“स्थानांतरण आवेदन में पत्नी की सुविधा सर्वोपरि नहीं: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

शीर्षक:
“स्थानांतरण आवेदन में पत्नी की सुविधा सर्वोपरि नहीं: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

प्रकरण: Nancy बनाम Vinay Dheer | TA-1678-2025 | निर्णय वर्ष: 2025 | न्यायालय: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय


परिचय:

मात्रिमोनियल मुकदमों में अक्सर देखा गया है कि जब पति या पत्नी में से कोई एक न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर रहता है, तो स्थानांतरण (Transfer) की मांग की जाती है। विशेषकर पत्नियों द्वारा यह प्रार्थना की जाती है कि उन्हें मुकदमे की कार्यवाही उनके निवास स्थान के नजदीकी न्यायालय में स्थानांतरित कर दी जाए। परंतु क्या पत्नी की सुविधा हर स्थिति में सर्वोच्च है? क्या मात्र “महिला होना” ही स्थानांतरण का पर्याप्त आधार है?

इन जटिल प्रश्नों का उत्तर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने Nancy बनाम Vinay Dheer मामले में दिया, जहाँ पत्नी द्वारा दायर स्थानांतरण याचिका को अस्वीकार कर दिया गया।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • वादी (Nancy) ने एक स्थानांतरण आवेदन (Transfer Application – TA-1678-2025) दाखिल किया, जिसमें पति द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत PJFC, अंबाला में दायर तलाक याचिका को खरड़, जिला SAS नगर स्थानांतरित करने की मांग की गई।
  • उन्होंने अपने पिता की खराब तबीयत का हवाला दिया और दावा किया कि उन्हें अंबाला तक जाकर मुकदमे में भाग लेना मुश्किल होगा।
  • उन्होंने इस स्थानांतरण को अपनी “सुविधा” और “सुरक्षा” का मामला बताया।

मुख्य मुद्दा:

क्या मात्र पत्नी की सुविधा को आधार बनाकर तलाक याचिका को दूसरे न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सकता है, जबकि पति की असुविधा भी इस प्रक्रिया में उत्पन्न होती है?


न्यायालय का विश्लेषण एवं निर्णय:

1. सुविधा का सामान्य सिद्धांत – पर अपवाद संभव:
कोर्ट ने माना कि आम तौर पर स्थानांतरण आवेदनों में पत्नी की सुविधा को वरीयता दी जाती है, लेकिन यह कोई कठोर नियम (thumb rule) नहीं है। हर मामले की परिस्थिति के अनुसार न्याय किया जाना चाहिए।

2. प्रमाण का अभाव:
आवेदन में पत्नी द्वारा पिता की खराब तबीयत का उल्लेख किया गया, लेकिन कोई चिकित्सीय प्रमाण या दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया गया, जिससे यह स्थापित हो सके कि वह यात्रा करने में असमर्थ हैं।

3. आत्मनिर्भरता और दूरी:
कोर्ट ने यह भी कहा कि आवेदिका एक आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी महिला प्रतीत होती हैं, जो कि 55 किमी की यात्रा बिना किसी विशेष कठिनाई के कर सकती हैं, खासकर जब दोनों स्थानों के बीच उचित सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था उपलब्ध है।

4. पति की असुविधा की अनदेखी नहीं:
कोर्ट ने कहा कि पत्नी की सुविधा को स्वतः (ipso facto) प्राथमिकता देना पति की असुविधा की अनदेखी होगी, जो कि न्याय के मूलभूत सिद्धांतों के विरुद्ध है।

5. अंतिम निर्णय:
इन सभी तथ्यों के आलोक में, न्यायालय ने स्थानांतरण आवेदन को अस्वीकार (Dismiss) कर दिया।


फैसले का महत्व:

  • यह निर्णय स्पष्ट करता है कि सिर्फ महिला होना या स्थानीय असुविधा का दावा करना ही स्थानांतरण के लिए पर्याप्त नहीं है।
  • मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर किया जाएगा।
  • यह फैसला पति-पत्नी दोनों के न्यायिक अधिकारों और संतुलन को संरक्षित करने का प्रयास करता है।
  • यह न्यायपालिका की ओर से एक संदेश है कि झूठे या आधारहीन स्थानांतरण आवेदनों को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

निष्कर्ष:

Nancy बनाम Vinay Dheer का निर्णय स्थानांतरण मामलों में न्यायिक संतुलन और वस्तुनिष्ठ परीक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करता है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि पति और पत्नी दोनों के अधिकार समान हैं, और मात्र एक पक्ष की सुविधा को सर्वोपरि मानना न्याय के मर्म को ठेस पहुंचा सकता है। इस निर्णय से स्थानांतरण याचिकाओं में विवेकपूर्ण परीक्षण का मार्ग प्रशस्त होता है।