शीर्षक:
“हरवीर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य: इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि को निरस्त करने का निर्णय – धारा 302/34 IPC एवं आर्म्स एक्ट की धारा 25(1)(a) के अंतर्गत पुनरीक्षण”
लेख:
दिनांक 9 मई 2025 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हरवीर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (Crl. Appeal No.- 2110 of 2014) में एक महत्वपूर्ण निर्णय पारित किया, जिसमें सत्र न्यायालय द्वारा दी गई दोषसिद्धि को खारिज करते हुए आरोपी हरवीर को दोषमुक्त कर दिया गया। यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 302 सहपठित धारा 34 तथा शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25(1)(a) के अंतर्गत था।
पृष्ठभूमि:
मूल रूप से हरवीर पर आरोप था कि उसने अन्य सह-आरोपियों के साथ मिलकर एक व्यक्ति की हत्या की थी और उसके पास से देशी तमंचा और कारतूस की बरामदगी दिखाई गई थी। सत्र न्यायालय ने अभियोजन के साक्ष्य को पर्याप्त मानते हुए उसे दोषी करार दिया था। इस निर्णय के विरुद्ध हरवीर ने उच्च न्यायालय में आपराधिक अपील दायर की।
मुख्य मुद्दा:
इस अपील में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा था बरामदगी मेमो (Recovery Memo) की प्रमाणिकता और उसका साक्ष्य मूल्य। याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि:
- बरामदगी मेमो को केवल न्यायालय में प्रस्तुत कर देना और उसका प्रदर्शित हो जाना ही इसे वैध साक्ष्य नहीं बनाता।
- अन्वेषण अधिकारी (Investigating Officer) ने न तो खुलासा बयान (disclosure statement) की परिस्थितियों को ठीक से स्पष्ट किया और न ही recovery की वास्तविकता को अपनी गवाही से पुष्ट किया।
- जो स्वतंत्र गवाह बरामदगी के समय मौजूद होना बताया गया, उसने न्यायालय में यह स्वीकार किया कि उसने न तो कोई बरामदगी देखी और न ही मौके पर वह मौजूद था। उसने यह भी कहा कि पुलिस स्टेशन में उससे बाद में हस्ताक्षर कराए गए।
न्यायालय का निर्णय:
माननीय उच्च न्यायालय ने कहा कि:
- केवल recovery memo को पेश करना और प्रदर्शित करना पर्याप्त नहीं होता जब तक कि उसे स्वतंत्र, प्रामाणिक और विश्वसनीय गवाही से समर्थन न मिले।
- जब स्वतंत्र गवाह बरामदगी से इनकार कर रहा है और अन्वेषण अधिकारी की गवाही भी recovery की सटीकता पर प्रकाश नहीं डालती, तो ऐसे साक्ष्य को प्रमाणिक नहीं माना जा सकता।
- बरामदगी गंभीर त्रुटियों (serious infirmities) से ग्रस्त है और इस आधार पर अभियोजन की पूरी कहानी अविश्वसनीय हो जाती है।
निष्कर्ष:
उक्त तथ्यों और कानून के आलोक में उच्च न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष हर संदेह से परे अपराध को सिद्ध करने में असफल रहा है। इसलिए, सत्र न्यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि और दंडादेश को अस्थिर ठहराया गया और अपील स्वीकार कर ली गई।
निर्णय:
- दोषसिद्धि रद्द (Conviction Set Aside)
- अपील स्वीकार (Appeal Allowed)
- हरवीर को बरी किया गया (Harvir Acquitted)
न्यायिक महत्व:
यह निर्णय न्यायशास्त्र में इस सिद्धांत को और बल प्रदान करता है कि किसी भी आपराधिक मामले में साक्ष्य की साख सर्वोपरि है। recovery memo जैसी प्रक्रिया संबंधी सामग्री केवल तभी प्रभावी होती है जब उसे स्वतंत्र और भरोसेमंद गवाही से बल मिले। बिना वैध समर्थन के केवल दस्तावेजी साक्ष्य आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं माने जा सकते।