स्कूलों में बच्चों के अधिकार: शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न पर रोक
प्रस्तावना
स्कूल, बच्चों के लिए शिक्षा, नैतिक मूल्यों और व्यक्तित्व विकास का केंद्र होते हैं। लेकिन जब यही स्थान बच्चों के शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न का कारण बन जाए, तो यह न केवल उनके विकास में बाधा डालता है बल्कि उनके मौलिक अधिकारों का भी हनन करता है। भारत में शिक्षा के दौरान शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न पर पूर्ण प्रतिबंध है, और इसके उल्लंघन को गंभीर अपराध माना गया है।
शारीरिक दंड (Corporal Punishment) का अर्थ है बच्चे को अनुशासन या सज़ा के नाम पर शारीरिक पीड़ा या चोट पहुँचाना, जबकि मानसिक उत्पीड़न (Mental Harassment) में अपमानित करना, धमकाना, तिरस्कार करना या मानसिक दबाव डालना शामिल है। ये दोनों ही बच्चे के आत्मसम्मान, मानसिक स्वास्थ्य और सीखने की क्षमता पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
बच्चों के अधिकार का कानूनी आधार
1. भारतीय संविधान में प्रावधान
- अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार; इसमें सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन का अधिकार शामिल है।
- अनुच्छेद 21A – 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार।
- अनुच्छेद 39(e) और 39(f) – बच्चों को शोषण और मानसिक-शारीरिक उत्पीड़न से बचाने का निर्देश।
- अनुच्छेद 45 – प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा की व्यवस्था।
2. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act)
- धारा 17 – शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न पर पूर्ण प्रतिबंध।
- उल्लंघन करने पर संबंधित शिक्षक या कर्मचारी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई और सज़ा का प्रावधान।
3. किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act)
- बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का क्रूर व्यवहार, हिंसा या उत्पीड़न दंडनीय अपराध है।
4. भारतीय दंड संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 / पूर्व IPC)
- धारा 75 (JJ Act के अंतर्गत) – बच्चे के साथ क्रूरता।
- धारा 323/325 – चोट पहुँचाने पर दंड।
- धारा 506 – आपराधिक धमकी।
5. अंतर्राष्ट्रीय प्रावधान
- संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अभिसमय (UNCRC), 1989 – शिक्षा को गरिमा और सम्मान के साथ उपलब्ध कराना और हिंसा से संरक्षण।
- सतत विकास लक्ष्य (SDG 4) – सभी बच्चों के लिए सुरक्षित, समावेशी और हिंसामुक्त शिक्षा वातावरण सुनिश्चित करना।
शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न के प्रकार
1. शारीरिक दंड
- मारना, थप्पड़, बेंत से प्रहार
- खड़ा करना, घुटनों के बल बैठाना
- भोजन या पानी से वंचित करना
- ज़बरदस्ती शारीरिक श्रम कराना
2. मानसिक उत्पीड़न
- अपमानजनक भाषा का प्रयोग
- साथियों के सामने तिरस्कार या मज़ाक उड़ाना
- बार-बार असफल घोषित करना
- धमकी, डराना या भय का माहौल बनाना
न्यायालय का दृष्टिकोण
- Parents Forum for Meaningful Education बनाम भारत संघ (2001) – दिल्ली उच्च न्यायालय ने शारीरिक दंड को असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया।
- RTE Act लागू होने के बाद – कई राज्यों ने विद्यालय शिक्षा में हिंसा के खिलाफ विस्तृत नियम बनाए।
- Supreme Court Observations – बच्चों के अधिकार और सम्मान की रक्षा राज्य का दायित्व है, और शिक्षा में हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के प्रभाव
- शारीरिक प्रभाव – चोट, स्वास्थ्य हानि, विकलांगता।
- मानसिक प्रभाव – आत्मविश्वास में कमी, अवसाद, डर, चिंता।
- शैक्षणिक प्रभाव – पढ़ाई में रुचि कम होना, स्कूल छोड़ना।
- सामाजिक प्रभाव – समाज और संस्थाओं पर अविश्वास, असामाजिक व्यवहार।
रोकथाम की रणनीतियाँ
1. कानूनी प्रवर्तन
- स्कूल प्रबंधन और शिक्षकों को RTE Act और JJ Act के प्रावधानों का सख्ती से पालन करवाना।
- शिकायत निवारण समितियों का गठन।
2. शिक्षक प्रशिक्षण और संवेदनशीलता
- शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में बाल मनोविज्ञान, सकारात्मक अनुशासन और गैर-हिंसक तरीकों की शिक्षा।
- शिक्षकों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता और संवाद कौशल का विकास।
3. अभिभावकों और समुदाय की भागीदारी
- अभिभावकों को बच्चों के अधिकारों के बारे में जागरूक करना।
- स्कूल प्रबंधन समितियों (SMC) में अभिभावकों की सक्रिय भूमिका।
4. शिकायत और निगरानी तंत्र
- बच्चों के लिए हेल्पलाइन नंबर (Childline 1098)।
- राज्य और जिला स्तर पर निगरानी अधिकारी।
5. सकारात्मक अनुशासन पद्धतियाँ
- पुरस्कार और प्रशंसा पर आधारित प्रणाली।
- खेल, गतिविधियों और परामर्श के माध्यम से अनुशासन।
सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) – बच्चों के अधिकारों के संरक्षण और निगरानी के लिए दिशानिर्देश जारी करता है।
- राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (SCPCR) – राज्य स्तर पर मामलों की सुनवाई और कार्रवाई।
- NGOs – जैसे Save the Children, CRY बच्चों की सुरक्षा और जागरूकता में सक्रिय।
चुनौतियाँ
- कई ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में अभी भी दंडात्मक शिक्षा पद्धतियों का चलन।
- शिक्षकों और अभिभावकों में कानूनी जानकारी और संवेदनशीलता की कमी।
- शिकायतों के निपटान में देरी और पीड़ित बच्चों की सुरक्षा का अभाव।
निष्कर्ष
शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न बच्चों के विकास के लिए हानिकारक और असंवैधानिक हैं। विद्यालयों को ऐसा सुरक्षित, सम्मानजनक और सहयोगी वातावरण प्रदान करना चाहिए, जहाँ बच्चा भय के बजाय आत्मविश्वास के साथ सीख सके। यह केवल कानून का पालन करने का मामला नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक और नैतिक दायित्व का भी हिस्सा है।
यदि शिक्षा का उद्देश्य बच्चे के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास है, तो उसमें हिंसा और अपमान के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। बच्चों का सम्मान करना, उन्हें सुनना और उनके अधिकारों की रक्षा करना—यही एक सच्चे अर्थों में “शिक्षित समाज” की पहचान है।