“सोशल मीडिया निगरानी और सेंसरशिप: लोकतंत्र की अभिव्यक्ति या नियंत्रण का माध्यम?”

लेख शीर्षक:
“सोशल मीडिया निगरानी और सेंसरशिप: लोकतंत्र की अभिव्यक्ति या नियंत्रण का माध्यम?”


प्रस्तावना

इक्कीसवीं सदी की सबसे बड़ी क्रांति सोशल मीडिया रही है। फेसबुक, ट्विटर (अब X), व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स ने आम नागरिक को जनता के बीच अपनी बात रखने का सशक्त मंच प्रदान किया है। लेकिन जैसे-जैसे इन प्लेटफॉर्म्स की शक्ति बढ़ी, वैसे-वैसे इनके दुरुपयोग की घटनाएं, जैसे फेक न्यूज़, हेट स्पीच, सांप्रदायिक भड़काव और राष्ट्रविरोधी बयान भी सामने आने लगे।
इन्हीं खतरों को देखते हुए सरकारों ने सोशल मीडिया की निगरानी (Surveillance) और सेंसरशिप (Censorship) की प्रक्रिया को मजबूत करना शुरू किया।
यह लेख सोशल मीडिया पर नियंत्रण से जुड़ी कानूनी व्यवस्थाओं, संवैधानिक संतुलन, न्यायिक रुख, आलोचनाओं और सुधारों का विश्लेषण करता है।


1. सोशल मीडिया पर निगरानी और सेंसरशिप का अर्थ

📌 निगरानी (Surveillance):

सरकार या एजेंसियों द्वारा नागरिकों की ऑनलाइन गतिविधियों की निगरानी, जैसे पोस्ट, चैट, लोकेशन, वीडियो आदि पर नजर रखना।

📌 सेंसरशिप (Censorship):

किसी पोस्ट, वीडियो, सामग्री या प्रोफाइल को हटाना, ब्लॉक करना, या प्रकाशित होने से पहले ही उसे रोकना।


2. निगरानी और सेंसरशिप की कानूनी व्यवस्था

🧾 सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000)

  • धारा 69A: सरकार को ऐसी सामग्री को ब्लॉक करने का अधिकार देती है जो सार्वजनिक व्यवस्था, राष्ट्र की सुरक्षा या शालीनता के विरुद्ध हो।
  • धारा 66F: साइबर आतंकवाद पर कठोर दंड का प्रावधान।
  • धारा 67: अश्लील सामग्री के प्रसारण पर प्रतिबंध।

🧾 आईटी (मध्यस्थ दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 और 2023

  • सोशल मीडिया कंपनियों को शिकायत निवारण अधिकारी, नोडल संपर्क अधिकारी और अनुपालन अधिकारी नियुक्त करना अनिवार्य।
  • 24 घंटे में आपत्तिजनक पोस्ट हटाने की बाध्यता।
  • “पहला स्रोत (First Originator)” की जानकारी देना (WhatsApp जैसी सेवाओं के लिए विवादास्पद)।
  • सरकार द्वारा गठित PIB Fact Check Unit को किसी खबर को “फेक” घोषित करने का अधिकार।

🧾 इंडियन टेलीग्राफ एक्ट, 1885 और यूएपीए, 1967

  • राष्ट्र की सुरक्षा और आतंकवाद से जुड़े मामलों में निगरानी की अनुमति।

3. न्यायपालिका का दृष्टिकोण

⚖️ Shreya Singhal v. Union of India (2015)

  • सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66A को असंवैधानिक घोषित किया और कहा कि ऑनलाइन अभिव्यक्ति भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है।

⚖️ Puttaswamy v. Union of India (2017)

  • सुप्रीम कोर्ट ने निजता (Right to Privacy) को मौलिक अधिकार घोषित किया।
  • सरकार की निगरानी तभी वैध है जब वह “वैधानिक, उचित और आनुपातिक” हो।

⚖️ Anuradha Bhasin v. Union of India (2020)

  • सरकार इंटरनेट बंद नहीं कर सकती जब तक कि वह आवश्यक और आनुपातिक न हो।

4. सेंसरशिप के औचित्य: पक्ष और विपक्ष

पक्ष में तर्क:

  • फेक न्यूज़ और दंगों की रोकथाम
  • महिलाओं/बच्चों के प्रति अश्लीलता पर नियंत्रण
  • राष्ट्रविरोधी गतिविधियों की निगरानी
  • आतंकवाद, उग्रवाद, नक्सलवाद आदि से निपटना

विरोध में तर्क:

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला
  • सरकार के आलोचकों की आवाज दबाना
  • आलोचना और विरोध को देशद्रोह बताना
  • प्राइवेट डेटा और निजता का उल्लंघन

5. सेंसरशिप के विवादास्पद मामले

मामला विवाद
ट्विटर बनाम भारत सरकार (2021–2023) सरकार द्वारा सैकड़ों अकाउंट हटवाने के आदेश; ट्विटर ने विरोध किया
Alt News और फैक्ट चेकिंग विवाद केंद्र द्वारा PIB Fact Check को अधिकार देना कि वह खबरों को “फेक” घोषित करे
Farmers Protest 2020–21 कई सोशल मीडिया अकाउंट्स ब्लॉक किए गए; आरोप – स्वतंत्रता का दमन
Kashmir Internet Ban (2019) 7 महीनों तक इंटरनेट बंद; सुप्रीम कोर्ट ने इसकी वैधता पर सवाल उठाए

6. सोशल मीडिया कंपनियों की जिम्मेदारियाँ

  • हेट स्पीच और फेक न्यूज़ हटाने हेतु Content Moderation
  • यूज़र्स की रिपोर्ट पर कार्रवाई
  • गोपनीयता नीतियों का अनुपालन
  • भारत सरकार के साथ सहयोग और संवाद

अगर कंपनियाँ भारत सरकार के आईटी नियमों का पालन नहीं करतीं, तो उन्हें “Safe Harbour” (कानूनी सुरक्षा) का लाभ नहीं मिलेगा।


7. नागरिक अधिकार बनाम राज्य की शक्ति: संतुलन की आवश्यकता

  • सोशल मीडिया लोकतंत्र में संवाद का माध्यम है, लेकिन जब इसका उपयोग असत्य, हिंसा और अफवाह के लिए होता है, तो उसे रोकना जरूरी है।
  • परंतु इस रोक के नाम पर यदि सरकार सेंसरशिप और निगरानी का हथियार बना ले, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए घातक हो सकता है।

8. सुधार के सुझाव

  • स्वतंत्र और पारदर्शी फैक्ट-चेक इकाई की स्थापना
  • निगरानी के लिए न्यायिक या स्वतंत्र प्राधिकरण की निगरानी
  • एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन की सुरक्षा सुनिश्चित हो
  • सोशल मीडिया कंपनियों के साथ निरंतर संवाद और भागीदारी
  • डिजिटल साक्षरता बढ़ाना ताकि लोग फेक न्यूज़ से खुद बचें
  • सेंसरशिप की स्पष्ट सीमा तय हो — किन स्थितियों में और किन प्रक्रियाओं से कार्रवाई की जा सकती है

निष्कर्ष

सोशल मीडिया लोकतंत्र की नई धड़कन है, पर यह शक्ति तभी लाभदायक है जब वह सच, जवाबदेही और स्वतंत्रता के साथ जुड़ी हो। सरकार की निगरानी और नियंत्रण तब तक स्वीकार्य हैं जब तक वे न्यायोचित, आनुपातिक और पारदर्शी हों।
भारत जैसे लोकतंत्र को ऐसे कानून और नीतियाँ चाहिए जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करें, लेकिन समाज में नफरत, हिंसा और असत्य का भी निषेध करें
अंततः, संविधान की भावना और जनहित की सुरक्षा के बीच संतुलन ही इस चुनौती का समाधान है।