सोशल मीडिया और कानूनः एक आधुनिक चुनौती
(Social Media and Law: A Modern Challenge)
प्रस्तावना
इक्कीसवीं सदी में तकनीकी प्रगति ने जिस गति से समाज को बदला है, उसमें सोशल मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर (अब X), व्हाट्सएप, यूट्यूब जैसे मंचों ने व्यक्ति को अभिव्यक्ति की अभूतपूर्व स्वतंत्रता दी है। परंतु इस स्वतंत्रता के साथ ही अनेक विधिक, सामाजिक, नैतिक एवं राजनीतिक प्रश्न भी उत्पन्न हुए हैं। सोशल मीडिया अब केवल संवाद का माध्यम नहीं रहा, बल्कि यह सामाजिक आंदोलनों, राजनीतिक प्रचार, अफवाहों, नफरत फैलाने वाले भाषणों, साइबर अपराधों और निजता के उल्लंघन का भी एक बड़ा केंद्र बन चुका है।
इस लेख में हम सोशल मीडिया से उत्पन्न होने वाली विधिक चुनौतियों, भारत में वर्तमान कानूनों की स्थिति, विभिन्न प्रकार के सोशल मीडिया अपराधों, न्यायालयों के दृष्टिकोण, और इस क्षेत्र में सुधार की संभावनाओं पर चर्चा करेंगे।
सोशल मीडिया की विशेषताएं
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का माध्यम
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात कहने, विचार साझा करने और राय देने का मंच प्रदान करता है। - गति और व्यापकता
किसी भी सूचना या अफवाह के फैलने की गति सोशल मीडिया पर अत्यंत तीव्र होती है। - वायरल संस्कृति
एक छोटी सी पोस्ट, वीडियो या फोटो मिनटों में लाखों लोगों तक पहुंच सकती है, चाहे वह सत्य हो या असत्य। - गुमनामी और फेक अकाउंट्स
पहचान छिपाकर गलत सूचनाएं या आपत्तिजनक सामग्री फैलाना आम बात हो गई है।
सोशल मीडिया से जुड़ी विधिक चुनौतियाँ
1. अभिव्यक्ति बनाम अश्लीलता/घृणा भाषण
सोशल मीडिया पर लोगों को अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता होती है, लेकिन कई बार यह स्वतंत्रता अभद्र भाषा, सांप्रदायिक टिप्पणियों, और नफरत फैलाने वाले भाषणों तक पहुँच जाती है। यहाँ संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) इसके कुछ युक्तियुक्त प्रतिबंधों को भी मान्यता देता है।
2. फर्जी समाचार और अफवाहें (Fake News & Rumors)
सोशल मीडिया अफवाहों के फैलाव का सबसे बड़ा साधन बन गया है। भीड़ हिंसा, सांप्रदायिक तनाव और राजनीतिक विद्वेष इनमें से कई बार केवल एक वायरल फेक पोस्ट से आरंभ हुए हैं।
3. साइबर अपराध
सोशल मीडिया साइबर अपराधों जैसे – साइबर स्टॉकिंग, साइबर बुलीइंग, ऑनलाइन हैकिंग, सेक्सटॉर्शन, डाटा चोरी आदि का केंद्र बन चुका है।
4. निजता का उल्लंघन (Right to Privacy)
अप्राकृतिक फोटो/वीडियो शेयर करना, किसी की निजी जानकारी को बिना अनुमति के सार्वजनिक करना, या फेस रिकग्निशन टूल्स के ज़रिए निगरानी रखना – निजता के अधिकार का हनन है, जिसे Supreme Court ने “Puttaswamy Case (2017)” में मौलिक अधिकार घोषित किया है।
5. आईटी कंपनियों की जवाबदेही
सोशल मीडिया कंपनियों का यह दायित्व बनता है कि वे हानिकारक सामग्री को नियंत्रित करें, लेकिन प्लेटफॉर्म बार-बार यह कहकर बच जाते हैं कि वे केवल ‘माध्यम’ हैं, सामग्री के निर्माता नहीं।
प्रमुख कानून जो सोशल मीडिया को नियंत्रित करते हैं
1. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000)
- धारा 66A (अब निरस्त) – आपत्तिजनक सामग्री भेजने पर दंडित करता था।
- धारा 67 – अश्लील सामग्री के प्रकाशन/प्रसारण पर दंड का प्रावधान।
- धारा 69A – सरकार को वेबसाइट/URL को ब्लॉक करने की शक्ति देती है यदि राष्ट्र की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था आदि पर खतरा हो।
2. भारतीय दंड संहिता, 1860 (अब भारतीय न्याय संहिता, 2023)
- मानहानि, सांप्रदायिक दंगे भड़काना, धार्मिक भावनाएं आहत करना, अश्लीलता फैलाना, आतंकवाद से संबंधित सामग्री आदि को अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
3. आईटी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को “Significant Social Media Intermediaries” (SSMIs) के रूप में परिभाषित किया गया।
- शिकायत निवारण अधिकारी, अनुपालन अधिकारी की नियुक्ति अनिवार्य।
- आपत्तिजनक पोस्ट को 24-72 घंटे में हटाना।
न्यायालयों की भूमिका
भारतीय न्यायपालिका ने सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर समय-समय पर टिप्पणियां की हैं:
- Shreya Singhal v. Union of India (2015) – सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66A को असंवैधानिक ठहराते हुए कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है।
- Amitabh Bacchan v. Rajat Sharma & Ors. (2022) – कोर्ट ने कहा कि सेलेब्रिटी की छवि का दुरुपयोग सोशल मीडिया पर एक गंभीर समस्या है।
- Tehseen Poonawalla Case (2018) – फर्जी अफवाहों के कारण हुई भीड़ हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की जिम्मेदारी तय की।
सोशल मीडिया कंपनियों की जिम्मेदारी
सोशल मीडिया कंपनियों को निम्नलिखित जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए:
- सामग्री की निगरानी
हेट स्पीच, फेक न्यूज, अश्लीलता आदि को समय पर हटाना। - शिकायत निवारण प्रणाली
पीड़ितों के लिए शिकायत दर्ज करने की स्पष्ट और त्वरित प्रक्रिया। - टेक्नोलॉजी आधारित समाधान
AI और मशीन लर्निंग की सहायता से आपत्तिजनक पोस्ट को रोकना। - कानूनी अनुरूपता
भारतीय कानूनों और न्यायालयों के आदेशों का पालन।
सामाजिक और नैतिक चिंताएं
- युवा वर्ग पर प्रभाव – सोशल मीडिया का नशा, आत्महत्या की प्रवृत्ति, तुलना और अवसाद में वृद्धि।
- राजनीतिक ध्रुवीकरण – बॉट्स और ट्रोल्स के माध्यम से चुनावों को प्रभावित करना।
- Deepfake और AI-generated content – सच और झूठ के बीच की रेखा धुंधली।
सुधार के सुझाव
- कठोर और अद्यतन कानून – नए तकनीकी युग के लिए विशेष सोशल मीडिया विधेयक लाना।
- डिजिटल साक्षरता – लोगों को जागरूक बनाना कि वे सोशल मीडिया का विवेकपूर्ण उपयोग करें।
- सामाजिक नियंत्रण – परिवार, स्कूल, संस्थाएं सोशल मीडिया आचरण के लिए दिशा दें।
- निजता सुरक्षा कानून – “Data Protection Act” जैसे व्यापक कानून की सख्ती से पालना।
निष्कर्ष
सोशल मीडिया आज अभिव्यक्ति, संवाद, सूचना और मनोरंजन का एक सशक्त माध्यम बन चुका है, लेकिन इसके साथ-साथ यह विधिक और सामाजिक चुनौतियों का भी बड़ा स्रोत बन गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ जिम्मेदारी, संयम और सामाजिक सौहार्द का भी ध्यान रखना आवश्यक है। एक संतुलित दृष्टिकोण जिसमें कानून, तकनीक और नैतिकता मिलकर काम करें – वही सोशल मीडिया की इस आधुनिक चुनौती से निपटने का सही मार्ग है।