स्वास्थ्य और दवा कानूनः नागरिकों के अधिकार और सुरक्षा
प्रस्तावना
स्वास्थ्य हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और यह किसी भी राष्ट्र के विकास का आधार स्तंभ है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार में स्वास्थ्य का अधिकार निहित है। जब स्वास्थ्य की बात आती है तो दवा (मेडिसिन) उसकी सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होती है। यदि दवाइयों की गुणवत्ता, उपलब्धता या उनकी कीमतों पर उचित नियंत्रण न हो तो नागरिकों के जीवन पर सीधा खतरा उत्पन्न हो सकता है। इसी उद्देश्य से विभिन्न स्वास्थ्य एवं दवा संबंधी कानून बनाए गए हैं जो न केवल नागरिकों को उचित चिकित्सा सुविधा दिलाने का आश्वासन देते हैं, बल्कि दवाओं की गुणवत्ता और उपयोग पर निगरानी रखते हुए जनहित की रक्षा भी करते हैं।
स्वास्थ्य का संवैधानिक परिप्रेक्ष्य
भारतीय संविधान स्वास्थ्य को सीधे मौलिक अधिकारों में तो शामिल नहीं करता, परंतु न्यायपालिका ने इसे जीवन के अधिकार का हिस्सा मानते हुए अनेक निर्णय दिए हैं।
- अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, जिसमें स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है।
- अनुच्छेद 39(e) और 47 – राज्य को यह दायित्व सौंपते हैं कि वह नागरिकों को स्वास्थ्य की दृष्टि से सुरक्षित वातावरण और पोषण उपलब्ध कराए।
- सर्वोच्च न्यायालय ने Consumer Education and Research Centre बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1995) में कहा कि स्वास्थ्य और चिकित्सकीय सुविधा नागरिकों का मौलिक अधिकार है।
दवा कानून और उनका महत्व
भारत में औषधियों और उनके व्यापार पर नियंत्रण रखने के लिए अनेक कानून लागू हैं। इनमें प्रमुख हैं:
- औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (Drugs and Cosmetics Act, 1940)
- दवाइयों और कॉस्मेटिक उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करता है।
- नकली, मिलावटी या घटिया दवाओं की बिक्री को दंडनीय अपराध घोषित करता है।
- दवा निरीक्षकों और औषधि नियंत्रक प्राधिकरण को जांच और कार्यवाही के अधिकार देता है।
- औषधि मूल्य नियंत्रण आदेश (Drug Price Control Order – DPCO)
- आवश्यक दवाइयों की कीमतें नियंत्रित करता है ताकि हर नागरिक सस्ती दवाएं खरीद सके।
- नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) इस आदेश को लागू करती है।
- भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956
- चिकित्सा पेशेवरों की योग्यता और आचार संहिता निर्धारित करता है।
- डॉक्टरों द्वारा गलत उपचार या लापरवाही पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की व्यवस्था करता है।
- क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट्स (रजिस्ट्रेशन और रेगुलेशन) अधिनियम, 2010
- अस्पतालों, क्लीनिकों और स्वास्थ्य संस्थानों के मानक तय करता है।
- मरीजों को उचित इलाज और न्यूनतम सुविधाएं उपलब्ध कराना अनिवार्य करता है।
- औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954
- दवाइयों और चिकित्सा पद्धतियों के भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाता है।
- इससे नागरिकों को झूठे दावों से बचाया जाता है।
नागरिकों के अधिकार
स्वास्थ्य और दवा संबंधी कानून नागरिकों को कई महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करते हैं, जैसे:
- गुणवत्तापूर्ण दवा का अधिकार – हर नागरिक को सुरक्षित और मानक गुणवत्ता वाली दवा प्राप्त करने का अधिकार है।
- सस्ती दवा का अधिकार – आवश्यक दवाइयां सरकारी मूल्य नियंत्रण के अंतर्गत उपलब्ध कराई जाती हैं।
- सूचना का अधिकार – मरीज को दवा के उपयोग, साइड इफेक्ट और खुराक की जानकारी मिलनी चाहिए।
- न्याय पाने का अधिकार – यदि किसी मरीज को नकली दवा या डॉक्टर की लापरवाही से नुकसान होता है, तो वह उपभोक्ता अदालत या सामान्य अदालत में न्याय की मांग कर सकता है।
- स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच का अधिकार – चाहे ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी, नागरिकों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना राज्य का दायित्व है।
नागरिकों की सुरक्षा हेतु कानूनी प्रावधान
- नकली दवाओं पर कड़ी सजा – घटिया या नकली दवाओं की बिक्री करने पर 10 वर्ष तक की सजा और भारी जुर्माना हो सकता है।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 – मरीज उपभोक्ता की श्रेणी में आता है, इसलिए गलत इलाज या नकली दवा मिलने पर क्षतिपूर्ति मांग सकता है।
- जन औषधि योजना – गरीब और मध्यम वर्ग को सस्ती जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कराना।
- आयुष्मान भारत योजना – आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों को मुफ्त स्वास्थ्य बीमा और अस्पताल में भर्ती की सुविधा।
- भ्रामक विज्ञापन पर रोक – किसी भी दवा या इलाज को चमत्कारी बताने वाले विज्ञापनों पर कानूनी कार्रवाई की जाती है।
व्यावहारिक उदाहरण
- यदि कोई नागरिक नकली ब्लड प्रेशर की दवा लेकर बीमार हो जाता है, तो वह निर्माता, विक्रेता और वितरक के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत कर सकता है।
- यदि किसी महिला को प्रसव के दौरान लापरवाही का सामना करना पड़ता है, तो वह मेडिकल काउंसिल में डॉक्टर की शिकायत कर सकती है और क्षतिपूर्ति भी प्राप्त कर सकती है।
- यदि कोई कंपनी टीवी पर झूठा विज्ञापन देकर अपनी दवा को कैंसर ठीक करने वाली बताती है, तो उसके खिलाफ औषधि और जादुई उपचार अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही की जा सकती है।
चुनौतियाँ
- ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी।
- दवा कंपनियों द्वारा कीमतों में अनुचित वृद्धि।
- नकली और घटिया दवाओं की अवैध बिक्री।
- चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों में पीड़ित को न्याय दिलाने में देरी।
- नागरिकों में कानूनी अधिकारों की जानकारी का अभाव।
समाधान और सुधार
- सरकारी अस्पतालों और जन औषधि केन्द्रों का विस्तार।
- दवा उद्योग पर पारदर्शिता और सख्त नियंत्रण।
- नागरिकों को स्वास्थ्य अधिकारों और कानूनी उपायों की जानकारी देने के लिए जागरूकता अभियान।
- त्वरित न्याय प्रणाली और मेडिकल त्रुटियों के मामलों के लिए विशेष न्यायाधिकरण।
- डिजिटल हेल्थ प्लेटफॉर्म और ई-फार्मेसी पर सख्त निगरानी।
निष्कर्ष
स्वास्थ्य और दवा कानून केवल कानूनी ढांचा नहीं हैं, बल्कि यह नागरिकों की सुरक्षा का कवच हैं। इन कानूनों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर व्यक्ति को गुणवत्तापूर्ण, सुरक्षित और सस्ती दवा मिले तथा अस्पतालों और डॉक्टरों से उचित सेवा प्राप्त हो। नागरिकों को चाहिए कि वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें और यदि उनके साथ कोई अन्याय हो तो वे न्यायिक उपायों का सहारा लें। राज्य और समाज दोनों का यह कर्तव्य है कि स्वास्थ्य और दवा क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए। यही एक स्वस्थ और सुरक्षित समाज के निर्माण का आधार है।
स्वास्थ्य और दवा कानूनों की महत्वपूर्ण धाराओं (Sections) को संक्षेप में प्रस्तुत कर रहा हूँ –
1. औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (Drugs and Cosmetics Act, 1940)
यह भारत में दवाओं और कॉस्मेटिक्स की गुणवत्ता, निर्माण, आयात, बिक्री और वितरण को नियंत्रित करता है।
- धारा 3 – परिभाषाएँ (Drug, Cosmetics आदि की परिभाषा)।
- धारा 10 – दवाओं और कॉस्मेटिक्स का आयात (Import of Drugs and Cosmetics)।
- धारा 18 – दवाओं और कॉस्मेटिक्स की बिक्री और वितरण पर निषेध (Prohibition of Manufacture and Sale of Drugs and Cosmetics)।
- धारा 22 – औषधि निरीक्षक की शक्तियाँ (Powers of Inspector)।
- धारा 27 – घटिया या नकली दवा बेचने पर दंड (Penalty for manufacturing/selling spurious drugs)।
- धारा 33 – नियम बनाने की शक्ति (Power of Central Government to make rules)।
2. औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954
भ्रामक और झूठे दवा-विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए।
- धारा 3 – आपत्तिजनक विज्ञापनों का निषेध।
- धारा 4 – दवाओं के झूठे दावे वाले विज्ञापनों पर रोक।
- धारा 7 – अधिनियम का उल्लंघन करने पर दंड।
3. औषधि मूल्य नियंत्रण आदेश (Drug Price Control Order – DPCO)
(Essential Commodities Act, 1955 के अंतर्गत जारी)
- पैरा 2 – आवश्यक दवाओं की परिभाषा।
- पैरा 4 – दवाओं की कीमत तय करने का प्रावधान।
- पैरा 13 – अधिक मूल्य वसूलने पर दंड।
4. भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 (Indian Medical Council Act, 1956)
डॉक्टरों की योग्यता और आचार संहिता से संबंधित।
- धारा 11 – मान्यता प्राप्त चिकित्सा योग्यता।
- धारा 15 – केवल पंजीकृत चिकित्सक ही चिकित्सा अभ्यास कर सकते हैं।
- धारा 20-A – चिकित्सकीय आचार संहिता का पालन।
(अब इसे National Medical Commission Act, 2019 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है।)
5. क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट्स (रजिस्ट्रेशन और रेगुलेशन) अधिनियम, 2010
निजी अस्पतालों और क्लीनिकों के मानक तय करता है।
- धारा 10 – क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट का पंजीकरण।
- धारा 11 – अस्थायी पंजीकरण।
- धारा 12 – स्थायी पंजीकरण।
- धारा 41 – अधिनियम का उल्लंघन करने पर दंड।
6. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019
मरीज को उपभोक्ता की श्रेणी में मानकर न्याय का अधिकार।
- धारा 2(7) – उपभोक्ता की परिभाषा।
- धारा 2(11) – दोषपूर्ण सेवाओं की परिभाषा (Deficiency in service)।
- धारा 34 – जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत।
- धारा 47 – राज्य उपभोक्ता आयोग।
- धारा 58 – राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग।
7. भारतीय दंड संहिता (IPC) में प्रासंगिक धाराएँ
डॉक्टरों या दवा कंपनियों की लापरवाही पर लागू हो सकती हैं –
- धारा 274 – हानिकारक दवाओं का मिलावट।
- धारा 275 – घटिया दवा की बिक्री।
- धारा 276 – नकली दवा का निर्माण।
- धारा 304-A – चिकित्सकीय लापरवाही से मृत्यु।