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हत्या (Murder) और आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide not amounting to Murder)

हत्या (Murder) और आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide not amounting to Murder)

भूमिका

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC) में मानव वध संबंधी अपराधों का विशेष स्थान है। किसी भी व्यक्ति का जीवन समाज और कानून की दृष्टि में सर्वोपरि है। इसलिए किसी मनुष्य की मृत्यु किसी अन्य व्यक्ति के क्रियाकलाप से होना, कानून द्वारा सबसे गंभीर अपराध माना गया है।
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धाराएँ 299 से 304 तक मानव वध (Homicide) से संबंधित हैं। इन धाराओं में हत्या (Murder) और आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide) को अलग-अलग रूप में परिभाषित किया गया है।

यह समझना आवश्यक है कि प्रत्येक हत्या (Murder) एक आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide) है, किंतु प्रत्येक आपराधिक मानव वध हत्या नहीं होता। हत्या और गैर-हत्या योग्य मानव वध (Culpable Homicide not amounting to Murder) के बीच अंतर मुख्यतः अपराधी की मानसिक स्थिति (Mens Rea) और परिस्थितियों पर आधारित है।


हत्या (Murder) की परिभाषा – धारा 300 IPC

भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के अनुसार, जब कोई आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide) निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है, तो वह हत्या (Murder) कहलाता है –

  1. जब अपराधी का उद्देश्य सीधे-सीधे किसी की मृत्यु कारित करना हो।
  2. जब अपराधी का उद्देश्य ऐसा शारीरिक आघात पहुँचाना हो, जो उसे ज्ञात है कि विशेष रूप से उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकता है।
  3. जब अपराधी का उद्देश्य ऐसा घाव देना हो जो सामान्य परिस्थितियों में मृत्यु का कारण बनने के लिए पर्याप्त हो।
  4. जब अपराधी को यह ज्ञान हो कि उसका कार्य इतना खतरनाक है कि उससे निश्चित रूप से मृत्यु होगी या ऐसा घाव होगा जो मृत्यु का कारण बनेगा, और इसके बावजूद वह कार्य करता है।

इस प्रकार हत्या वह स्थिति है जहाँ अपराधी का इरादा (Intention) स्पष्ट रूप से मृत्यु की ओर हो या उसे निश्चित रूप से मृत्यु के परिणाम का ज्ञान हो।

हत्या की दंडनीयता – धारा 302 IPC

भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के अनुसार, हत्या के लिए दंड मृत्युदंड या आजीवन कारावास और साथ ही जुर्माना हो सकता है।


आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide) की परिभाषा – धारा 299 IPC

भारतीय दंड संहिता की धारा 299 में आपराधिक मानव वध को इस प्रकार परिभाषित किया गया है –
जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे कार्य से मृत्यु कारित करता है,

  1. जिसका उद्देश्य मृत्यु कारित करना है, या
  2. जिसका उद्देश्य ऐसा शारीरिक आघात पहुँचाना है जो मृत्यु की संभावना उत्पन्न कर सकता है, या
  3. जिसके संबंध में अपराधी को यह ज्ञान हो कि उसका कार्य मृत्यु कारित करने की संभावना रखता है।

तो ऐसी मृत्यु आपराधिक मानव वध कहलाती है।


आपराधिक मानव वध जो हत्या नहीं है (Culpable Homicide not amounting to Murder)

धारा 300 में ही कुछ अपवाद (Exceptions) दिए गए हैं, जिनके अंतर्गत आपराधिक मानव वध हत्या नहीं माना जाता। इन्हीं स्थितियों को “Culpable Homicide not amounting to Murder” कहा जाता है।

धारा 300 के अपवाद

  1. गंभीर और अचानक उकसावा (Grave and Sudden Provocation):
    यदि अपराधी को गंभीर और अचानक उकसावा मिले और आत्म-नियंत्रण खोकर उसने मृत्यु कारित कर दी, तो यह हत्या नहीं बल्कि आपराधिक मानव वध माना जाएगा।
    उदाहरण: नानावटी बनाम महाराष्ट्र राज्य (1962) – अचानक पत्नी के अवैध संबंध की जानकारी मिलने पर अभियुक्त ने हत्या कर दी।
  2. निजी प्रतिरक्षा (Private Defence):
    यदि कोई व्यक्ति आत्मरक्षा में अपनी शक्ति का अतिक्रमण कर देता है और इससे मृत्यु हो जाती है, तो भी यह हत्या नहीं होगी।
  3. लोक सेवक द्वारा शक्ति का अतिक्रमण (Public Servant Exception):
    यदि कोई लोक सेवक न्याय या लोक-शांति के हित में शक्ति का प्रयोग करते समय सीमाओं का अतिक्रमण कर देता है और मृत्यु हो जाती है, तो यह हत्या नहीं मानी जाएगी।
  4. अचानक झगड़ा (Sudden Fight):
    यदि बिना पूर्व-नियोजन के अचानक झगड़ा हो और उसी दौरान आवेश में मृत्यु हो जाए, तो इसे हत्या नहीं माना जाएगा।
  5. सहमति (Consent):
    यदि मृतक (18 वर्ष से ऊपर) ने मृत्यु का जोखिम लेने के लिए सहमति दी हो, तो यह हत्या नहीं मानी जाएगी।

दंड – धारा 304 IPC

  • भाग I: यदि मृत्यु कारित करने का इरादा था → दंड आजीवन कारावास या अधिकतम 10 वर्ष कारावास और जुर्माना।
  • भाग II: यदि केवल मृत्यु की संभावना का ज्ञान था, पर इरादा नहीं था → अधिकतम 10 वर्ष कारावास या जुर्माना या दोनों।

हत्या और आपराधिक मानव वध (जो हत्या नहीं है) में अंतर

आधार हत्या (Murder) – धारा 300 आपराधिक मानव वध जो हत्या नहीं है (Culpable Homicide not amounting to Murder) – धारा 299/304
स्वभाव हत्या, आपराधिक मानव वध का सबसे गंभीर रूप है। यह आपराधिक मानव वध का कम गंभीर रूप है।
इरादा/ज्ञान (Mens Rea) अपराधी का इरादा मृत्यु कारित करने का स्पष्ट होता है या उसे निश्चित ज्ञान होता है कि मृत्यु होगी। यहाँ इरादा या ज्ञान अपेक्षाकृत कम स्तर का होता है। कभी-कभी केवल संभावना का ज्ञान होता है।
परिस्थितियाँ अक्सर पूर्व-नियोजित, क्रूर या जानबूझकर किया गया कृत्य। प्रायः अचानक झगड़े, उत्तेजना, आत्मरक्षा या लोक सेवक के अतिक्रमण जैसी परिस्थितियों में।
मृत्यु की संभावना मृत्यु लगभग निश्चित परिणाम है। मृत्यु केवल संभावित परिणाम है।
दंड धारा 302 – मृत्युदंड या आजीवन कारावास और जुर्माना। धारा 304 – आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक कारावास (भाग I), अथवा 10 वर्ष तक कारावास/जुर्माना (भाग II)।
उदाहरण आरोपी ने जानबूझकर छुरा घोंपकर पीड़ित की हत्या की। आरोपी ने अचानक झगड़े में आवेश में वार किया जिससे मृत्यु हो गई।

न्यायालयीन व्याख्या (Judicial Interpretation)

  1. State of Andhra Pradesh v. R. Punnayya (1976):
    सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि Culpable Homicide Genus (सामान्य वर्ग) है और Murder उसका Species (विशेष वर्ग) है।
  2. Virsa Singh v. State of Punjab (1958):
    न्यायालय ने कहा कि यदि अभियोजन यह सिद्ध कर दे कि अभियुक्त ने जानबूझकर ऐसा घाव पहुँचाया जो सामान्यतः मृत्यु का कारण बन सकता है, तो यह हत्या होगी।
  3. K.M. Nanavati v. State of Maharashtra (1962):
    इस मामले में न्यायालय ने “अचानक और गंभीर उकसावे” (Grave and Sudden Provocation) के सिद्धांत की व्याख्या की।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि हत्या और आपराधिक मानव वध (जो हत्या नहीं है) दोनों ही मानव जीवन के विरुद्ध गंभीर अपराध हैं, किन्तु इन दोनों के बीच का मुख्य अंतर इरादे और ज्ञान की तीव्रता तथा परिस्थितियों पर आधारित है। हत्या में अपराधी का उद्देश्य मृत्यु कारित करना या ऐसा घाव देना है जिससे निश्चित रूप से मृत्यु हो, जबकि आपराधिक मानव वध (जो हत्या नहीं है) में यह इरादा या ज्ञान सीमित स्तर पर होता है और प्रायः अचानक परिस्थितियों या उकसावे के कारण यह कृत्य होता है।
इस प्रकार भारतीय दंड संहिता ने अपराध की गंभीरता के आधार पर इन दोनों अपराधों में अंतर करके न्याय की दृष्टि से उपयुक्त दंड व्यवस्था की है।