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सैट-ऑफ और काउंटर-क्लेम के मध्य अंतर: दीवानी प्रक्रिया संहिता (CPC) के परिप्रेक्ष्य में विस्तृत विश्लेषण

सैट-ऑफ और काउंटर-क्लेम के मध्य अंतर: दीवानी प्रक्रिया संहिता (CPC) के परिप्रेक्ष्य में विस्तृत विश्लेषण

       भारतीय दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) मुकदमों की प्रक्रियाओं को सुचारू, प्रभावी और न्यायसंगत बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान प्रदान करती है। वादों के समाधान में केवल वादी का दावा ही निर्णायक नहीं होता, बल्कि प्रतिवादी को भी कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं, जिनके माध्यम से वह अपने हितों की रक्षा कर सकता है। इन्हीं अधिकारों में सैट-ऑफ (Set-off) और काउंटर-क्लेम (Counter-claim) दो अत्यंत महत्वपूर्ण उपाय हैं। दोनों का उद्देश्य प्रतिवादी को वादी के दावे के विरुद्ध अपनी मांग प्रस्तुत करने की छूट देना है, परंतु दोनों में कई मौलिक अंतर हैं।


1. भूमिका

        नागरिक वादों में सामान्यतः वादी अपने अधिकारों की स्थापना और राहत प्राप्त करने के लिए न्यायालय पहुँचता है। प्रतिवादी का उत्तर सामान्यतः वादी के दावों का खंडन होता है, परंतु CPC प्रतिवादी को केवल बचाव तक सीमित नहीं रखती, बल्कि उसे वादी से संबंधित अपने स्वतंत्र या संबंधित दावों को भी प्रस्तुत करने की अनुमति देती है।

         Set-off और Counter-claim दोनों प्रतिवादी के लिए महत्वपूर्ण रक्षा-उपाय हैं, परंतु दोनों की कानूनी प्रकृति, उद्देश्य और प्रभाव भिन्न हैं। सेट-ऑफ का उद्देश्य वादी की मांग के बराबर प्रतिवादी के दावे को समायोजित करना है, जबकि काउंटर-क्लेम प्रतिवादी को वादी के विरुद्ध एक अलग और पूर्ण क्रॉस-सूट दायर करने के समान अधिकार देता है।


2. सैट-ऑफ (Set-off) – Order VIII Rule 6

(A) सैट-ऑफ का अर्थ

Set-off वह दावा है जिसे प्रतिवादी वादी के दावे के विरुद्ध समायोजन के रूप में प्रस्तुत करता है। इसका उद्देश्य है—
“वादी जो धनराशि प्रतिवादी से मांग रहा है, उसमें से प्रतिवादी को उससे जितनी धनराशि मिलनी चाहिए वह समायोजित कर दी जाए।”

(B) विशेषताएँ

  1. वादी के विरुद्ध दावा – यह हमेशा वादी के विरुद्ध ही लगाया जाता है।
  2. वादी के दावे का हिस्सा – यह वादी के दावे से संबंधित या उसी से उत्पन्न लेन-देन से जुड़ा होता है।
  3. निश्चित या निश्चितता योग्य राशि – Set-off केवल वही दावा है जिसकी राशि निश्चित हो या निश्चित की जा सके।
  4. वाद मूल्य से अधिक नहीं – यह उतनी ही राशि के लिए हो सकता है जितनी वादी दावा कर रहा है; उसे पार नहीं कर सकता।
  5. ढाल (Shield) के रूप में कार्य – Set-off प्रतिवादी के लिए एक सुरक्षा है जो केवल वादी के दावे को कम या समाप्त करती है।
  6. स्वतंत्र वाद नहीं – यह एक स्वतंत्र cause of action नहीं है; बल्कि वादी की मांग के संदर्भ में एक प्रतिरक्षा है।

(C) प्रभाव

यदि Set-off सिद्ध हो जाता है, तो वादी की मांग उतनी ही राशि से घट जाएगी। कई मामलों में यह वादी के वाद का आंशिक या पूर्ण खारिज होने का कारण भी बन सकता है।


3. काउंटर-क्लेम (Counter-claim) – Order VIII Rule 6-A

(A) काउंटर-क्लेम का अर्थ

Counter-claim प्रतिवादी द्वारा वादी के विरुद्ध किया गया वह दावा है जो बिल्कुल एक स्वतंत्र मुकदमे (Cross Suit) के समान होता है। प्रतिवादी अपने किसी भी स्वतंत्र कारण-कार्रवाई (independent cause of action) के आधार पर वादी के विरुद्ध अपनी मांग प्रस्तुत कर सकता है।

(B) विशेषताएँ

  1. स्वतंत्र Cause of Action – प्रतिवादी का दावा किसी स्वतंत्र लेन-देन या किसी भी वह घटना से उत्पन्न हो सकता है।
  2. वादी के विरुद्ध दावा – Set-off की तरह Counter-claim भी वादी के विरुद्ध ही प्रस्तुत किया जाता है।
  3. अलग डिक्री मिलने की संभावना – Counter-claim पर न्यायालय स्वतंत्र रूप से फैसला करता है और वादी का वाद खारिज होने पर भी प्रतिवादी अपने Counter-claim पर डिक्री प्राप्त कर सकता है।
  4. वाद मूल्य की सीमा – Counter-claim की रकम न्यायालय की अधिकारिता (pecuniary jurisdiction) से अधिक नहीं हो सकती।
  5. क्रॉस-एक्शन – यह प्रतिवादी के लिए एक स्वतंत्र मुकदमे का अधिकार है।
  6. बचाव से आगे – Counter-claim केवल रक्षा का साधन नहीं है; यह प्रतिवादी को सक्रिय दावा प्रस्तुत करने का अधिकार देता है।

(C) प्रभाव

Counter-claim पर न्यायालय उसी वाद में निर्णय देकर एक अलग और स्वतंत्र डिक्री जारी कर सकता है। वादी को अनिवार्य रूप से इसके उत्तर में लिखित बयान देना होता है।


4. सैट-ऑफ और काउंटर-क्लेम के मध्य मुख्य अंतर

बिंदु Counter-claim (Order VIII Rule 6A) Set-off (Order VIII Rule 6)
वादी के विरुद्ध दावा हाँ हाँ
दावे की प्रकृति स्वतंत्र Cause of Action वादी के दावे से संबंधित या उसके भीतर
डिक्री वादी का वाद खारिज होने पर भी प्रतिवादी के पक्ष में डिक्री दी जा सकती है केवल वादी की मांग घटती है; अलग डिक्री नहीं
सीमा न्यायालय की pecuniary jurisdiction से अधिक नहीं हो सकती राशि निश्चित या निश्चितता योग्य होनी चाहिए
उद्देश्य प्रतिवादी को स्वतंत्र राहत प्रदान करना वादी के दावे को कम करना (Shield)
प्रकृति Cross-action Defensive mechanism
समय Written statement के साथ या अदालत की अनुमति से बाद में Written statement में ही
राशि की सीमा कोई न्यूनतम सीमा नहीं—बस अदालत की सीमा से कम हो उतनी ही या कम जितना वादी दावा करता है

5. न्यायिक दृष्टिकोण

भारतीय न्यायालयों ने समय-समय पर Set-off और Counter-claim के सिद्धांतों को स्पष्ट किया है। उच्चतम न्यायालय ने माना है कि Counter-claim मुकदमे की सुगमता और न्याय की गति बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्रतिवादी को अलग मुकदमा दाखिल किए बिना अपनी स्वतंत्र मांग स्थापित करने में सक्षम बनाता है।

न्यायालयों ने यह भी निर्धारित किया है कि Counter-claim को यथासंभव व्यापक रूप से व्याख्यायित किया जाना चाहिए ताकि विवादों का एक ही मुकदमे में अंतिम निपटारा हो सके।


6. उचित उपाय का चुनाव: कब Set-off और कब Counter-claim?

Set-off कब चुनें?

  • जब प्रतिवादी के दावे की राशि निश्चित हो या आसानी से निर्धारित की जा सके।
  • जब प्रतिवादी केवल वादी के दावे को कम करना चाहता हो।
  • जब दावा उसी लेन-देन से संबंधित हो जिससे वादी का दावा उत्पन्न हुआ हो।

Counter-claim कब चुनें?

  • प्रतिवादी को वादी से किसी स्वतंत्र लेन-देन से संबंधित राशि या अन्य राहत प्राप्त करनी हो।
  • प्रतिवादी चाहता हो कि वादी के विरुद्ध उसका दावा उसी मुकदमे में तय हो जाए।
  • प्रतिवादी एक अलग क्रॉस-सूट दायर किए बिना राहत प्राप्त करना चाहता हो।

7. निष्कर्ष

        Set-off और Counter-claim दोनों का उद्देश्य प्रतिवादी को प्रभावी न्याय दिलाना है, लेकिन दोनों की प्रकृति, प्रक्रिया और परिणाम बिल्कुल भिन्न हैं। Set-off एक रक्षात्मक उपाय (Shield) है, जबकि Counter-claim एक आक्रामक उपाय (Sword) की तरह कार्य करता है, जिसके द्वारा प्रतिवादी वादी के विरुद्ध स्वतंत्र रूप से राहत प्राप्त कर सकता है।

        इन दोनों प्रावधानों का सही उपयोग न्यायालय में मुकदमों की संख्या कम करता है, समय बचाता है और एक ही कार्यवाही में दोनों पक्षों के हितों की संपूर्ण रक्षा सुनिश्चित करता है।