“स्वाभाविक उत्तराधिकारियों को कारण बताए बिना वसीयत से बाहर करना उसकी प्रामाणिकता पर संदेह उत्पन्न करता है: सुप्रीम कोर्ट का गहन निर्णय”

शीर्षक:
“स्वाभाविक उत्तराधिकारियों को कारण बताए बिना वसीयत से बाहर करना उसकी प्रामाणिकता पर संदेह उत्पन्न करता है: सुप्रीम कोर्ट का गहन निर्णय”


🔷 भूमिका:

वसीयत (Will) संपत्ति के स्वैच्छिक हस्तांतरण का एक कानूनी दस्तावेज़ है, जिसमें व्यक्ति अपनी संपत्ति का उत्तराधिकारी स्वयं तय करता है। हालांकि वसीयत की स्वतंत्रता को कानून द्वारा मान्यता प्राप्त है, परंतु स्वाभाविक उत्तराधिकारियों (natural heirs) को बिना किसी स्पष्ट और उचित कारण के वसीयत से बाहर करना अक्सर विवाद का कारण बनता है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि –

“यदि किसी वसीयत में स्वाभाविक उत्तराधिकारियों को बिना किसी कारण के वंचित कर दिया गया हो, तो ऐसी वसीयत की प्रामाणिकता (genuineness) संदेह के घेरे में आ जाती है।”

यह फैसला भारतीय उत्तराधिकार कानून, खासकर इंडियन सक्सेशन एक्ट, 1925 के सिद्धांतों और न्यायिक व्याख्याओं के अनुरूप है, जो यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि वसीयतें पारदर्शिता, स्पष्ट मंशा और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित हों।


🔷 मामले की पृष्ठभूमि:

इस प्रकरण में वसीयतकर्ता ने अपनी संपत्ति का अधिकांश हिस्सा एक बाहरी व्यक्ति या रिश्तेदार को दे दिया, जबकि उसके निकट संबंधी या प्राकृतिक उत्तराधिकारी जैसे बेटा, बेटी, पत्नी आदि को पूरी तरह वसीयत से बाहर कर दिया। वसीयत में उनके बहिष्कार का कोई कारण नहीं बताया गया था।

स्वाभाविक उत्तराधिकारियों ने अदालत में यह याचिका दायर की कि वसीयत मनगढ़ंत, प्रेरित और जाली है, तथा इसमें मृतक की असली मंशा पर संदेह है।


🔷 सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन:

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि:

“A will, in which natural heirs are excluded without explanation, casts serious suspicion on its genuineness. Such circumstances necessitate strict proof and deeper scrutiny.”

✅ मुख्य न्यायिक टिप्पणियाँ:

  1. स्वाभाविक उत्तराधिकारियों को पूरी तरह वसीयत से बाहर करना और उसका कोई कारण न देना, वसीयत की वैधता को चुनौतीपूर्ण बनाता है।
  2. वसीयतकर्ता की मानसिक स्थिति, स्वतंत्रता से की गई इच्छा, और वसीयत के निर्माण की परिस्थितियाँ — इन सभी की गंभीर जांच आवश्यक है।
  3. यह निष्कर्ष देना कि वसीयत ‘स्वैच्छिक’ और ‘असली’ है, तब तक उचित नहीं होगा, जब तक उसके पीछे की मंशा और प्रक्रिया की पुष्टि न हो जाए।

🔷 कानूनी आधार:

यह निर्णय Indian Succession Act, 1925 की धाराओं और उससे जुड़े न्यायिक दृष्टांतों पर आधारित है।

विशेषतः, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि:

  • धारा 63 (Indian Succession Act) – वसीयत की निष्पादन प्रक्रिया को नियंत्रित करती है।
  • धारा 68 (Indian Evidence Act) – वसीयत की साक्ष्य रूप में प्रस्तुति और साक्षियों की भूमिका को स्पष्ट करती है।
  • यदि वसीयत अस्वाभाविक है, या वसीयतकर्ता ने स्वाभाविक उत्तराधिकारियों को कोई हिस्सा नहीं दिया और कारण भी नहीं बताया, तो साक्ष्य का मानक कठोर हो जाता है।

🔷 इस निर्णय का महत्व:

  1. वसीयत बनाने की स्वतंत्रता सीमित नहीं है, परंतु यदि वसीयतकर्ता ने सामान्य उत्तराधिकारियों को पूरी तरह नजरअंदाज किया है, तो संदेह की दृष्टि से वसीयत की जांच की जाएगी।
  2. ✅ ऐसे मामलों में जहां संपत्ति का वितरण असमान हो या पारिवारिक सदस्यों को पूरी तरह बाहर किया गया हो, तो प्रामाणिकता का बोझ (burden of proof) वसीयत को प्रस्तुत करने वाले पर अधिक होता है।
  3. ✅ वसीयत की “testamentary capacity”, “absence of coercion or undue influence”, और “proper attestation” जैसे तत्वों की गहनता से समीक्षा आवश्यक होती है।

🔷 न्यायालय ने यह भी कहा:

“A suspicious circumstance is not confined to how a will appears, but extends to who benefited, who drafted it, under what circumstances it was prepared, and whether natural heirs were unfairly excluded.”

इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई लाभार्थी (beneficiary) वसीयत बनाने की प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका निभा रहा हो, तो भी न्यायालय को संदेह करने का अधिकार है।


🔷 न्यायिक दृष्टांतों का संदर्भ:

इस निर्णय की पुष्टि कई पूर्व मामलों से होती है, जैसे:

  • H. Venkatachala Iyengar v. B.N. Thimmajamma (1959)
  • S.R. Srinivasa v. S. Padmavathamma (2010)
  • Jaswant Kaur v. Amrit Kaur (1977)

इन सभी मामलों में यह स्थापित हुआ कि यदि वसीयत में असामान्य परिस्थितियाँ हों, तो उसकी सत्यता का प्रमाण अधिक गहन और ठोस होना चाहिए।


🔷 निष्कर्ष:

इस निर्णय ने यह सिद्ध कर दिया कि वसीयत की वैधता केवल दस्तावेज की उपस्थिति से नहीं, बल्कि उसके न्यायिक विवेक, स्वाभाविकता, पारदर्शिता, और निष्पक्षता से तय होती है।

यदि कोई वसीयतकर्ता बिना स्पष्ट कारण के अपने बेटे-बेटियों, पत्नी या अन्य प्राकृतिक उत्तराधिकारियों को वंचित करता है, तो न्यायालय को पूरा अधिकार है कि वह वसीयत की गहन जांच करे, और यदि आवश्यक हो, तो उसे अमान्य घोषित करे।


🔷 अंतिम टिप्पणी:

यह फैसला भारतीय उत्तराधिकार कानून की न्यायप्रियता और पारदर्शिता के सिद्धांत को दृढ़ करता है। यह न केवल वसीयत बनाने वालों के लिए चेतावनी है कि वे बिना कारण अपने निकट परिजनों को वंचित न करें, बल्कि न्यायपालिका के लिए भी एक दिशा है कि ऐसे मामलों में सतर्कता पूर्वक निर्णय किया जाए।