स्लम पुनर्वास अधिनियम, 1995 (SRA Act) : उद्देश्य, प्रावधान, लाभ और चुनौतियाँ
प्रस्तावना
भारत में शहरीकरण की तेज़ी के साथ-साथ झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों (स्लम्स) की संख्या भी लगातार बढ़ती गई। महानगरों और बड़े शहरों में तेजी से बढ़ती जनसंख्या, ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन, रोजगार की तलाश, और कम आय वर्ग के लिए आवास की कमी ने झुग्गी-बस्तियों का विस्तार किया। इस स्थिति ने न केवल शहरी जीवन को असुविधाजनक बनाया बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सुरक्षा और पर्यावरण के लिए भी गंभीर खतरे पैदा किए। ऐसे में सरकार ने वर्ष 1995 में स्लम पुनर्वास योजना (Slum Rehabilitation Scheme – SRA) लागू की ताकि झुग्गीवासियों को वैध और सुरक्षित आवास प्रदान कर उन्हें मुख्यधारा में लाया जा सके।
यह अधिनियम महाराष्ट्र राज्य से शुरू हुआ और बाद में अन्य राज्यों ने भी अपने स्तर पर स्लम पुनर्वास योजनाएँ लागू कीं। इसमें निजी डेवलपर्स, राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन और झुग्गीवासियों की साझेदारी पर आधारित मॉडल अपनाया गया। अधिनियम का उद्देश्य केवल आवास निर्माण नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय सुधार भी है।
स्लम पुनर्वास अधिनियम का उद्देश्य
स्लम पुनर्वास अधिनियम के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- स्लमवासियों को सुरक्षित और वैध आवास प्रदान करना – मूल रूप से अस्थायी या अस्वास्थ्यकर बस्तियों में रहने वाले लोगों को रहने लायक, स्वच्छ और सुविधाजनक घर देना।
- स्लम बस्तियों का समग्र विकास – केवल मकान नहीं बल्कि पानी, बिजली, स्वच्छता, सड़क, नालियों जैसी आधारभूत सुविधाओं का विकास।
- शहरी सौंदर्यीकरण और भूमि का कुशल उपयोग – शहरों के मध्य में फैली झुग्गी बस्तियों की जगह योजनाबद्ध निर्माण कर जमीन का समुचित उपयोग।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना – निजी डेवलपर्स को प्रोत्साहित कर पुनर्विकास में निवेश आकर्षित करना।
- रोजगार और सामाजिक विकास – पुनर्वास के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास जैसी सेवाएँ उपलब्ध कराना।
अधिनियम की परिभाषा और क्षेत्रीय विस्तार
स्लम पुनर्वास अधिनियम महाराष्ट्र में 1995 में लागू हुआ और इसकी सफलता के आधार पर अन्य राज्यों ने भी समान योजनाएँ शुरू कीं। महाराष्ट्र में मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई, पुणे जैसे शहरों में स्लम पुनर्वास कार्यक्रम चलाया गया। इसमें स्लम क्षेत्र को चिन्हित कर पुनर्वास परियोजनाओं के लिए योजनाएँ बनाई गईं।
अधिनियम के तहत ‘स्लम’ की परिभाषा उस क्षेत्र के आधार पर दी गई है जहाँ बड़ी संख्या में लोग अस्थायी संरचनाओं में रहते हैं और उन्हें आवश्यक सुविधाएँ प्राप्त नहीं हैं। इनमें झोपड़ी, टीन की छत, प्लास्टिक या टाट के घर, असुरक्षित विद्युत आपूर्ति, अस्वच्छ जल स्रोत आदि शामिल हैं।
मुख्य प्रावधान
- स्लम पहचान और सर्वेक्षण – स्थानीय प्रशासन स्लम बस्तियों का सर्वे कर उनकी सूची तैयार करता है। इसमें परिवारों की संख्या, उपलब्ध सुविधाएँ, भूमि का स्वामित्व आदि दर्ज किए जाते हैं।
- स्लम पुनर्वास प्राधिकरण की स्थापना – राज्य सरकार स्लम पुनर्वास योजना के संचालन के लिए एक विशेष प्राधिकरण का गठन करती है। यह प्राधिकरण योजनाओं का अनुमोदन, निजी डेवलपर्स का चयन, धन आवंटन और निगरानी करता है।
- डेवलपर की भागीदारी – निजी बिल्डर को परियोजना सौंप कर उसे अतिरिक्त FSI (Floor Space Index) दिया जाता है जिससे वह परियोजना से लाभ कमा सके। बदले में उसे स्लमवासियों के लिए मुफ्त या कम लागत वाले फ्लैट उपलब्ध कराने होते हैं।
- लाभार्थी की पात्रता – मूल स्लम निवासी को ही आवास का अधिकार दिया जाता है। इसके लिए निवास प्रमाण, सर्वेक्षण सूची और अन्य दस्तावेज आवश्यक होते हैं।
- मुफ्त या अनुदानित आवास – स्लमवासियों को न्यूनतम क्षेत्रफल का फ्लैट उपलब्ध कराया जाता है, जिसमें बिजली, पानी, शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएँ शामिल होती हैं।
- सुविधाओं का विकास – पुनर्वास स्थल पर विद्यालय, स्वास्थ्य केंद्र, सड़क, पार्क, सामुदायिक भवन आदि का निर्माण भी योजना का हिस्सा है।
- विवाद निवारण और शिकायत प्रणाली – प्राधिकरण में शिकायत निवारण समितियाँ बनाई जाती हैं जो लाभार्थियों और डेवलपर्स के बीच विवादों का समाधान करती हैं।
स्लम पुनर्वास योजना की प्रक्रिया
- सर्वे और सूचीकरण – प्रशासन स्लम क्षेत्र का सर्वे कर पात्र परिवारों की सूची तैयार करता है।
- योजना प्रस्ताव – प्राधिकरण परियोजना का प्रारूप तैयार कर निजी डेवलपर्स से प्रस्ताव आमंत्रित करता है।
- चयन और अनुबंध – पात्र डेवलपर का चयन कर उससे अनुबंध किया जाता है।
- निधि और FSI का निर्धारण – परियोजना की लागत, वित्तीय साझेदारी और अतिरिक्त FSI की अनुमति दी जाती है।
- पुनर्वास स्थल पर निर्माण – निर्धारित समय सीमा में निर्माण कार्य शुरू कर स्लमवासियों को अस्थायी आवास दिया जाता है।
- स्थायी आवास में स्थानांतरण – निर्माण पूरा होने पर पात्र परिवारों को स्थायी फ्लैट आवंटित किए जाते हैं।
- सुविधाओं का समावेश – स्कूल, अस्पताल, परिवहन, जल आपूर्ति, स्वच्छता आदि की व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है।
स्लम पुनर्वास अधिनियम के लाभ
- आवास की सुरक्षा – झुग्गीवासियों को विधिक पहचान और सुरक्षित आवास मिलता है जिससे बेघर होने का डर कम होता है।
- स्वास्थ्य और स्वच्छता में सुधार – स्वच्छ जल, शौचालय, नालियों और कचरा प्रबंधन से रोगों में कमी आती है।
- सामाजिक समावेशन – मुख्यधारा में शामिल होकर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और रोजगार के अवसरों तक पहुँच बढ़ती है।
- शहर का सौंदर्यीकरण – अव्यवस्थित बस्तियों की जगह योजनाबद्ध कॉलोनियों का निर्माण होता है।
- रोजगार के अवसर – निर्माण कार्यों में स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है, जिससे आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
- पर्यावरण संरक्षण – साफ-सुथरी बस्तियाँ पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं।
- निजी निवेश को बढ़ावा – डेवलपर्स की भागीदारी से शहरी विकास में निवेश बढ़ता है।
अधिनियम के सामने आने वाली चुनौतियाँ
- भूमि विवाद – कई बार स्लम बस्तियाँ सरकारी, निजी या विवादित भूमि पर स्थित होती हैं जिससे पुनर्वास में कानूनी अड़चनें आती हैं।
- निवासियों का विरोध – कुछ लोग अपने मौजूदा स्थान को छोड़ने से डरते हैं और पुनर्वास का विरोध करते हैं।
- भ्रष्टाचार और अनियमितता – परियोजना में पारदर्शिता की कमी, गलत सूचीकरण और कमीशनखोरी जैसी समस्याएँ सामने आती हैं।
- न्यून गुणवत्ता वाले निर्माण – कुछ परियोजनाओं में घटिया सामग्री का उपयोग और निर्माण में देरी होती है।
- अपर्याप्त सुविधाएँ – कई बार आवास तो मिल जाता है लेकिन स्कूल, अस्पताल, परिवहन जैसी सुविधाएँ समय पर विकसित नहीं हो पातीं।
- आर्थिक निर्भरता – पुनर्वास के बाद भी लाभार्थी रोजगार की कमी से आर्थिक रूप से कमजोर रह सकते हैं।
- शहरी गरीबों की विविधता – विभिन्न वर्गों की आवश्यकताओं को समझे बिना एक समान नीति लागू करने से कुछ समूह उपेक्षित रह जाते हैं।
सुधार के उपाय
- सटीक सर्वेक्षण और पारदर्शी प्रक्रिया – आधुनिक तकनीकों जैसे GIS मैपिंग और डिजिटल डेटाबेस का उपयोग।
- सामुदायिक भागीदारी – पुनर्वास स्थल पर रहने वाले लोगों की समितियाँ बनाकर योजना में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना।
- भ्रष्टाचार रोकने के लिए निगरानी तंत्र – स्वतंत्र लेखा परीक्षा और शिकायत पोर्टल का संचालन।
- समग्र विकास योजना – आवास के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, कौशल विकास जैसी सेवाओं का एकीकृत विकास।
- स्थानीय प्रशासन का सशक्तिकरण – नगरपालिका और राज्य प्राधिकरण को पर्याप्त संसाधन और प्रशिक्षण देना।
- पर्यावरण-अनुकूल निर्माण – सौर ऊर्जा, वर्षा जल संग्रहण, कचरा प्रबंधन जैसे उपायों का समावेश।
- दीर्घकालिक सामाजिक नीति – स्लमवासियों के पुनर्वास के बाद उनके सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए योजनाएँ बनाना।
निष्कर्ष
स्लम पुनर्वास अधिनियम, 1995 ने भारत में शहरी गरीबों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की। इसका उद्देश्य केवल झुग्गियों को हटाना नहीं बल्कि उन्हें गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करना है। यह योजना शहरों को योजनाबद्ध और पर्यावरण-अनुकूल बनाने में मदद करती है तथा सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देती है। हालांकि इसके सामने भूमि विवाद, भ्रष्टाचार, अपर्याप्त सुविधाओं और अन्य चुनौतियाँ हैं, फिर भी उचित योजना, पारदर्शिता और सामुदायिक भागीदारी के साथ इसे और प्रभावी बनाया जा सकता है।
आज आवश्यकता है कि इस योजना को केवल आवास निर्माण तक सीमित न रखकर सामाजिक और आर्थिक विकास के व्यापक दृष्टिकोण से लागू किया जाए। तभी स्लमवासियों का जीवन स्तर बेहतर होगा और भारत के शहर वास्तव में समावेशी और विकसित बन सकेंगे।
1. स्लम पुनर्वास अधिनियम का मुख्य उद्देश्य क्या है?
स्लम पुनर्वास अधिनियम का मुख्य उद्देश्य शहरों में झुग्गी–झोपड़ी में रहने वाले लोगों को सुरक्षित, स्वच्छ और कानूनी रूप से वैध आवास प्रदान करना है। इसके तहत स्लमवासियों को स्वास्थ्य, शिक्षा, जल आपूर्ति, स्वच्छता जैसी आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। साथ ही, शहरी सौंदर्यीकरण, भूमि का उचित उपयोग, पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जाता है। यह योजना सरकार और निजी डेवलपर्स की साझेदारी से चलती है। स्लमवासियों को उनकी मूल जगह से बेदखल किए बिना पुनर्वास स्थल पर स्थानांतरित कर उन्हें बेहतर जीवन का अवसर दिया जाता है। इस योजना का उद्देश्य केवल घर देना नहीं बल्कि उनके सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय जीवन स्तर को सुधारना भी है।
2. स्लम क्या होता है? इसकी विशेषताएँ बताइए।
स्लम वह बस्ती होती है जहाँ बड़ी संख्या में लोग अस्थायी या कम गुणवत्ता वाले घरों में रहते हैं। इन घरों में टीन की छत, प्लास्टिक की दीवारें, अस्थायी सामग्री और अपर्याप्त सुविधाएँ होती हैं। स्लम में स्वच्छ जल, बिजली, शौचालय, नालियों और कचरा प्रबंधन जैसी सुविधाओं का अभाव होता है। यहाँ जनसंख्या अधिक होती है और जगह कम। लोग मुख्यतः कम आय वर्ग से आते हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी रहती है। अस्वच्छ वातावरण के कारण बीमारियाँ फैलती हैं। झुग्गियों में रहने वाले लोग कानूनी अधिकारों से वंचित रहते हैं। स्लम क्षेत्र अक्सर शहर के बीचोंबीच या बाहरी हिस्सों में होता है जहाँ भूमि का उपयोग योजनाबद्ध तरीके से नहीं किया गया होता है। स्लम पुनर्वास योजना का लक्ष्य इन्हीं समस्याओं का समाधान करना है।
3. स्लम पुनर्वास योजना में निजी डेवलपर्स की भूमिका क्या है?
स्लम पुनर्वास योजना में निजी डेवलपर्स को महत्वपूर्ण भूमिका दी जाती है। सरकार उन्हें परियोजना सौंपती है और अतिरिक्त Floor Space Index (FSI) की सुविधा देती है ताकि वे निर्माण कार्य में निवेश कर सकें। बदले में डेवलपर्स को स्लमवासियों के लिए निश्चित संख्या में मुफ्त या रियायती दर पर फ्लैट उपलब्ध कराना होता है। उन्हें आवास, सड़क, बिजली, पानी, शौचालय जैसी सुविधाओं का निर्माण करना होता है। डेवलपर्स को परियोजना का लाभ लेने के लिए पारदर्शिता, गुणवत्ता और समय सीमा का पालन करना आवश्यक है। इससे सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग स्थापित होता है। इस साझेदारी से पुनर्वास कार्य तेज़ी से पूरा होता है और शहरी विकास में निवेश बढ़ता है।
4. स्लम पुनर्वास योजना में लाभार्थी कौन होते हैं?
लाभार्थी वे लोग होते हैं जो स्लम क्षेत्र में अस्थायी घरों में रहते हैं और जिन्हें आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। योजना का उद्देश्य केवल उन्हीं परिवारों को आवास देना है जो सर्वेक्षण सूची में दर्ज हैं। लाभार्थी को निवास प्रमाण, पहचान पत्र आदि दस्तावेज देने होते हैं ताकि उनकी पात्रता सुनिश्चित की जा सके। उन्हें मुफ्त या सब्सिडी वाले आवास, स्वच्छ जल, बिजली, नालियाँ, शौचालय, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र जैसी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। योजना में विशेष ध्यान उन परिवारों पर दिया जाता है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और जिनके पास स्थायी घर नहीं है। इसका लक्ष्य उन्हें सम्मानजनक जीवन प्रदान करना है।
5. स्लम पुनर्वास योजना के तहत कौन–कौन सी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं?
इस योजना में केवल घर उपलब्ध कराना ही पर्याप्त नहीं है। इसके तहत स्वच्छ जल, बिजली, शौचालय, नालियाँ, कचरा प्रबंधन, सड़क निर्माण, स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल, पार्क, सामुदायिक भवन जैसी सुविधाएँ दी जाती हैं। पुनर्वास स्थल पर परिवहन, सुरक्षा और स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके अलावा योजना में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ और शिक्षा का भी समावेश होता है। ये सुविधाएँ स्लमवासियों को मुख्यधारा में लाने और उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद करती हैं। योजना का उद्देश्य केवल आश्रय नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है।
6. स्लम पुनर्वास योजना के लाभ क्या हैं?
स्लम पुनर्वास योजना से स्लमवासियों को सुरक्षित और वैध आवास मिलता है जिससे उनके जीवन की अस्थिरता दूर होती है। स्वच्छ जल और स्वच्छता से स्वास्थ्य में सुधार होता है। बच्चों को स्कूल की सुविधा मिलने से शिक्षा का स्तर बढ़ता है। शहरों का सौंदर्य बढ़ता है और भूमि का बेहतर उपयोग होता है। निजी निवेश बढ़ता है जिससे रोजगार के अवसर पैदा होते हैं। इसके अलावा योजना से पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समावेशन और आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलता है। लाभार्थियों को मुख्यधारा में शामिल कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाता है।
7. स्लम पुनर्वास योजना में किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
योजना के सामने कई चुनौतियाँ हैं। सबसे बड़ी समस्या भूमि विवाद है क्योंकि स्लम क्षेत्र अक्सर सरकारी या विवादित भूमि पर होते हैं। कुछ स्लम निवासी पुनर्वास स्थल पर जाने से हिचकते हैं क्योंकि उन्हें अपने वर्तमान स्थान से लगाव होता है। भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के चलते लाभार्थियों की सही पहचान नहीं हो पाती। कई बार निर्माण कार्य में देरी या घटिया सामग्री का उपयोग होता है। सुविधाएँ समय पर विकसित नहीं हो पातीं। रोजगार की कमी के चलते लोग आर्थिक रूप से पिछड़ सकते हैं। विविध आवश्यकताओं के चलते एक समान नीति लागू करना कठिन होता है। ये समस्याएँ योजना को पूरी तरह सफल बनने से रोकती हैं।
8. पारदर्शिता और निगरानी क्यों आवश्यक है?
पारदर्शिता और निगरानी इसलिए आवश्यक है ताकि योजना में भ्रष्टाचार, अनियमितता और संसाधनों की बर्बादी को रोका जा सके। यदि लाभार्थियों की सही पहचान न हो तो सुविधाएँ असली जरूरतमंदों तक नहीं पहुँचतीं। निर्माण में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए स्वतंत्र निगरानी आवश्यक है। शिकायत निवारण प्रणाली से लोगों की समस्याएँ समय पर हल की जा सकती हैं। डिजिटल तकनीक, GIS सर्वेक्षण और ऑनलाइन पोर्टल से योजना अधिक पारदर्शी बनती है। प्रशासन और नागरिकों के बीच विश्वास बना रहता है और योजना प्रभावी तरीके से लागू होती है। इससे समय पर निर्माण, उचित संसाधन उपयोग और बेहतर परिणाम सुनिश्चित किए जा सकते हैं।
9. स्लम पुनर्वास योजना में पर्यावरण संरक्षण का क्या महत्व है?
पर्यावरण संरक्षण स्लम पुनर्वास योजना का महत्वपूर्ण हिस्सा है। अस्वच्छ जल स्रोत, कचरे का जमा होना, खुले में शौच, जलभराव और भीड़भाड़ के कारण स्लम क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ता है। योजना के तहत स्वच्छ जल आपूर्ति, कचरा प्रबंधन, नालियों की सफाई, वर्षा जल संग्रहण, हरित क्षेत्र और सौर ऊर्जा जैसे उपाय अपनाकर पर्यावरण संतुलन बनाए रखा जाता है। पर्यावरणीय सुधार से रोगों की रोकथाम, जल संकट का समाधान और शहरी जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि होती है। इससे शहरों को रहने योग्य बनाया जा सकता है और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी संभव होता है। यह योजना आर्थिक विकास के साथ पर्यावरणीय जिम्मेदारी का संतुलन स्थापित करती है।
10. स्लम पुनर्वास योजना को अधिक प्रभावी बनाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
स्लम पुनर्वास योजना को अधिक प्रभावी बनाने के लिए पारदर्शिता, समुदाय की भागीदारी और आधुनिक तकनीक का उपयोग आवश्यक है। सर्वेक्षण में GIS और डिजिटल डेटा का उपयोग कर सही लाभार्थियों की पहचान करनी चाहिए। स्थानीय लोगों की समितियाँ बनाकर उन्हें योजना में शामिल करना चाहिए। भ्रष्टाचार रोकने के लिए स्वतंत्र निगरानी और शिकायत पोर्टल विकसित किए जाएँ। साथ ही, निर्माण में गुणवत्ता सुनिश्चित कर सुविधाओं का समय पर विकास किया जाए। पर्यावरण अनुकूल निर्माण और सामाजिक सेवाओं को योजना में शामिल किया जाए। सरकार और निजी क्षेत्र के बीच समन्वय बढ़ाकर निवेश आकर्षित करना चाहिए। इससे योजना का उद्देश्य केवल आवास तक सीमित न रहकर समाज के व्यापक विकास में योगदान देगा।