स्टैंडर्ड फॉर्म एंप्लॉयमेंट बॉन्ड स्वतः शून्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने Brojo Nath Ganguly केस से किया भिन्नता का विश्लेषण
मामला: Vijaya Bank & Anr. Versus Prashant B Narnaware
न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India)
निर्णय तिथि: 14 मई 2025
विषय: अनुबंध अधिनियम, 1872 – रोजगार अनुबंध (Employment Bonds) की वैधता
मुख्य बिंदु:
“Standard form employment bonds are not per se void unless shown to be unconscionable or opposed to public interest.”
भूमिका:
14 मई 2025 को दिए गए अपने निर्णय में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि स्टैंडर्ड फॉर्म में किए गए रोजगार अनुबंध (employment bonds) अपने आप में शून्य (void) नहीं होते, जब तक यह न दिखाया जाए कि वे अनुचित (unconscionable) हैं या जनहित के विरुद्ध (opposed to public policy) हैं। इस निर्णय में न्यायालय ने प्रसिद्ध Brojo Nath Ganguly v. Industrial Development Bank of India केस से भिन्नता (distinguished) करते हुए यह स्पष्ट किया कि प्रत्येक मामले में तथ्यात्मक परिस्थितियां निर्णायक होती हैं।
मामले की पृष्ठभूमि:
प्रतिवादी प्रशांत बी. नर्नावरे ने विजया बैंक के साथ एक रोजगार अनुबंध किया था, जिसमें एक निर्धारित अवधि तक सेवा देना और समयपूर्व इस्तीफे की स्थिति में लागत की वसूली का प्रावधान था। नर्नावरे द्वारा अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन करने पर बैंक ने नुकसान की भरपाई की मांग की।
नर्नावरे की ओर से तर्क दिया गया कि:
- यह “standard form bond” है जो गैरबराबरी की स्थिति में हस्ताक्षरित किया गया।
- यह अनुबंध “unconscionable” और जनहित के विरुद्ध है, अतः अनुबंध अधिनियम की धारा 23 के तहत शून्य है।
न्यायालय का विश्लेषण:
न्यायालय ने निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया:
- अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 23 के अनुसार केवल वही अनुबंध शून्य होगा जो:
- अवैध हो,
- जनहित के विरुद्ध हो, या
- अनैतिक और अन्यायपूर्ण हो।
- Standard form employment bond का उद्देश्य:
- प्रशिक्षण की लागत की भरपाई सुनिश्चित करना।
- संस्थान के साथ न्यूनतम सेवा अवधि सुनिश्चित करना।
- न्यायालय ने कहा कि जब तक यह न दिखाया जाए कि अनुबंध की शर्तें इतनी कठोर और अन्यायपूर्ण हैं कि वह कर्मचारी की स्वतंत्रता का शोषण करती हैं, तब तक वह शून्य नहीं मानी जा सकती।
Brojo Nath Ganguly Case से भिन्नता (Distinction):
- Brojo Nath Ganguly v. IDBI मामले में, न्यायालय ने जिस employment bond को अवैध ठहराया था, उसमें अत्यधिक कठोर दंडात्मक शर्तें थीं, और कर्मचारी की मर्जी के खिलाफ थोपे गए प्रावधान मौजूद थे।
- लेकिन मौजूदा केस में न्यायालय ने पाया कि:
- अनुबंध पारदर्शी था।
- कर्मचारी को विकल्प था।
- अनुबंध में अत्यधिक या अवैध दंड का प्रावधान नहीं था।
अतः, Brojo Nath केस का प्रत्यक्ष अनुप्रयोग इस मामले में नहीं हो सकता।
न्यायालय का निर्णय:
- Employment bond वैध माना गया।
- नर्नावरे को बैंक को प्रशिक्षण लागत और अन्य नुकसान की भरपाई करने का आदेश दिया गया।
- न्यायालय ने यह दोहराया कि समरूप अनुबंध (standard form contracts) केवल इस आधार पर शून्य नहीं हो सकते कि वे एकपक्षीय हैं, जब तक वह अनुचित, शोषणकारी या जनहित के प्रतिकूल न हों।
निष्कर्ष:
यह निर्णय रोजगार अनुबंधों की वैधता पर एक महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि न्यायिक हस्तक्षेप तभी किया जाएगा जब अनुबंध वास्तव में अन्यायपूर्ण, अनुचित या शोषणकारी हो। इससे उन नियोक्ताओं को राहत मिली है जो कर्मचारियों को प्रशिक्षण देकर संस्थागत प्रतिबद्धता की अपेक्षा रखते हैं।