“सेना से सेवा निवृत्त जवान को मिले विकलांगता पेंशन: सुप्रीम कोर्ट ने स्किजोफ्रेनिया पीड़ित पूर्व सैनिक के हक में सुनाया ऐतिहासिक फैसला”

लेख शीर्षक:

“सेना से सेवा निवृत्त जवान को मिले विकलांगता पेंशन: सुप्रीम कोर्ट ने स्किजोफ्रेनिया पीड़ित पूर्व सैनिक के हक में सुनाया ऐतिहासिक फैसला”


भूमिका:

भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण और मानवीय दृष्टिकोण से प्रेरित निर्णय में यह निर्देश दिया कि राजुमोन टी.एम. नामक पूर्व सैनिक को स्किजोफ्रेनिया (एक मानसिक बीमारी) से पीड़ित होने के कारण विकलांगता पेंशन दी जाए। यह फैसला उन हजारों पूर्व सैनिकों के लिए राहत का संदेश लेकर आया है, जिन्हें मानसिक या अदृश्य बीमारियों के चलते सेवा से हटाया गया लेकिन उन्हें पेंशन से वंचित कर दिया गया।


मामले की पृष्ठभूमि:

राजुमोन टी.एम., भारतीय सेना में कार्यरत एक जवान थे, जिन्हें सेवा के दौरान स्किजोफ्रेनिया का पता चला — एक गंभीर मानसिक बीमारी जो सोचने, समझने और सामाजिक रूप से संवाद करने की क्षमता को प्रभावित करती है। इस बीमारी के चलते उन्हें सेना से सेवा निवृत्त कर दिया गया। हालांकि, उनका यह दावा था कि यह बीमारी ड्यूटी के दौरान और तनावपूर्ण वातावरण की वजह से हुई है, इसलिए उन्हें विकलांगता पेंशन मिलनी चाहिए।


न्यायालय की टिप्पणियाँ:

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए राज्य को निर्देशित किया कि—

“सेना में सेवा के दौरान उत्पन्न मानसिक बीमारियाँ भी सेवा से संबंधित मानी जानी चाहिए, जब तक कि यह स्पष्ट रूप से साबित न हो कि बीमारी का कारण सेवा से बाहर का है।”

न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि मानसिक बीमारियाँ शारीरिक बीमारियों के समान ही गंभीर होती हैं और उनका भी सेवा के दौरान उत्पन्न होना संभव है, विशेष रूप से जब सैनिक विषम और तनावपूर्ण स्थितियों में काम कर रहे हों।


न्यायिक दृष्टिकोण और सामाजिक प्रभाव:

यह निर्णय सेना के उन लाखों सैनिकों और पूर्व सैनिकों के अधिकारों को बल प्रदान करता है जो ड्यूटी के दौरान मानसिक रूप से प्रभावित होते हैं लेकिन उनकी तकलीफें अमूर्त मानी जाती हैं। यह निर्णय निम्नलिखित आधारों पर अहम है:

  1. मानवाधिकारों की रक्षा: मानसिक बीमारियों को भी समान रूप से मान्यता देना।
  2. सेना के जवानों की गरिमा: उन्हें उनके योगदान के अनुसार सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना।
  3. नीतिगत सुधार का संकेत: विकलांगता पेंशन की व्याख्या को मानसिक स्वास्थ्य तक विस्तृत करना।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला न्याय, समानता और करुणा के सिद्धांतों का सच्चा उदाहरण है। राजुमोन टी.एम. को विकलांगता पेंशन देने का निर्णय न केवल व्यक्तिगत न्याय है, बल्कि यह पूरे तंत्र को यह संदेश देता है कि सेवा के दौरान मानसिक स्वास्थ्य को भी गंभीरता से लिया जाए और उसके अनुरूप पेंशन एवं सहायता सुनिश्चित की जाए।