“स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) के उल्लंघन पर बार-बार दायर हो सकती है निष्पादन याचिका: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”
(Saraswati Devi & Ors. v. Santosh Singh & Ors. – Supreme Court, 2025)
मुख्य लेख:
नई दिल्ली, जून 2025 — भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि यदि किसी स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) का बार-बार उल्लंघन होता है, तो निष्पादन याचिका (Execution Petition) एक से अधिक बार दाखिल की जा सकती है।
यह ऐतिहासिक निर्णय Saraswati Devi & Ors. बनाम Santosh Singh & Ors. मामले में सुनाया गया, जिसमें न्यायालय ने कहा कि:
“पहले उल्लंघन को लेकर दाखिल निष्पादन याचिका में संतुष्टि दर्ज कर देना (satisfaction recorded) इस बात को नहीं रोकता कि भविष्य में हुए नए उल्लंघनों के लिए नई निष्पादन याचिका दायर न की जाए।“
⚖️ मामले का सार:
- वादियों (Petitioners) ने प्रतिवादियों के विरुद्ध स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) प्राप्त की थी।
- निषेधाज्ञा का उल्लंघन होने पर उन्होंने पहली निष्पादन याचिका (EP) दायर की, जिसमें संतोषजनक निष्कर्ष पर पहुंचकर उसे समाप्त कर दिया गया।
- इसके बाद, प्रतिवादियों द्वारा फिर से आदेश का उल्लंघन किया गया, जिस पर वादियों ने दूसरी निष्पादन याचिका दायर की।
- प्रतिवादियों ने आपत्ति की कि एक बार EP में संतुष्टि आ चुकी है, इसलिए दोबारा याचिका नहीं चल सकती।
👨⚖️ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
- स्थायी निषेधाज्ञा एक निरंतर प्रभावी आदेश होता है और उसका उल्लंघन जब-जब होगा, उसका अलग-अलग समाधान किया जा सकता है।
- पहले उल्लंघन के लिए EP में संतुष्टि दर्ज कर दी गई हो, इसका यह मतलब नहीं कि भविष्य में होने वाले उल्लंघनों को नजरअंदाज कर दिया जाए।
- प्रत्येक नया उल्लंघन स्वतंत्र रूप से निष्पादन योग्य (separately executable) होता है।
📚 प्रमुख कानूनी सिद्धांत:
विषय | विवरण |
---|---|
स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) | ऐसा आदेश जो किसी पक्ष को किसी कार्य से स्थायी रूप से रोकता है। |
निष्पादन याचिका (Execution Petition) | जब अदालत का आदेश पालन न किया जाए तो उसका क्रियान्वयन कराने हेतु दायर याचिका। |
CPC Order 21 | निष्पादन प्रक्रिया के लिए लागू सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश। |
🧭 निर्णय का महत्व:
- यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि न्यायालय का स्थायी आदेश केवल कागज़ी नहीं, बल्कि बार-बार उल्लंघन पर भी प्रभावी रहना चाहिए।
- यह निर्णय न्यायिक आदेशों की पवित्रता और पालन की गारंटी देता है।
- यह पीड़ित पक्ष को हर नए उल्लंघन पर कानूनी संरक्षण और उपचार का अधिकार सुनिश्चित करता है।
✅ निष्कर्ष:
Saraswati Devi बनाम Santosh Singh प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय स्थायी निषेधाज्ञाओं की प्रभावशीलता को मजबूत करता है। यह तय करता है कि एक बार आदेश की अवहेलना होने पर कार्यवाही समाप्त होने का मतलब यह नहीं कि उसके बाद के उल्लंघनों पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकती। इस फैसले ने न्यायालयीन आदेशों की निरंतरता और कठोरता को मजबूती दी है।