शीर्षक: “स्वीकृत और अप्रत्याहृत उपहार को वारिस बाद में रद्द नहीं कर सकते: कलकत्ता हाईकोर्ट ने विभाजन विवाद में गिफ्ट डीड को वैध “
परिचय:
कलकत्ता हाईकोर्ट ने संपत्ति के उपहार (Gift) से संबंधित एक अहम फैसले में कहा है कि यदि कोई उपहार एक बार प्राप्तकर्ता (Donee) द्वारा स्वीकृत कर लिया गया है और दाता (Donor) द्वारा उसे वापस नहीं लिया गया है, तो उस उपहार को बाद में दाता के वारिस (heirs) द्वारा रद्द नहीं किया जा सकता। यह फैसला संपत्ति के विभाजन विवाद में गिफ्ट डीड की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनाया गया।
मामले की पृष्ठभूमि:
मामला एक पारिवारिक विभाजन विवाद से जुड़ा हुआ था, जिसमें संपत्ति के एक हिस्से को गिफ्ट डीड (Gift Deed) के माध्यम से एक सदस्य को दिया गया था। यह गिफ्ट दाता ने स्वेच्छा से और कानूनी प्रक्रिया के तहत किया था। बाद में, दाता की मृत्यु के पश्चात अन्य पारिवारिक सदस्य (उत्तराधिकारियों) ने इस गिफ्ट डीड को चुनौती देते हुए दावा किया कि यह गिफ्ट रद्द किया जाना चाहिए और उस हिस्से को फिर से पारिवारिक संपत्ति के रूप में पुनः विभाजित किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं की दलील:
याचिकाकर्ताओं (दाता के वारिसों) का तर्क था कि:
- गिफ्ट डीड संपत्ति के असमान विभाजन का कारण बना है।
- दाता वृद्ध और कमजोर मानसिक स्थिति में थे।
- गिफ्ट डीड पर पारिवारिक सहमति नहीं ली गई थी।
प्रतिवादी की दलील:
गिफ्ट प्राप्तकर्ता (Donee) ने अदालत को बताया कि:
- गिफ्ट पूरी तरह से स्वेच्छा से किया गया था।
- डीड को रजिस्टर्ड कराया गया और इसे कानून के सभी प्रावधानों का पालन करते हुए निष्पादित किया गया।
- दाता के जीवनकाल में डीड को कभी भी रद्द नहीं किया गया।
कलकत्ता हाईकोर्ट का निर्णय:
माननीय न्यायमूर्ति की एकल पीठ ने यह निर्णय सुनाया कि:
- भारतीय ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 की धारा 122 के अनुसार, उपहार एक बिना किसी विचार (consideration) के स्वैच्छिक संपत्ति का अंतरण होता है, जो स्वीकृति के साथ पूर्ण हो जाता है।
- यदि गिफ्ट डीड एक बार दाता द्वारा निष्पादित कर दी गई है और प्राप्तकर्ता द्वारा उसे स्वीकार कर लिया गया है, और यदि दाता ने उसे अपने जीवनकाल में रद्द नहीं किया, तो वह डीड पूरी तरह वैध है और वारिस उसे बाद में रद्द नहीं कर सकते।
- दाता की मृत्यु के बाद वारिसों को यह अधिकार नहीं है कि वे दाता की मंशा को पलट सकें या उपहार को अवैध घोषित कर सकें, जब तक धोखाधड़ी, दबाव या अन्य वैध आधार न हो।
न्यायिक टिप्पणी:
अदालत ने टिप्पणी की:
“A gift, once executed and accepted, completes the transfer. It cannot be annulled by successors unless vitiated by fraud or coercion.”
न्याय का महत्व:
यह निर्णय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पारिवारिक संपत्ति के उपहार और उत्तराधिकार के मामलों में एक स्पष्ट और मजबूत दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि:
- स्वीकृत उपहार डीड को वारिस रद्द नहीं कर सकते।
- गिफ्ट में स्पष्टता और विधिक वैधता होनी चाहिए।
- एक बार वैध गिफ्ट डीड बनने के बाद उसका परित्याग केवल दाता कर सकता है, वारिस नहीं।
निष्कर्ष:
कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला उपहार (Gift Deed) और संपत्ति विवादों में एक महत्वपूर्ण नजीर (precedent) के रूप में देखा जाएगा। यह भविष्य में उन मामलों में मददगार सिद्ध होगा, जहां संपत्ति के उपहार के बाद वारिस उन्हें चुनौती देने का प्रयास करते हैं। इस निर्णय से पारिवारिक संपत्ति मामलों में कानूनी स्पष्टता और स्थिरता को बल मिलेगा।