकता : यह फैसला समाज में संदेश देगा कि अभद्र टिप्पणी या फोटो से छेड़छाड़ जैसे कार्यों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
निष्कर्ष
राजस्थान हाईकोर्ट का यह फैसला भारतीय न्यायपालिका की संवेदनशीलता और संतुलन का उदाहरण है। एक ओर जहां इसने पीड़िता की सुरक्षा और निजता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, वहीं दूसरी ओर आरोपी को सुधार का अवसर भी प्रदान किया।
सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वाले युवाओं के लिए यह चेतावनी है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर की गई गलती भी गंभीर परिणाम ला सकती है। यह आदेश न केवल कानून के दायरे में महत्वपूर्ण है बल्कि समाज को यह सिखाता है कि जिम्मेदारी से सोशल मीडिया का उपयोग करना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
✅ यह फैसला भविष्य में साइबर अपराध से जुड़े मामलों में मार्गदर्शक सिद्धांत साबित होगा।