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“स्थानीय अनुभव की बेड़ियाँ तोड़ो: सुप्रीम कोर्ट ने ठेके साझा प्रतिस्पर्धा के लिए ‘एक राज्य के भीतर पूर्व आपूर्ति अनुभव’ की शर्त को गैर-वाजिब कहा”

“स्थानीय अनुभव की बेड़ियाँ तोड़ो: सुप्रीम कोर्ट ने ठेके साझा प्रतिस्पर्धा के लिए ‘एक राज्य के भीतर पूर्व आपूर्ति अनुभव’ की शर्त को गैर-वाजिब कहा”


प्रस्तावना

भारत में सार्वजनिक पट्टों (public tenders) एवं सरकारी खरीदारी (government procurement) की प्रक्रिया एक संवेदनशील विषय है — जहाँ जनता के पैसे खर्च होते हैं, और पारदर्शिता, प्रतिस्पर्धा, न्यायप्रियता (fairness) की अपेक्षा होती है। सरकारी विभाग जब किसी वस्तु या सेवा की खरीदारी करते हैं, तो वे आवेदन-पत्रों में (tender notices / NITs) कुछ पात्रता शर्तें निर्धारित करते हैं जैसे वित्तीय क्षमता, तकनीकी अनुभव, पिछले आपूर्तियाँ (past performance) आदि।

इन शर्तों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि जो व्यक्ति या कंपनी आपूर्ति कर रही है, वह गुणवत्ता दे सके, समय पर दे सके और भरोसेमंद हो। लेकिन जब ये शर्तें स्थानीय प्रभाव (local past experience) को ज़रूरी कर दें और केवल उन्हीं के लिए रास्ता खोलें जिन्होंने उसी राज्य की सरकारी एजेंसियों को पिछले वर्षों में समान आपूर्ति की हो, तो ये शर्तें प्रश्नचिह्न के दायरे में आती हैं कि क्या ये अनुचित और संविधानविरुद्ध नहीं हैं?

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने Vinishma Technologies Pvt. Ltd. v. State of Chhattisgarh & Anr. मामले में इसी तरह की एक शर्त को खारिज किया। यह निर्णय सार्वजनिक खरीद और संवैधानिक अधिकारों (rights) के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसने यह स्थापित किया कि राज्य सरकारों की वह शक्ति कि वे पात्रता में ऐसे स्थानीय पूर्व अनुभव को अनिवार्य करें, हमेशा कानूनी तौर पर स्वीकार्य नहीं है।


मामले का वर्णन

  1. प्रारंभिक तथ्य
    • याचिकाकर्ता: Vinishma Technologies Pvt. Ltd., मुंबई स्थित एक कंपनी है जिसने विभिन्न राज्यों में सरकारी स्कूलों आदि को स्पोर्ट्स किट्स की आपूर्ति की है।
    • निविदाएँ (Tenders): छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की Samagra Shiksha परियोजना के अंतर्गत, सरकारी प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों को स्पोर्ट्स किट्स की आपूर्ति के लिए तीन निविदाएँ जारी की गई थीं। ये निविदाएँ 21 जुलाई 2025 को जारी की गईं।
    • पात्रता शर्त (Eligibility Criterion): निविदा दस्तावेज़ों में एक अतिरिक्त शर्त थी कि उसने पिछले तीन वित्तीय वर्षों में छत्तीसगढ़ सरकार की एजेंसियों को स्पोर्ट्स सामान की आपूर्ति कम-से-कम ₹6 करोड़ की हो।
  2. याचिकाकर्ता की समस्या
    • याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उन्हें अन्य राज्यों में पर्याप्त अनुभव है, लेकिन उन्होंने छत्तीसगढ़ में ऐसी कोई सरकारी आपूर्ति नहीं की है, इसलिए उन्हीं शर्तों के पार वे पात्र नहीं होंगे।
    • उन्होंने तर्क दिया कि यह शर्त केवल “स्थानीय अनुभव” को अनिवार्य मान कर बाहरी योग्य उत्पादकों को बाहर कर देती है, भले ही उनके पास तकनीकी क्षमता और आर्थिक संसाधन हों।
  3. न्यायालयीय प्रक्रिया
    • याचिकाकर्ता ने पहले छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (High Court) का दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन उच्च न्यायालय ने इन शर्तों को स्वीकार किया, और याचिका खारिज कर दी। उच्च न्यायालय का तर्क था कि राज्य को यह अधिकार है कि वह ऐसे निविदा शिकायती स्मार्ट तरीके से कानूनी शर्तें तय करे ताकि विश्वसनीय प्रस्तावक चुने जा सकें।
    • इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया, जहाँ एक पीठ (Division Bench) — न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आलोक अरढ़े — ने याचिकाकर्ता की अपील सुनकर राज्य की शर्तों को अवैध / गैर-वाजिब (arbitrary) घोषित किया।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और तर्क

सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकार निर्णय दिया:

  1. निविदा शर्तों की शक्ति सीमित है
    राज्य सरकारों को निविदाएँ (tenders) जारी करने और पात्रता शर्तें निर्धारित करने की स्वायत्तता है, लेकिन इस स्वायत्तता की सीमा होती है — वह सीमा संविधान द्वारा निर्धारित होती है, जैसे कि न्याय (अपराध), समानता (Article 14), और व्यापार की स्वतंत्रता (Article 19(1)(g))
  2. न्यायसंगत (Reasonable) और तर्कसंगत (Rational) संबंध (Nexus) की ज़रूरत
    निविदा में किसी भी पात्रता शर्त को उनके उद्देश्य (object) के साथ तर्कसंगत संबंध होना चाहिए। यदि उद्देश्य केवल गुणवत्तापूर्ण सामग्री आपूर्ति करना है, तो यह पर्याप्त हो कि प्रस्तावक ने अन्य राज्यों या केंद्र सरकार एजेंसियों के साथ ऐसा अनुभव हो। इस अनुभव को राज्य-विशिष्ट रखने की कोई तर्कसंगत आवश्यकता नहीं थी।
  3. स्थानीय अनुभव की शर्त का प्रभाव
    चुनौती यह थी कि इस शर्त ने “बाहर के” (outsider) और उन प्रस्तावकों को बाहर रखा, जिनके पास राज्य सरकार के अनुभव नहीं था, भले ही वे अन्य क्षेत्रों में सफलतापूर्वक काम कर चुके हों। ऐसी शर्तों से प्रतियोगिता (competition) कम होती है, बाजार में सीमित चयनकर्ता होते हैं, और संभावित रूप से कार्टेलिज़ेशन (cartelisation) को बढ़ावा मिलता है।
  4. राज्य की दलीलें और उनका खण्डन
    राज्य ने यह तर्क दिया कि छत्तीसगढ़ एक माओवादी-प्रभावित राज्य है, जिससे कुछ जिलों में भौगोलिक कठिनियाँ हैं, और ऐसे में निविदा अनुभव राज्य के भीतर होना चाहिए ताकि समय पर आपूर्ति हो सके और गुणवत्ता सुनिश्चित हो।
    सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज किया:

    • क्योंकि निविदा स्पोर्ट्स किट्स जैसी सामान की आपूर्ति का प्रकरण है, न कि सुरक्षा-संवेदनशील सामान का।
    • राज्य के सभी ज़िलों को माओवादी-प्रभावित नहीं माना जा सकता; और पूरे राज्य को उसी तरह से प्रभावित बताना न्यायसंगत नहीं है।
    • बाहरी प्रस्तावक (outsider bidders) स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला (local supply chains) का उपयोग कर अपनी आपूर्ति पूरी कर सकते हैं; यह आवश्यक नहीं कि उन्होंने पहले राज्य सरकार के साथ वही कार्य किया हो।
  5. संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन
    कोर्ट ने कहा कि यह शर्त Article 14 (समानता का अधिकार) और Article 19(1)(g) (व्यापार, व्यवसाय या पेशा करने की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करती है। खासकर Article 19(1)(g) के तहत, व्यक्ति / कंपनी को व्यापार करने का अधिकार है, और निविदा शर्तों के माध्यम से राज्य यदि “बाजार को बाहर के योग्य प्रतिस्पर्धियों से बंद कर दे” तो यह स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
  6. निष्कर्ष
    • सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेशों को रद्द किया।
    • निविदा की शर्तों को खारिज किया गया।
    • राज्य को स्वतंत्र रूप से नए निविदा दस्तावेज़ जारी करने की आज़ादी दी गई, जो संविधान के अनुरूप हों, विशेष रूप से उन शर्तों के संदर्भ में जो प्रतियोगिता को खुला रखते हों।

कानूनी सिद्धांत एवं न्यायशास्त्र

इस निर्णय में कई पुराने और नए संविधान एवं न्यायशास्त्र सिद्धांतों की पुष्टि हुई है:

  1. Article 14 – समानता का अधिकार
    Article 14 राज्य के समान व्यवहार करने का दायित्व है। यदि राज्य किसी निविदा में समान योग्यता वाले प्रस्तावकों को बिना वाजिब कारण बाहर रखे, तो समानता का सिद्धांत प्रभावित होता है। इस मामले में, वह शर्त कि प्रस्तावक ने छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के साथ पिछले वर्षों में अनुभव हो, समान प्रस्तावकों को अवसर न देकर न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ थी।
  2. Article 19(1)(g) – व्यापार की स्वतंत्रता
    यह मौलिक अधिकार व्यापार या व्यवसाय करने की स्वतंत्रता देता है। निविदा प्रक्रिया भी “व्यापार / व्यवसाय” के पहलू में आती है, क्योंकि प्रस्तावक वस्त्र / वस्तुओं / सेवाओं की आपूर्ति कर रहा है जो व्यवसाय है। शर्तों के माध्यम से व्यापारियों को अयोग्य ठहराना — जब वे अन्य मामलों में सक्षम हों — इस अधिकार के उल्लंघन के रूप में देखा गया है।
  3. अनुच्छेद 19(6) – व्यापार स्वायत्तता पर सीमाएँ
    Article 19(1)(g) व Article 19(6) के बीच संतुलन आवश्यक है: 19(6) व्यापार/व्यवसाय पर ऐसी संवैधानिक रूप से स्वीकार्य सीमाएँ निर्धारित करता है जो राज्य द्वारा सार्वजनिक हित, सरकारी नीति, अनुशासन, व्यवस्था आदि के लिए हों। परंतु ऐसी सीमाएँ सफलतापूर्वक न्यायोचित, प्रमाणित और परिमित (narrowly tailored) होनी चाहिए।
  4. Doctrine of Level Playing Field
    यह न्यायालयों द्वारा पिछले कुछ वर्षों में विकसित सिद्धांत है — कि सभी समान अवस्था में व्यक्तियों (competitors) को समान अवसर मिलना चाहिए। निविदा प्रक्रियाएँ इस सिद्धांत को बाधित नहीं कर सकतीं। इस सिद्धांत को हाल ही में Union of India v. Bharat Forge Ltd. इत्यादि मामलों में भी पूरकता मिली है।
  5. राज्य का विवेक (Discretion) लेकिन विवेक की सीमाएँ
    राज्य को अधिकार है कि वह निविदा शर्तें निर्धारित करे — लेकिन यह विवेक अनियंत्रित नहीं हो सकता। विवेक का उपयोग तब न्यायसंगत है जब वह उद्देश्य, औचित्य, और वित्तीय एवं तकनीकी पक्ष के बीच संतुलन बनाए। यदि किसी शर्त का उद्देश्य और वास्तविक प्रस्तावकों की प्रतियोगिता पर उससे असंगत प्रभाव हो, तो वह विवेक नामंजूर माना जा सकता है।

सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

यह फैसला केवल कानूनी सिद्धांतों का अनुपालन नहीं है, बल्कि इसके कई सामाजिक-आर्थिक परिणाम होंगे:

  1. प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी
    बाहरी योग्य प्रस्तावकों को अवसर मिलेगा कि वे राज्य सरकारों की निविदाओं में भाग लें। इससे कीमतों में प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होगी, गुणवत्ता में सुधार होगा, और सरकारी धन का बेहतर उपयोग होगा।
  2. निर्यातकों व उद्योगों को लाभ
    छोटे और मध्यम उद्यम (MSMEs) जो केवल केंद्र सरकार या अन्य राज्यों में काम कर चुके हैं, लेकिन नए राज्य में अनुभव नहीं है, उन्हें नए बाजार खुलेंगे। उद्योग को विस्तार का मौका मिलेगा।
  3. राज्य-स्तरीय संरक्षणवाद (local protectionism) का परिहार
    इस तरह की शर्तें अक्सर स्थानीय विक्रेताओं (local vendors) का समर्थन करती हैं, जिससे बाहर के विक्रेताओं को बाधा होती है। यह फैसला स्थानीय संरक्षणवाद की प्रवृत्ति को चुनौती देगा।
  4. न्यायपालिका एवं प्रशासन में न्यायप्रियता बढ़ेगी
    सरकारों को निविदाओं में अधिक सावधानी बरतनी पड़ेगी, शर्तों को संवैधानिक मानकों, प्रतिस्पर्धात्मक न्याय, और सार्वजनिक हित के अनुरूप बनाने की जिम्मेदारी बढ़ेगी।
  5. पारदर्शिता व विश्वसनीयता का निर्माण
    निविदा प्रक्रियाएँ पारदर्शी होंगी, व्यापारियों का विश्वास बढ़ेगा कि नियम निष्पक्ष हैं और केवल राजनीतिक या स्थानीय दबाव के कारण नहीं बदले जाएंगे।

चुनौतियाँ और सीमाएँ

हालाँकि फैसला स्वागतयोग्य है, लेकिन इसके कार्यान्वयन और प्रभाव में कुछ चुनौतियाँ होंगी:

  1. निविदा दस्तावेजों में शर्तों का पुनः स्वरूपित होना
    राज्य सरकारों और अन्य विभागों को अपने निविदा दस्तावेजों (tender documents) फिर से तैयार करने होंगे। पुराने अनुभव, स्थान, स्थानीय आपूर्ति कवरेज आदि को पुनः परिभाषित करना होगा।
  2. प्रदायक की क्षमता व भरोसा
    बाहरी प्रस्तावकों को स्थानीय अवस्थाएँ (जैसे परिवहन, वितरण नेटवर्क, स्थानीय क्वालिटी नियम आदि) समझने की आवश्यकता होगी। यदि ये सुविधाएँ उपलब्ध न हों, तो समय पर आपूर्ति व गुणवत्ता में समस्याएँ होंगी।
  3. परिवहन और लॉजिस्टिक लागत
    दूर-दराज इलाकों में आपूर्ति करना महंगा हो सकता है; स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला की कमी हो सकती है। सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि निविदा में लॉजिस्टिक अवरोधों को ध्यान में लिया जाए और संभव हो तो सहायता या नेटवर्किंग की सुविधा दी जाए।
  4. अन्य संविधਾਨਕ चुनौतियाँ
    Article 19(6) के अंतर्गत राज्य को सार्वजनिक हित, आपूर्ति सुरक्षा आदि के लिए सीमाएँ लगाने की शक्ति है। राज्य यह तर्क कर सकता है कि आपूर्ति की विश्वसनीयता, समयबद्ध वितरण आदि के मद्देनजर स्थानीय अनुभव आवश्यक हो। ऐसे मामलों में न्यायालयों को मूल्यांकन करना होगा कि क्या शर्त न्यूनतम आवश्यक है या अत्यधिक प्रतिबंधात्मक।
  5. नए निविदाएँ जारी करना पड़ेगी
    इस फैसले के बाद छत्तीसगढ़ सरकार को नए निविदाएँ संविधान-अनुकूल शर्तों के साथ जारी करनी होंगी। इससे समय लग सकता है, और स्कूल-बच्चों को जो वितरित सामग्री जल्दी चाहिए, उसमें देरी हो सकती है।

संभावित दिशाएँ और सुझाव

इस फैसले को देखते हुए, कुछ नीति-स्तरीय एवं प्रैक्टिकल सुझाव इस प्रकार हो सकते हैं:

  1. पूर्व अनुभव को राज्य-विशिष्ट न बनाना
    अगर अनुभव माँगा जाए, तो इसे राज्य सरकार के साथ विशेष आपूर्तियों के बदले किसी समान प्रकृति (similar nature) की आपूर्ति के रूप में मानने की व्यवस्था हो सकती है, चाहे वह किसी अन्य राज्य या केंद्र सरकार के साथ हो।
  2. महत्वपूर्ण लेकिन लचीली पात्रता शर्तें
    अनुभव की शर्त को ऐसा आकार दिया जाए कि वह आत्म-समर्पित हो, प्रतिस्पर्धा को संबोधित करे, लेकिन अत्यधिक बोझ न बने। उदाहरण: न्यूनतम अनुभव राशि कम हो, या अन्य राज्यों का अनुभव स्वीकार हो।
  3. आयोगों / विभागों के लिए दिशानिर्देश
    नीति निर्माता / सरकारें केंद्रीय दिशानिर्देश जारी करें कि निविदा की पात्रता शर्तों में “स्थानीय अनुभव” की बाधा न हो; यदि हो, तो उसका औचित्य स्पष्ट हो, समय-सीमा की तर्कसंगत हो, और प्रभावित हिस्सों का विस्तृत आकलन हो।
  4. न्यायिक समीक्षा और पूर्व निर्णयों का उपयोग
    इस फैसले को अन्य निविदा विवादों में precedent के रूप में उपयोग किया जाएगा। वकीलों और न्यायालयों को इस सिद्धांत का हवाला देना चाहिए जब ऐसी स्थानीय-अनुभव शर्तें नियुक्ति में बाधा डालती हों।
  5. स्थानीय आपूर्ति नेटवर्क और स्थानीय संवर्धन को अलग से समर्थन
    यदि उद्देश्य स्थानीय उद्योग को बढ़ावा देना हो, तो वह अन्य नीतिगत माध्यमों से किया जाए — जैसे स्थानीय विक्रेताओं के लिए प्रशिक्षण, सब्सिडी, स्थानीय कारीगरी को समर्थन आदि — लेकिन निविदा पात्रता शर्तों में विदेशी/अन्य राज्य की कंपनियों को बाहर नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का Vinishma Technologies Pvt. Ltd. v. State of Chhattisgarh फैसला सार्वजनिक खरीद प्रक्रिया में न्याय, समानता और व्यापार की स्वतंत्रता के मूलभूत सिद्धांतों की पुष्टि करता है।

यह फैसला बताता है कि:

  • राज्य की शक्ति सीमित है, और वह अधिकार arbitrary या discriminatory शर्तें निर्धारित कर के व्यापारियों के मूलभूत अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकता।
  • निविदा प्रक्रिया को level playing field के सिद्धांत के अनुरूप होना चाहिए — हर योग्य प्रस्तावक को समान अवसर का हक होना चाहिए।
  • सार्वजनिक हित की वकालत करने का अर्थ यह नहीं कि स्थानीय संरक्षणवाद हो; बल्कि यह कि गुणवत्ता, पारदर्शिता, प्रतियोगिता और सार्वजनिक व्यय की जवाबदेही बढ़े।

भविष्य में, इस तरह के निर्णय सार्वजनिक ठेके और सरकारी खरीद कार्यक्रमों में सकारात्मक बदलाव लाएँगे — निविदा दस्तावेज़ अधिक न्यायसंगत होंगे, राज्य सरकारें अधिक संवेदनशील और न्याय‐व्यवस्था के अनुरूप शर्तें बनाएँगी, और छोटे व मध्यम व्यवसायों के लिए नए अवसर खुलेंगे।