“‘हम में नहीं, न्याय में देखें भगवान’: सुप्रीम कोर्ट की संवेदनशील और संतुलित टिप्पणी”
भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान उस समय भावनात्मक वातावरण बन गया जब एक वकील ने जजों को भगवान का रूप बताते हुए स्वयं को मामले से अलग करने की अनुमति मांगी। इस पर न्यायालय की पीठ ने बेहद संतुलित और न्यायप्रिय टिप्पणी की—
“हम में नहीं, न्याय में भगवान को देखें।”
मामले की पृष्ठभूमि:
- यह मामला उत्तर प्रदेश के एक मंदिर संपत्ति विवाद से संबंधित था, जिसकी सुनवाई न्यायमूर्ति एम. एम. सुंद्रेश और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ कर रही थी।
- सुनवाई के दौरान एक पक्षकार वकील ने कोर्ट से मामले से खुद को अलग करने की अनुमति मांगी।
- वकील ने अपने निवेदन में यह कहा कि वे जजों में भगवान का स्वरूप देखते हैं, और इस कारण से वे इस संवेदनशील धार्मिक मामले की पैरवी से असहज महसूस कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की सधी हुई प्रतिक्रिया:
इस भावुक स्थिति पर कोर्ट ने गहरी संवेदनशीलता दिखाते हुए टिप्पणी की:
“आप हम में भगवान मत देखिए, भगवान को न्याय में देखिए।”
यह कथन न केवल एक न्यायिक मर्यादा का प्रतीक है, बल्कि यह इस बात को भी रेखांकित करता है कि न्यायपालिका को निष्पक्षता और कानून के सिद्धांतों से ही संचालित होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत भक्ति या आस्था से।
इस टिप्पणी का संवैधानिक और नैतिक महत्व:
- संविधान का आधार न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व है। किसी भी न्यायाधीश का दायित्व केवल संविधान और कानून के प्रति होता है, न कि व्यक्तिगत आस्था के प्रति।
- सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि न्याय में भगवान को देखिए, एक संवेदनशील और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- यह टिप्पणी भारत की धर्मनिरपेक्ष न्याय प्रणाली के मूल्यों की पुष्टि करती है, जहाँ न्यायाधीश स्वयं को ईश्वर नहीं, बल्कि संविधान और विधि के सेवक मानते हैं।
न्यायपालिका में आस्था बनाम भक्ति:
- जनता और वकीलों में न्यायपालिका के प्रति सम्मान होना जरूरी है, लेकिन यह सम्मान तर्क, मर्यादा और विधिक सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए।
- किसी जज को भगवान का स्वरूप कहना, उनकी व्यक्तिगत निष्पक्षता और न्यायिक उत्तरदायित्व से ध्यान हटाने का खतरा पैदा कर सकता है।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल एक व्यक्तिगत मामले की प्रतिक्रिया थी, बल्कि यह न्यायपालिका की सिद्धांतगत दृढ़ता और तटस्थता का भी प्रतीक है।
“हम में नहीं, न्याय में भगवान को देखिए”—यह एक ऐसा वाक्य है जो भारतीय न्याय प्रणाली की आत्मा को दर्शाता है: कि न्याय सबसे बड़ा धर्म है, और वही सच्चा ईश्वर है।