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स्वतंत्र सहमति का सिद्धांत (Doctrine of Free Consent)

स्वतंत्र सहमति का सिद्धांत (Doctrine of Free Consent)

प्रस्तावना

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 (Indian Contract Act, 1872) ने अनुबंध (Contract) को वैध बनाने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें निर्धारित की हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है – पक्षकारों की सहमति (Consent)। परंतु केवल सहमति होना पर्याप्त नहीं है, बल्कि वह सहमति स्वतंत्र (Free Consent) भी होनी चाहिए।

यदि सहमति स्वतंत्र न हो, बल्कि किसी प्रकार के दबाव, धोखे या भ्रांति से प्राप्त की गई हो, तो वह अनुबंध विधिक दृष्टि से वैध नहीं माना जाएगा। इसलिए सहमति की स्वतंत्रता अनुबंध की आत्मा मानी गई है।


सहमति (Consent) की परिभाषा

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 13 में सहमति (Consent) को परिभाषित किया गया है –
“जब दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी वस्तु के विषय में एक ही अभिप्राय से सहमत होते हैं तो कहा जाता है कि उन्होंने सहमति दी है।”

अर्थात, जब दोनों पक्ष एक ही बात पर समान समझ रखते हुए ‘हाँ’ कहते हैं तभी वास्तविक सहमति बनती है।


स्वतंत्र सहमति (Free Consent) की परिभाषा

धारा 14 के अनुसार –
“सहमति को स्वतंत्र कहा जाएगा यदि वह बल प्रयोग (Coercion), अवैध प्रभाव (Undue Influence), कपट (Fraud), कपटाचरण (Misrepresentation) अथवा भूल (Mistake) से उत्पन्न न हुई हो।”

इस प्रकार स्वतंत्र सहमति के लिए यह आवश्यक है कि पक्षकारों की इच्छा को किसी बाहरी दबाव, धोखे या भ्रम ने प्रभावित न किया हो।


स्वतंत्र सहमति का महत्व

  1. अनुबंध की वैधता का मूल आधार है।
  2. यदि सहमति स्वतंत्र न हो तो अनुबंध Voidable (रद्द योग्य) हो जाता है।
  3. न्यायालय ऐसे अनुबंधों को प्रवर्तित (Enforce) नहीं करता जिनमें सहमति स्वतंत्र न हो।
  4. यह पक्षकारों की स्वायत्तता (Autonomy) और न्यायसंगत लेन-देन सुनिश्चित करता है।

सहमति को प्रभावित करने वाले कारक

अब हम विस्तार से समझेंगे कि Coercion, Undue Influence, Fraud और Misrepresentation किस प्रकार सहमति को प्रभावित करते हैं।


1. बल प्रयोग (Coercion)

परिभाषा – धारा 15
“जब किसी व्यक्ति को किसी अनुबंध में सम्मिलित करने के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) द्वारा दंडनीय कोई कार्य करने या करने की धमकी दी जाती है अथवा अवैध रूप से संपत्ति रोककर दबाव डाला जाता है, तो इसे बल प्रयोग कहते हैं।”

मुख्य तत्व:

  • IPC द्वारा दंडनीय कृत्य का भय दिखाना।
  • अवैध रूप से संपत्ति का रोका जाना।
  • उद्देश्य – अनुबंध करने हेतु बाध्य करना।

उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति को धमकी दी जाए कि यदि वह संपत्ति बेचने का अनुबंध नहीं करेगा तो उसे शारीरिक हानि पहुँचाई जाएगी।

कानूनी प्रभाव:

  • ऐसा अनुबंध Voidable है।
  • पीड़ित पक्ष अनुबंध को रद्द (Rescind) कर सकता है।

न्यायिक दृष्टांत:

  • Ranganayakamma v. Alwar Setti (1889) – विधवा से जबरदस्ती विवाह करने का समझौता बल प्रयोग माना गया और अनुबंध शून्य कर दिया गया।

2. अवैध प्रभाव (Undue Influence)

परिभाषा – धारा 16
“जब कोई पक्ष ऐसा अनुचित प्रभाव डालता है कि दूसरा पक्ष स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं कर पाता, तब इसे अवैध प्रभाव कहते हैं।”

मुख्य तत्व:

  • पक्षकारों में एक का दूसरे पर प्रभुत्व (Dominating Position) होना।
  • उस प्रभुत्व का अनुचित लाभ उठाना।
  • प्रभावित पक्ष स्वतंत्र निर्णय न ले सके।

उदाहरण:

  • गुरु द्वारा शिष्य से अनुचित शर्तों पर अनुबंध कराना।
  • डॉक्टर द्वारा रोगी से अत्यधिक शुल्क वसूलना।

कानूनी प्रभाव:

  • अनुबंध Voidable हो जाता है।
  • बोझ (Burden of Proof) प्रभुत्वशाली पक्ष पर होता है कि अनुबंध स्वतंत्र सहमति से हुआ।

न्यायिक दृष्टांत:

  • Mannu Singh v. Umadat Pande (1890) – गुरु द्वारा शिष्य से सारी संपत्ति दान दिलवाना अवैध प्रभाव माना गया।

3. कपट (Fraud)

परिभाषा – धारा 17
“कपट का अर्थ है – किसी तथ्य को झूठे रूप में प्रस्तुत करना, तथ्य छिपाना या अनुबंध में धोखा देने की नीयत से गलत प्रतिपादन करना।”

मुख्य तत्व:

  • झूठा कथन या तथ्य छिपाना।
  • धोखा देने की नीयत (Intent to Deceive)।
  • दूसरे पक्ष को अनुबंध हेतु प्रेरित करना।

उदाहरण:

  • पुरानी कार को नई बताकर बेचना।
  • भूमि पर बंधक होने की बात छिपाकर बेचना।

कानूनी प्रभाव:

  • अनुबंध Voidable हो जाता है।
  • पीड़ित पक्ष हर्जाना (Damages) भी मांग सकता है।

न्यायिक दृष्टांत:

  • Derry v. Peek (1889) – झूठे तथ्यों से धोखा देकर शेयर बेचे गए। न्यायालय ने Fraud की परिभाषा स्पष्ट की।

4. कपटाचरण (Misrepresentation)

परिभाषा – धारा 18
“कपटाचरण का अर्थ है – बिना धोखा देने की नीयत से गलत तथ्य प्रस्तुत करना, जिससे दूसरा पक्ष भ्रमित होकर अनुबंध कर ले।”

मुख्य तत्व:

  • गलत तथ्य प्रस्तुत करना लेकिन बिना धोखे की नीयत।
  • निर्दोष पक्ष भ्रमित हो जाए।
  • वास्तविक स्थिति भिन्न हो।

उदाहरण:

  • विक्रेता कहे कि जमीन कृषि योग्य है जबकि वास्तव में बंजर है, पर उसने जानबूझकर झूठ नहीं कहा।

कानूनी प्रभाव:

  • अनुबंध Voidable हो जाता है।
  • परंतु Fraud की तरह हर्जाना मांगने का अधिकार नहीं होता।

न्यायिक दृष्टांत:

  • Derry v. Peek (1889) – न्यायालय ने कहा कि यदि धोखा देने की नीयत न हो तो Misrepresentation होगा, Fraud नहीं।

तुलनात्मक अंतर (Fraud vs Misrepresentation)

बिंदु Fraud (कपट) Misrepresentation (कपटाचरण)
नीयत धोखा देने की नीयत धोखा देने की नीयत नहीं
ज्ञान झूठ बोलने वाला तथ्य जानता है कि यह गलत है तथ्य को सही मानकर गलत जानकारी दी
उपाय अनुबंध रद्द + हर्जाना केवल अनुबंध रद्द
उदाहरण पुरानी कार को नई बताना कार की स्थिति के बारे में गलत लेकिन अनजाने में जानकारी देना

सहमति पर प्रभाव का सारांश

  1. Coercion – दबाव से प्राप्त सहमति → अनुबंध Voidable
  2. Undue Influence – प्रभुत्व का अनुचित लाभ → अनुबंध Voidable
  3. Fraud – धोखे से प्राप्त सहमति → अनुबंध Voidable + हर्जाना।
  4. Misrepresentation – अनजाने में गलत तथ्य → अनुबंध Voidable (पर हर्जाना नहीं)।

निष्कर्ष

स्वतंत्र सहमति अनुबंध की सबसे मूलभूत शर्त है। यदि किसी अनुबंध की सहमति बल प्रयोग, अवैध प्रभाव, कपट या कपटाचरण से प्राप्त हुई हो तो वह सहमति वास्तविक नहीं मानी जाएगी और अनुबंध वैध नहीं रहेगा।

भारतीय अनुबंध अधिनियम ने स्पष्ट रूप से यह सुनिश्चित किया है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्र इच्छा के विरुद्ध अनुबंध में बाँधा न जा सके। इस प्रकार, Doctrine of Free Consent अनुबंध कानून का आधारभूत सिद्धांत है, जो न केवल पक्षकारों के अधिकारों की रक्षा करता है बल्कि समाज में न्याय और नैतिकता की भावना को भी बनाए रखता है।