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“सोशल मीडिया की आज़ादी निरंकुश नहीं: अश्लील और देशद्रोही कंटेंट पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी”

सोशल मीडिया पर अश्लील और अवैध कंटेंट की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नियंत्रण के लिए स्वायत्त, निष्पक्ष और स्वतंत्र निकाय जरूरी— अश्लील व देशद्रोही कंटेंट पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी


भूमिका

डिजिटल युग में सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म अभिव्यक्ति के सबसे प्रभावी माध्यम बन चुके हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, एक्स (ट्विटर) और अन्य डिजिटल मंचों ने सूचना के लोकतंत्रीकरण को बढ़ावा दिया है। लेकिन इसी के साथ एक गंभीर समस्या भी सामने आई है—अश्लील, आपत्तिजनक, अवैध और देशद्रोही कंटेंट का बेलगाम प्रसार

इसी गंभीर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि—

“सोशल मीडिया पर अश्लील और अवैध सामग्री की जिम्मेदारी किसी न किसी को तो लेनी ही होगी।”

शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल स्व-नियमन (Self-Regulation) से काम नहीं चलेगा, बल्कि इसके लिए एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और स्वायत्त निकाय की आवश्यकता है, जो न तो सरकार के नियंत्रण में हो और न ही प्लेटफॉर्म्स के प्रभाव में।


मामले की पृष्ठभूमि

यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची शामिल थे, द्वारा अश्लील ऑनलाइन सामग्री से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान की गई।

याचिका में यह चिंता जताई गई थी कि—

  • सोशल मीडिया पर अश्लील और अभद्र सामग्री आसानी से उपलब्ध है
  • बच्चे और किशोर इस कंटेंट तक सरलता से पहुँच रहे हैं
  • प्लेटफॉर्म्स द्वारा अपनाया गया स्व-नियमन तंत्र प्रभावी नहीं है
  • शिकायतों के बावजूद कंटेंट तेजी से वायरल हो जाता है

सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ

(1) “किसी को तो जिम्मेदारी लेनी होगी”

सुप्रीम कोर्ट ने दो-टूक शब्दों में कहा—

“डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जो कुछ भी डाला जा रहा है, उसके लिए किसी न किसी को जिम्मेदारी लेनी होगी। यह नहीं हो सकता कि हर कोई लाभ कमाए, लेकिन जिम्मेदारी कोई न ले।”

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि—

  • कंटेंट क्रिएटर
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म
  • और प्रकाशन से जुड़े अन्य माध्यम

सभी को उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए।


(2) अश्लील कंटेंट ही नहीं, देशद्रोही सामग्री भी होती है वायरल

पीठ ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि—

“एक बार जब कोई गंदा, आपत्तिजनक या देशद्रोही कंटेंट डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपलोड हो जाता है, तो वह कुछ ही समय में लाखों लोगों तक पहुँच जाता है।”

न्यायालय ने कहा कि यह स्थिति—

  • राष्ट्रीय सुरक्षा
  • सामाजिक सद्भाव
  • और सार्वजनिक व्यवस्था

के लिए गंभीर खतरा बन सकती है।


(3) स्व-नियमन मॉडल असफल

सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा Self-Regulatory Model पर सवाल उठाते हुए कहा—

“अगर सब कुछ स्वयं-नियंत्रित और नियमित है, तो फिर शिकायतें बार-बार क्यों आती हैं?”

पीठ ने माना कि—

  • प्लेटफॉर्म्स का स्व-नियमन
  • व्यावसायिक हितों से प्रभावित होता है
  • और वह निष्पक्ष नहीं रह पाता

इसलिए यह मॉडल पर्याप्त साबित नहीं हुआ है।


स्वायत्त, निष्पक्ष और स्वतंत्र निकाय की आवश्यकता

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि—

“एक ऐसा निष्पक्ष, स्वतंत्र और स्वायत्त निकाय होना चाहिए, जो यह तय करे कि क्या उचित है और क्या प्रतिबंधित।”

स्वायत्त निकाय की विशेषताएँ

न्यायालय के अनुसार ऐसा निकाय—

  • सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण से मुक्त हो
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के दबाव से भी स्वतंत्र हो
  • कानूनी और संवैधानिक मूल्यों पर आधारित निर्णय ले
  • कंटेंट की वैधता और सीमाओं को परिभाषित करे

यह निकाय—

  • शिकायतों का निपटारा करे
  • आपत्तिजनक कंटेंट को हटाने के निर्देश दे
  • प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही तय करे

आधार आधारित आयु सत्यापन प्रणाली का सुझाव

सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों और किशोरों की सुरक्षा पर विशेष जोर देते हुए कहा कि—

“ऑनलाइन अश्लील सामग्री तक पहुँच को नियंत्रित करने के लिए आधार आधारित आयु सत्यापन प्रणाली लागू की जा सकती है।”

इस सुझाव का उद्देश्य
  • नाबालिगों को अश्लील कंटेंट से दूर रखना
  • संवेदनशील सामग्री तक केवल वयस्कों की पहुँच सुनिश्चित करना
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की जिम्मेदारी तय करना

हालाँकि, न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि—

  • निजता (Privacy)
  • डेटा सुरक्षा
  • और व्यक्तिगत स्वतंत्रता

जैसे मुद्दों का भी संतुलन बनाए रखना आवश्यक होगा।


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सामाजिक जिम्मेदारी

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि—

“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरंकुश नहीं है।”

न्यायालय ने कहा कि—

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
  • समाज, मासूम लोगों और बच्चों को नुकसान पहुँचाने का लाइसेंस नहीं हो सकती
संतुलन की आवश्यकता

पीठ ने जोर दिया कि—

  • स्वतंत्र अभिव्यक्ति
  • सामाजिक नैतिकता
  • राष्ट्रीय सुरक्षा
  • और बच्चों के अधिकार

इन सभी के बीच संतुलन आवश्यक है।


डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स की जवाबदेही

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि—

  • केवल प्लेटफॉर्म ही नहीं
  • बल्कि कंटेंट बनाने वाले भी
  • अपने कंटेंट की वैधानिकता के लिए जिम्मेदार होने चाहिए

न्यायालय ने कहा कि—

“ऑनलाइन प्रकाशन भी एक प्रकार का प्रकाशन ही है, और उसकी सटीकता व वैधता सुनिश्चित की जानी चाहिए।”


न्यायालय की चिंता: समाज और बच्चों की सुरक्षा

पीठ ने विशेष रूप से—

  • मासूम बच्चों
  • महिलाओं
  • और कमजोर वर्गों

पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों पर चिंता जताई।

न्यायालय ने कहा कि—

  • अश्लील और अभद्र कंटेंट
  • मानसिक और नैतिक विकास को प्रभावित करता है
  • समाज में विकृत सोच को बढ़ावा देता है

भविष्य पर प्रभाव

(1) डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सख्ती बढ़ेगी

यह टिप्पणी आने वाले समय में—

  • सोशल मीडिया कंपनियों
  • ओटीटी प्लेटफॉर्म्स
  • और ऑनलाइन पब्लिशर्स

पर नियंत्रण को और सख्त बना सकती है।


(2) नए कानून या नियामक ढाँचे की संभावना

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी—

  • संसद
  • और नीति-निर्माताओं

को एक मजबूत नियामक व्यवस्था बनाने के लिए प्रेरित कर सकती है।


(3) बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को बढ़ावा

आयु सत्यापन जैसे उपाय—

  • डिजिटल सुरक्षा
  • और जिम्मेदार इंटरनेट उपयोग

की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकते हैं।


निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी डिजिटल युग की एक गंभीर समस्या पर संवेदनशील, संतुलित और दूरदर्शी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

अदालत ने स्पष्ट संदेश दिया है कि—

सोशल मीडिया की आज़ादी अराजकता में नहीं बदली जा सकती।

अश्लील, आपत्तिजनक और देशद्रोही कंटेंट के प्रसार पर रोक लगाने के लिए—

  • जिम्मेदारी तय करनी होगी
  • स्वायत्त और निष्पक्ष नियामक व्यवस्था बनानी होगी
  • बच्चों और समाज के हितों की रक्षा करनी होगी

निस्संदेह, यह टिप्पणी आने वाले समय में डिजिटल कंटेंट नियमन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी और भारत में इंटरनेट की दुनिया को अधिक सुरक्षित, जिम्मेदार और संवेदनशील बनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त करेगी।