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“सोनम वांगचुक ने अभी तक निरोध (डिटेंशन) के खिलाफ अभिवादी (representation) नहीं दी; जेल में पत्नी, भाई व वकीलों से मुलाक़ात — प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया”

“सोनम वांगचुक ने अभी तक निरोध (डिटेंशन) के खिलाफ अभिवादी (representation) नहीं दी; जेल में पत्नी, भाई व वकीलों से मुलाक़ात — प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया”


प्रस्तावना

देश में कई मौकों पर ऐसे विवाद खड़े होते हैं जब सुरक्षा कानूनों (जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) के तहत किसी व्यक्ति को हिरासत में लिया जाता है और उसकी पिटाई, रिहाई की प्रक्रिया, पारदर्शिता और संवैधानिक अधिकारों (Fundamental Rights) की रक्षा विषय बन जाते हैं। इस पृष्ठभूमि में, सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी और उसके बाद की घटनाएँ इस तरह की घटनाओं की एक ताज़ा और संवेदनशील मिसाल हैं।

सूत्रों (जिनमें लाइव लॉ की रिपोर्ट प्रमुख है) के अनुसार, प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि वांगचुक ने अभी तक अपनी निरोध (detention) के खिलाफ कोई अभिवादी — यानी प्रतिरक्षा या representation — नहीं दी है। वहीँ, प्रशासन ने यह भी कहा है कि उनकी पत्नी, भाई और वकील जेल में उनसे मिलने गए हैं। यह मामला संवैधानिक सवालों, मानवाधिकारों, न्यायपालिका की भूमिका और प्रशासनिक दायित्वों के बीच एक जटिल टकराव खड़ा करता है।

नीचे इस पूरे विषय की विस्तार से समीक्षा की जाएगी — पृष्ठभूमि, कानूनी मानदंड, विवादित बिंदु, दोनों पक्षों के तर्क, संवैधानिक आयाम, न्यायपालिका की भूमिका और अंत में निष्कर्ष व सुझाव।


पृष्ठभूमि

  1. सोनम वांगचुक कौन हैं?
    वांगचुक एक सक्रिय सामाजिक-प्राकृतिक पर्यावरणीय कार्यकर्ता और शिक्षा-समाज सुधारक हैं। वे विशेष रूप से लद्दाख क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं, जैसे जलवायु परिवर्तन, हिमनदों की सुरक्षा, स्थानीय संसाधन प्रबंधन और स्थानीय स्वायत्तता।
    उनकी लोकप्रियता और सामाजिक प्रभाव के कारण, वे अक्सर केंद्र सरकार की नीतियों और उत्तरदायित्वों पर कटाक्ष करते रहे हैं।
  2. लद्दाख में परिदृश्य एवं घटनाएँ
    24 सितंबर 2025 को लद्दाख (लीह) में राजनैतिक तनाव बढ़ गया, जब राज्यhood (राज्य बनाने की मांग) और छठी अनुसूची (Sixth Schedule) की मांगों को लेकर प्रदर्शन शुरू हुए। ये मांगें क्षेत्रीय लोगों में मजबूत गतिशीलता बनाए हुए थीं। इन प्रदर्शनकारियों में हिंसा भड़क गई; चार लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए।
    उसके बाद प्रशासन ने सार्वजनिक आदेश (public order) और सुरक्षा की ज़रूरत का हवाला देते हुए कई कार्यवाही शुरु की। उसी के क्रम में, 26 सितंबर 2025 को वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA / National Security Act / National Security Detention) तहत हिरासत में लिया गया।
  3. NSA (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) और निरोध (Preventive Detention)
    NSA तथा समान सुरक्षा-नियम ऐसे कानून हैं जो किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के, और न्यायालय की प्रक्रिया से पहले, एक निश्चित अवधि तक निरुद्ध कर सकते हैं यदि सरकार इस तरह की निरोध की आवश्यकता को सार्वजनिक सुरक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ठहराती है।
    इस तरह के कानूनों पर अक्सर संवैधानिक और मानवाधिकार समूहों द्वारा आलोचनाएँ होती हैं कि ये आजादी और न्याय की मूलभूत गारंटियों को कमजोर कर सकते हैं।
  4. न्यायालयीन कदम
    • वांगचुक की पत्नी, गितांजली ज. अंगमो, ने सुप्रीम कोर्ट में एक हैबियस कॉर्पस (Article 32) याचिका दायर की, जिसमें वांगचुक की हिरासत को अवैध घोषित करने और उन्हें रिहा करने की मांग की गई।
    • उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें और वांगचुक को हिरासत के कारणों की प्रति (grounds of detention) नहीं दी गई, और वे उनके स्वास्थ्य, स्थिति तथा स्वास्थ्य सेवा संबंधी जानकारियों से वंचित हैं।
    • शीर्ष न्यायालय ने इस याचिका पर केंद्र, लद्दाख प्रशासन और जेल अधीक्षक को नोटिस जारी किया।
    • याचिका की सुनवाई के दौरान, केंद्र सरकार (सॉलिसिटर जनरल की ओर से) ने कोर्ट में प्रस्तुत किया कि वांगचुक की पत्नी को हिरासत के कारणों की प्रति देने में कोई बाधा नहीं है, और यह कि वांगचुक की पत्नी, वकील और भाई से उसे मिलने की अनुमति दी गई है।
    • वहीं, प्रशासन की ओर से यह उत्तर प्रस्तुत किया गया कि वांगचुक ने अभी तक अपनी निरोध (detention) के खिलाफ कोई प्रतिरक्षा (representation) नहीं दी है।

प्रशासन का तर्क और अभिवादी न देना — उनके कथन और औपचारिक विवरण

प्रशासन ने अपनी ओर से सुप्रीम कोर्ट में निम्नलिखित मुख्य तर्क और विवरण पेश किए हैं (मुख्य रूप से जिला मजिस्ट्रेट Leh, जाल अधीक्षक, और अन्य संबंधित अधिकारियों की तरफ से) :

  1. अभिवादी (representation) न देने का तथ्य
    • जिला मजिस्ट्रेट Leh ने एक affidavit में कहा है कि वांगचुक ने अब तक अपनी निरोध (detention) के खिलाफ किसी भी प्रतिरक्षा (representation) नहीं दी है।
    • इस बात को एक तरह से प्रशासन यह दर्शाना चाहता है कि यदि प्रतिरक्षा ही नहीं दी गई, तो अनेक कानूनी दायित्व और प्रक्रिया (procedure) को चुनौती देना मुश्किल हो जाता है।
    • इस तत्व को प्रशासन ने यह तर्क देने के लिए भी उपयोग किया है कि प्रतिरक्षा न देना (delay या omission) किसी निरोध आदेश की वैधता पर प्रश्न चिह्न नहीं खड़ा करता।
  2. जेलाधीशों, वकीलों और परिवार से मुलाक़ात की अनुमति
    • जेल अधीक्षक (Jodhpur Central Jail) ने कोर्ट को बताया कि वांगचुक की पत्नी, भाई और वकील उनसे मिलने गए थे।
    • यह दायित्व है कि किसी रिहा किए गए व्यक्ति (detenue) को कानूनी सलाह और संपर्क की सुविधा दी जाए — प्रशासन ने यह तर्क दिया कि यह सुविधा दी गई है।
    • इस संदर्भ में, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कोई आपत्ति नहीं है यदि वांगचुक द्वारा बनाए गए नोट (notes) पत्नी को साझा किए जाएँ, बशर्तु यह जेल अधीक्षक द्वारा किया जाए।
  3. स्वास्थ्य, शारीरिक स्थिति और निरोध की प्रक्रिया
    • प्रशासन ने यह दावा किया है कि वांगचुक की चिकित्सा जांच कई बार की गई (सितंबर 26 से अक्टूबर 9 तक कम से कम पाँच बार) और वे स्वास्थ्यपूर्ण पाए गए।
    • उन्हें आइसोलेशन (एकाकी निरोध / solitary confinement) में नहीं रखा गया है, बल्कि सामान्य बर्क (standard barrack) में रखा गया है।
    • उन्होंने यह भी कहा कि निरोध आदेश की अवधि एवं प्रक्रिया स्वरूप सभी प्रावधानों का पालन किया गया, और अधिकारी इस बात पर संतुष्ट हैं कि निरोध उचित था।
  4. निरोध आदेश की वैधता एवं सरकारी संतुष्टि
    • जिला मजिस्ट्रेट (Leh) ने यह कहा कि निरोध आदेश 26 सितंबर को दिए गए थे, और उन्होंने व्यावहारिक सामग्री (relevant inputs) पर विचार करने के बाद, इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि वांगचुक “राज्य सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए हानिकारक गतिविधियों” में लिप्त थे।
    • उन्होंने यह भी दावा किया कि निरोध के कारणों की प्रति वांगचुक को प्रदान की गई थी, तथा प्राप्ति पर उनका हस्ताक्षर लिया गया।
    • प्रशासन यह तर्क देता है कि यदि प्रतिरक्षा न दी गई हो, तो यह निरोध आदेश की अक्षमता या अवैधता का कारण नहीं बनती।

वांगचुक की पत्नी और वकीलों का तर्क, और संवैधानिक चिंताएँ

वहीं दूसरी ओर, वांगचुक की पत्नी गितांजली अंगमो एवं उनके वकील निम्नलिखित मुख्य तर्क अदालत में पेश कर रहे हैं:

  1. निरोध कारणों की प्रति (grounds of detention) की अनुपलब्धता
    • अंगमो की याचिका में यह आरोप है कि उन्हें और वांगचुक को निरोध के कारणों की प्रति प्रदान नहीं की गई। इससे उन्हें यह समझने का अधिकार और चुनौती करने का अवसर नहीं मिला।
    • वकील ने तर्क दिया कि यह संवैधानिक आवश्यकता है कि व्यक्ति को अपनी हिरासत की वजह बताई जाए ताकि वह प्रतिरक्षा प्रस्तुत कर सके।
    • सुप्रीम कोर्ट ने इसके संबंध में पूछा: यदि पत्नी को कारणों की प्रति नहीं दी गई है, तो ऐसा क्यों? उन्हें रवाना क्यों नहीं किया गया?
  2. हक और पारदर्शिता की आवश्यकता
    • याचिका यह कहती है कि निरोध आदेश नागरिक स्वतंत्रता (right to liberty) और अन्य मूलभूत अधिकारों जैसे अनुच्छेद 14, 19, 21 और 22 के तहत चुनौती के योग्य हैं।
    • उनके तर्क में यह शामिल है कि वांगचुक की गतिविधियाँ शांतिपूर्ण थीं, और आरोप लगाए जा रहे हैं कि यह आंदोलन असंवैधानिक प्रभाव डालने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि ऐसा आरोप-प्रचार करना कि वे पाकिस्तान या चीन से जुड़े हुए हैं, उन्हें बदनाम करने का प्रयास है।
    • उनकी याचिका यह मांग करती है कि वांगचुक को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किया जाए, अभिवादी का अवसर मिले, और यदि निरोध अवैध हो तो उसे रद्द कर दिया जाए।
  3. अभिवादी न देना — संवैधानिक प्रश्न
    • यदि प्रशासन यह कहता है कि वांगचुक ने प्रतिरक्षा नहीं दी, तब भी इस बात की चुनौती हो सकती है कि प्रतिरक्षा न देने की स्थिति प्रशासन द्वारा बनाई गई हो (उदाहरण स्वरूप, कारण की प्रति न देना, मुलाक़ात रोकना या सूचना न देना) — अर्थात, निष्पक्ष अवसर प्रदान नहीं करना।
    • याचिका यह तर्क देती है कि निरोध प्रक्रिया का मूल उद्देश्य व्यक्ति को यह अवसर देना है कि वह स्वयं या वकील के माध्यम से अपनी स्थिति को सामने रख सके। अभिवादी न देना इस उद्देश्य को प्रभावित कर सकता है।
    • इसके अलावा, यदि प्रतिरक्षा में विलंब को कारण बनाकर निरोध को वैध ठहराया जाए, तो यह अव्यवहारिक और न्याय-कायदों के खिलाफ होगा।

संवैधानिक व न्यायालयीन विश्लेषण

इस पूरे विवाद के केंद्र में संवैधानिक सिद्धांत, न्यायपालिका की भूमिका और प्रशासनिक अधिकारों के बीच संतुलन का सवाल है। नीचे हम कुछ प्रमुख बिंदुओं का विश्लेषण करेंगे:

  1. अनुच्छेद 22 का महत्व
    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 (Protection against arrest and detention in certain cases) में यह प्रावधान है कि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने पर उसे तुरंत हिरासत के कारण बताए जाएँ, और उसे वकील से मिलने का अधिकार हो। यदि वह निरोध (preventive detention) के अधीन है, तब भी उसे न्यायालय या पर्याप्त प्रक्रिया द्वारा रक्षा का अवसर मिलना चाहिए।
    यदि प्रशासन वह सूचना (grounds of detention) नहीं प्रदान करता, तो व्यक्ति को प्रतिरक्षा का अवसर नहीं मिलता और यह संविधान की मूल गारंटी का उल्लंघन हो सकता है।
  2. निरोध नीति बनाम व्यक्ति की स्वतंत्रता
    Preventive detention (निरोध) कानूनों का उद्देश्य यह होता है कि भविष्य में किसी व्यक्ति की गतिविधि से सार्वजनिक शांति या सुरक्षा को खतरा हो, तो उसे पहले-से रोका जाए। लेकिन यह शक्ति संवैधानिक दृष्टि से कट्टर है और इसे बहुत सावधानीपूर्वक, पारदर्शी और न्यायसंगत तरीके से उपयोग किया जाना चाहिए।
    किसी भी निरोध आदेश को न्यायालयीय समीक्षा के अधीन रखा जाना चाहिए कि क्या आदेश उचित, आवश्यक, अनुपात में और न्यूनतम अपेक्षित हस्तक्षेप है।
  3. न्यायालय की भूमिका
    सुप्रीम कोर्ट और अन्य उच्च न्यायालय निरोध आदेशों की जांच करते समय निम्न बिंदुओं को देखेंगे:

    • क्या निरोध आदेश के कारण पर्याप्त रूप से तर्कित हैं?
    • क्या व्यक्ति को प्रतिरक्षा देने का पर्याप्त अवसर मिला है?
    • क्या प्रक्रिया का पालन हुआ है — जैसे, सूचना देना, मुलाकात की अनुमति देना, स्वास्थ्य सेवा, न्यायिक समीक्षा आदि?
    • क्या निरोध अवधि और शर्तें संवैधानिक मानदंडों के अनुकूल हैं?
    • क्या प्रशासन ने किसी न्यायिक दायित्व की अनदेखी की है या अत्यधिक हस्तक्षेप किया है?
  4. अभिवादी न देने की स्थिति में न्यायालय का रुख
    यदि प्रशासन यह कहता है कि प्रतिरक्षा नहीं दी गई, लेकिन इसका कारण प्रतिरक्षा न देना स्वयं प्रशासन की ओर से उत्पन्न किया गया हो (जैसे सूचना न देना, अवरोध करना), तो न्यायालय इस कथन को स्वतंत्र रूप से जाँचेगा।
    यदि प्रतिरक्षा न देना एक बाधक बन रही है, तो न्यायालय आदेश दे सकता है कि प्रतिरक्षा स्वीकार की जाए और फिर निरोध आदेश की वैधता की समीक्षा की जाए।
  5. समयबद्धता और विलंब का प्रश्न
    प्रशासन ने यह तर्क किया है कि प्रतिरक्षा देने में देरी (delay of two days, आदि) को निरोध आदेश की वैधता पर प्रश्न नहीं बनाना चाहिए।
    लेकिन अगर वह देरी ऐसे कारणों से हुई हो जो प्रशासन की प्रक्रिया संबंधी चूक को दर्शाती हों, तो न्यायालय इसे उचित आधार मान सकते हैं।
  6. मुलाकात और संपर्क की अनुमति
    किसी हिरासत में रखे गए व्यक्ति को परिवार, वकील आदि से मिलने का अधिकार है — खासकर यदि उन्होंने निरोध आदेश के खिलाफ कार्रवाई करनी हो। प्रशासन ने कहा कि इस सुविधा दी गई है, लेकिन इस कथन की सत्यता और समयबद्धता भी न्यायालय द्वारा जांचेगी।
  7. न्यायालयीन अंतरिम आदेश और तथ्यात्मक नियंत्रण
    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक कोई प्रत्यक्ष फैसला नहीं किया है; उन्होंने केंद्र को नोटिस दिया और अगली सुनवाई की तारीख तय की है (29 अक्टूबर 2025)।
    कोर्ट ने कहा है कि यदि वांगचुक के द्वारा बनाए गए नोट उनसे पत्नी को दिए जाएँ, तो जेल अधीक्षक के माध्यम से किया जाए।

विवाद और आलोचनाएँ

इस पूरे मामले में कुछ विवादास्पद बिंदु हैं जिन्हें विचार करना ज़रूरी है:

  1. अभिवादी न देना — प्रशासन की शक्ति और सीमा
    यदि सरकार कहती है कि प्रतिरक्षा न देना, तब भी वह अपने दायित्वों से छूट नहीं सकती। न्यायालय यह देखेगा कि प्रतिरक्षा न देने का कारण क्या था — क्या सूचना न देना या प्रक्रिया में बाधा डालना प्रशासन की ओर से स्वेच्छा थी?
  2. प्रक्रिया की पारदर्शिता
    ऐसे मामलों में पारदर्शिता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यदि प्रशासन कारणों को गोपनीय रखता है, या उन्हें साझा करने में अनावश्यक देरी करता है, तो यह न्याय की अपेक्षा और नागरिक विश्वास को प्रभावित कर सकता है।
  3. मानवाधिकार एवं नागरिक आज़ादियाँ
    निरोध कानूनों का अति उपयोग नागरिक स्वतंत्रताओं पर दबाव डाल सकता है। यदि यह कानून सभ्य और न्यायसंगत उपकरण न हों, तो वे दमन का माध्यम बन सकते हैं।
  4. राजनितिक दबाव और वकालत
    वांगचुक जैसे सामाजिक अभियानी और पर्यावरणीय कार्यकर्ता सरकार की आलोचना करते रहे हैं। ऐसे मामलों में यह आरोप भी उठता है कि हिरासत का उपयोग राजनीतिक दबाव या आलोचना को दबाने के लिए किया जा रहा हो। यह सवाल न्यायालय को न्यायिक तटस्थता और संवैधानिक रक्षा पद्धति पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य करता है।
  5. न्यायालय और अवसर की भूमिका
    सुप्रीम कोर्ट जैसे उच्च न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि निरोध आदेशों की समीक्षा विवेकपूर्ण, निष्पक्ष और संवैधानिक मानदंडों के अनुरूप हो। यदि वह न्यायालय अवैधानिक निरोध आदेशों को ठुकराता रहेगा, तो नागरिकों की आज़ादी की रक्षा का विधान अधूरा रह जाएगा।

मजबूती और कमजोरियाँ — दोनों पक्षों की समीक्षा

नीचे एक तुलनात्मक समीक्षा प्रस्तुत है:

पक्ष मुख्य तर्क / दायित्व संभावित मजबूती संभावित कमजोरी / चुनौती
प्रशासन / केंद्र निरोध आदेश वैध था; प्रतिरक्षा नहीं दी गई; मुलाक़ात की अनुमति दी गई यदि सभी प्रक्रिया पूरी हुई हो, प्रशासन कानूनी दबाव से सुरक्षित हो सकता है यदि प्रतिरक्षा का अवसर न देना स्वयं प्रशासन की ओर से किया गया हो, या सूचना देने में देरी हो, तो आरोप उचित हो सकते हैं
वांगचुक / पत्नी / वकील निरोध अवैध था; प्रतिरक्षा न देना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन; आरोप-प्रचार व बदनामी संवैधानिक अधिकारों की रक्षा, न्यायालय को हस्तक्षेप का मार्ग मिलना उन्हें यह साबित करना होगा कि प्रतिरक्षा न देना जानबूझकर किया गया, और प्रक्रिया-विरुद्ध व्यवहार हुआ

न्यायालय की संभावित निर्देशनी और उम्मीदें

सुप्रीम कोर्ट इस मामले में निम्न प्रकार के निर्देश या निर्णय दे सकती है:

  1. प्रतिरक्षा स्वीकार करने का आदेश
    यदि कोर्ट यह पाए कि प्रतिरक्षा न देना निष्पक्ष प्रक्रिया की बाधा है, तो वह आदेश दे सकती है कि प्रतिरक्षा स्वीकार की जाए और एक निश्चित समयावधि में वह प्रस्तुत की जाए।
  2. निरोध आदेश की समीक्षा
    प्रतिरक्षा प्रस्तुत होने पर कोर्ट यह फैसला कर सकती है कि निरोध आदेश संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन करता है या नहीं। यदि वह अवैध पाए, तो आदेश रद्द किया जाएगा।
  3. मुलाकात एवं सूचना की व्यवस्था को आदेशित करना
    कोर्ट यह निर्देश दे सकती है कि वांगचुक की पत्नी, वकील और परिवार को समयबद्ध और बाधारहित तरीके से उससे मिलने की अनुमति दी जाए, और निरोध कारणों की प्रति को तुरंत और पूरी तरह प्रदान किया जाए।
  4. अंतरिम आदेश
    यदि वांगचुक की स्थिति (स्वास्थ्य आदि) को देखते हुए वयोवृद्ध या संवेदनशील उपायों की ज़रूरत हो, तो कोर्ट अंतरिम आदेश जारी कर सकती है — जैसे नियमित चिकित्सा देखरेख, स्वास्थ्य सुविधा, विशेष बैठक व्यवस्था आदि।
  5. नैतिक एवं संवैधानिक नीति निर्देशन
    सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों में सामान्य दिशा-निर्देश (guidelines) जारी कर सकती है कि निरोध कानूनों का उपयोग किस प्रकार किया जाए, सूचना-संचार की कितनी पारदर्शिता हो, अभिवादी की समयबद्धता आदि।

निष्कर्ष एवं सुझाव

सोनम वांगchuk की उपलब्ध स्थिति और प्रशासन की दलीलें इस मामले को संवैधानिक और न्यायशास्त्रीय दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती हैं। इस विवाद में कुछ मुख्य बिंदु जिन पर ध्यान देना चाहिए:

  1. न्यायालय को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए
    निरोध कानूनों की प्रकृति ऐसी है कि यदि वे न्यायालयीय समीक्षा के घेरे से बाहर हो जाएँ, तो नागरिक स्वतंत्रता पर गंभीर संकट हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले को समयबद्ध रूप से सुनाना चाहिए और प्रतिरक्षा व समीक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
  2. पारदर्शिता सुनिश्चित होनी चाहिए
    प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निरोध कारणों की प्रति, मुलाक़ात की सुविधा और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी बिना अनावश्यक देरी के उपलब्ध हो। ऐसे मामलों में सूचना का लेट देना ही अक्सर विवाद का मूल कारण बन जाता है।
  3. अभिवादी अवसर देना अनिवार्य है
    न्याय की मूल भावना यह है कि व्यक्ति को अपनी रक्षा का अवसर मिले — यदि प्रतिरक्षा न देना वह अवसर छीनता हो, तो वह प्रक्रिया अन्याय बन सकती है।
  4. निरोध कानूनों का विवेकपूर्ण उपयोग
    सरकारों को यह ध्यान रखना चाहिए कि निरोध कानूनों का उपयोग केवल उस मात्रा में किया जाए जितना अपेक्षित हो (least intrusive), और उसकी अवधि व शर्तें संवैधानिक मानदंडों के अनुरूप हो।
  5. न्यायालयीय मार्गदर्शन
    सुप्रीम कोर्ट इस प्रकार के मामलों के लिए उन्मुख दिशा-निर्देश जारी कर सकती है, ताकि भविष्य में ऐसी संवेदनशील स्थितियों में नियम, प्रक्रिया और पारदर्शिता बनी रहे।