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हत्या (Murder) और दोषपूर्ण मानव वध (Culpable Homicide not amounting to Murder): भारतीय दंड संहिता / भारतीय न्याय संहिता के परिप्रेक्ष्य में एक विशद विश्लेषण

हत्या (Murder) और दोषपूर्ण मानव वध (Culpable Homicide not amounting to Murder): भारतीय दंड संहिता / भारतीय न्याय संहिता के परिप्रेक्ष्य में एक विशद विश्लेषण

प्रस्तावना

भारतीय दंड संहिता, 1860 (अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 में सम्मिलित प्रावधान) अपराधशास्त्र और दंड विधि का सबसे महत्वपूर्ण आधार है। इसमें विभिन्न प्रकार के अपराधों और उनसे संबंधित दंडों का उल्लेख किया गया है। अपराधों में “मानव वध” (Homicide) सबसे गंभीर अपराधों में गिना जाता है, क्योंकि यह सीधे-सीधे किसी मनुष्य के जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है।

मानव वध को दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है –

  1. हत्या (Murder – धारा 300 IPC / धारा 101 BNS)
  2. दोषपूर्ण मानव वध जो हत्या के समान नहीं है (Culpable Homicide not amounting to Murder – धारा 299 IPC / धारा 100 BNS)

इन दोनों के बीच सूक्ष्म अंतर है। सामान्य भाषा में कहा जाए तो हर हत्या एक दोषपूर्ण मानव वध है, लेकिन हर दोषपूर्ण मानव वध हत्या नहीं होता। न्यायालयों ने भी कई ऐतिहासिक निर्णयों में इस अंतर को स्पष्ट किया है।


1. मानव वध (Homicide) की सामान्य परिभाषा

Homicide का अर्थ है – किसी मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य के जीवन को समाप्त करना।

  • यह वैध (Lawful Homicide) भी हो सकता है, जैसे आत्मरक्षा में की गई हत्या।
  • यह अवैध (Unlawful Homicide) भी हो सकता है, जैसे हत्या या दोषपूर्ण मानव वध।

2. दोषपूर्ण मानव वध (Culpable Homicide – धारा 299 IPC / धारा 100 BNS)

धारा 299 के अनुसार –
“जब कोई व्यक्ति ऐसी मंशा (intention) से कोई कृत्य करता है जिससे मृत्यु हो, या ऐसा ज्ञान (knowledge) रखता है कि उसके कृत्य से मृत्यु होगी, अथवा इतनी गंभीर चोट पहुँचेगी जिससे मृत्यु की संभावना है, तो उसे दोषपूर्ण मानव वध कहा जाएगा।”

महत्वपूर्ण तत्व:

  1. मृत्यु का कारण बनने वाला कृत्य
  2. मंशा या ज्ञान होना
  3. मृत्यु की संभावना का होना

उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति गंभीर चोट पहुँचाता है और उसे पता है कि चोट से मृत्यु हो सकती है, और पीड़ित की मृत्यु हो जाती है, तो यह दोषपूर्ण मानव वध है।


3. हत्या (Murder – धारा 300 IPC / धारा 101 BNS)

धारा 300 के अनुसार – दोषपूर्ण मानव वध हत्या में तब परिवर्तित होता है जब:

  1. अपराधी को यह मंशा हो कि पीड़ित की मृत्यु निश्चित हो।
  2. अपराधी को यह ज्ञान हो कि चोट इतनी गंभीर है कि उससे मृत्यु निश्चित रूप से होगी।
  3. चोट जानबूझकर इतनी गंभीर परिस्थिति में पहुँचाई गई हो जिससे यह निश्चित हो कि मृत्यु ही होगी।

अपवाद (Exceptions):
धारा 300 में पाँच अपवाद दिए गए हैं जहाँ दोषपूर्ण मानव वध हत्या नहीं माना जाएगा, जैसे –

  • आकस्मिक उकसावे (sudden provocation) में हत्या करना।
  • आत्मरक्षा की सीमा से अधिक बल का प्रयोग।
  • बिना किसी पूर्व योजना के अचानक लड़ाई में की गई हत्या।

4. हत्या और दोषपूर्ण मानव वध में अंतर

आधार दोषपूर्ण मानव वध (Culpable Homicide) हत्या (Murder)
परिभाषा धारा 299 / धारा 100 BNS धारा 300 / धारा 101 BNS
मंशा मृत्यु या गंभीर चोट पहुँचाने का सामान्य इरादा मृत्यु निश्चित रूप से करने का विशेष इरादा
ज्ञान मृत्यु हो सकती है मृत्यु होना निश्चित है
गंभीरता कम गंभीर अपराध सबसे गंभीर अपराध
दंड धारा 304 के अंतर्गत – उम्रकैद / 10 वर्ष तक की सजा धारा 302 के अंतर्गत – मृत्यु दंड या आजीवन कारावास

5. न्यायालयों के प्रमुख निर्णय

(i) Reg v. Govinda (1876)

  • यह पहला ऐतिहासिक मामला था जिसमें बॉम्बे उच्च न्यायालय ने धारा 299 और 300 के बीच का अंतर स्पष्ट किया।
  • तथ्य: अभियुक्त ने पत्नी को मुक्का मारा और उस पर पैर रखा जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
  • निर्णय: यह हत्या नहीं बल्कि दोषपूर्ण मानव वध है क्योंकि अभियुक्त की पत्नी को मारने की मंशा नहीं थी।

(ii) Virsa Singh v. State of Punjab (1958, SC)

  • अभियुक्त ने भाले से चोट पहुँचाई जिससे पीड़ित की मृत्यु हो गई।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि चोट जानबूझकर दी गई है और वह “गंभीर और घातक” है, तो यह हत्या होगी।

(iii) State of Andhra Pradesh v. Rayavarapu Punnayya (1976, SC)

  • अदालत ने कहा:
    “Culpable Homicide is the genus and Murder is its species. Every murder is culpable homicide but every culpable homicide is not murder.”
  • इस निर्णय ने दोनों के बीच शास्त्रीय अंतर स्थापित किया।

(iv) K.M. Nanavati v. State of Maharashtra (1962, SC)

  • यह मामला “आकस्मिक उकसावे” (sudden provocation) के अंतर्गत प्रसिद्ध है।
  • अभियुक्त ने अपनी पत्नी के प्रेमी की हत्या कर दी।
  • न्यायालय ने इसे हत्या न मानकर दोषपूर्ण मानव वध माना क्योंकि यह आकस्मिक उकसावे की स्थिति में हुआ।

(v) Jagriti Devi v. State of Himachal Pradesh (2009, SC)

  • अदालत ने कहा कि जहाँ मृत्यु का इरादा नहीं बल्कि केवल चोट पहुँचाने का इरादा हो, वहाँ अपराध धारा 304 (Culpable Homicide not amounting to Murder) के अंतर्गत आएगा।

6. व्यवहारिक दृष्टिकोण से अंतर

  • यदि कोई व्यक्ति हथियार से जानलेवा वार करता है और यह स्पष्ट है कि उसका उद्देश्य मृत्यु करना है → हत्या (302 IPC / 101 BNS)
  • यदि किसी झगड़े या उकसावे में अचानक चोट लग जाती है जिससे मृत्यु हो जाती है → दोषपूर्ण मानव वध (304 IPC / 100 BNS)
  • इस प्रकार, अंतर मुख्य रूप से इरादे और ज्ञान की गहनता पर निर्भर करता है।

7. दंड का अंतर

  • हत्या (धारा 302 IPC / धारा 101 BNS):
    • दंड – मृत्यु दंड या आजीवन कारावास + जुर्माना।
  • दोषपूर्ण मानव वध (धारा 304 IPC / धारा 100 BNS):
    • (i) यदि मृत्यु करने का इरादा था → आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक का कठोर कारावास।
    • (ii) यदि केवल मृत्यु की संभावना का ज्ञान था → 10 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना।

8. भारतीय न्याय संहिता (BNS, 2023) में स्थिति

भारतीय न्याय संहिता, 2023 में भी हत्या और दोषपूर्ण मानव वध के प्रावधान लगभग समान रूप से संरक्षित किए गए हैं।

  • धारा 100 BNS – दोषपूर्ण मानव वध।
  • धारा 101 BNS – हत्या।
  • भाषा और संरचना में हल्का संशोधन है, परंतु मूलभूत तत्व (इरादा और ज्ञान का अंतर) वही बने हुए हैं।

निष्कर्ष

हत्या और दोषपूर्ण मानव वध के बीच का अंतर अत्यंत सूक्ष्म किन्तु महत्वपूर्ण है। दोनों ही अपराध मानव जीवन से जुड़े हैं, परंतु उनका भेद अपराधी की मंशा और ज्ञान की गहराई पर आधारित है।

  • यदि मृत्यु का निश्चित इरादा है → यह हत्या है।
  • यदि केवल संभावना या सामान्य ज्ञान है → यह दोषपूर्ण मानव वध है।

न्यायालयों ने कई बार इस भेद को रेखांकित किया है ताकि अपराध की गंभीरता के अनुरूप न्यायसंगत दंड दिया जा सके। यही कारण है कि भारतीय विधि में हत्या और दोषपूर्ण मानव वध को अलग-अलग धाराओं में विनिर्दिष्ट किया गया है।

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि हर हत्या दोषपूर्ण मानव वध है, लेकिन हर दोषपूर्ण मानव वध हत्या नहीं है।