सेना में सेवा के दौरान सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित सैनिक को मिलेगा विकलांगता पेंशन: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
(Rajumon T.M. बनाम Union of India & Ors.)
🔍 भूमिका:
भारतीय सेना के जवान देश की सुरक्षा के लिए न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी अत्यधिक दबाव में कार्य करते हैं। लंबे समय तक तनाव, जोखिम और अनुशासित जीवन शैली कई बार सैनिकों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालती है। सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला, जिसमें एक मानसिक रोग से ग्रसित पूर्व सैनिक को विकलांगता पेंशन देने का आदेश दिया गया है, इस दिशा में एक मानवीय दृष्टिकोण को स्थापित करता है।
⚖️ मामले की पृष्ठभूमि:
मामले में याचिकाकर्ता राजूमोन टी.एम. (Rajumon T.M.) एक पूर्व सैनिक हैं, जो भारतीय सेना में कार्यरत थे। सेवा के दौरान उन्हें सिज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) नामक मानसिक बीमारी का निदान हुआ, जिसके चलते उन्हें सेवा से डिस्चार्ज कर दिया गया।
राजूमोन टी.एम. ने सेना से निवृत्त होने के बाद विकलांगता पेंशन की मांग की, लेकिन अधिकारियों द्वारा यह कहकर मना कर दिया गया कि यह मानसिक स्थिति ड्यूटी के दौरान उत्पन्न नहीं हुई और इसे सेना की सेवा से संबंधित नहीं माना गया।
🧑⚖️ सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले में गहन विचार करते हुए यह स्पष्ट किया कि:
- यदि कोई सैनिक मानसिक बीमारी से पीड़ित होता है और वह बीमारी उसकी सेवा के दौरान विकसित होती है, तो उसे विकलांगता पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता।
- मानसिक रोग, विशेष रूप से सिज़ोफ्रेनिया, धीरे-धीरे बढ़ने वाला रोग है और इसके लक्षण सेना की ड्यूटी के तनावपूर्ण माहौल में उभर सकते हैं।
- राजूमोन टी.एम. की चिकित्सा रिपोर्ट और सेवा रिकॉर्ड से यह स्पष्ट था कि बीमारी सेवा के दौरान उत्पन्न हुई थी।
- इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय और अन्य संबंधित अधिकारियों को आदेश दिया कि उन्हें विकलांगता पेंशन तुरंत प्रभाव से प्रदान की जाए।
📚 कानूनी विश्लेषण:
- रक्षा सेवा विनियम (Defence Service Regulations) के अनुसार, यदि कोई सैनिक किसी ऐसी बीमारी से ग्रसित होता है जो सेवा के दौरान उत्पन्न हुई हो, तो उसे पेंशन संबंधी लाभ दिए जाने चाहिए।
- कोर्ट ने यह भी दोहराया कि मानसिक रोग भी शारीरिक विकलांगता के बराबर माना जाना चाहिए और इससे जुड़े सैनिकों को भी समान अधिकार दिए जाने चाहिए।
- पूर्व में Dharamvir Singh बनाम Union of India और Ex. Sapper Mohinder Singh बनाम Union of India जैसे मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट मानसिक रोगों को ड्यूटी से संबंधित मान चुकी है।
📌 फैसले का प्रभाव:
- यह निर्णय केवल एक सैनिक के हक में नहीं, बल्कि उन सैकड़ों मानसिक रूप से पीड़ित पूर्व सैनिकों के लिए भी राहत है जिन्हें अब तक लाभ से वंचित किया गया है।
- इससे सेना में कार्यरत जवानों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेने की दिशा में नीति-निर्माताओं को प्रेरणा मिलेगी।
- यह स्पष्ट संदेश देता है कि सेवा के दौरान उत्पन्न किसी भी प्रकार की बीमारी – चाहे शारीरिक हो या मानसिक – के लिए सैनिक को उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।
✅ निष्कर्ष:
राजूमोन टी.एम. बनाम यूनियन ऑफ इंडिया का यह फैसला भारतीय न्यायपालिका की उस संवेदनशीलता को दर्शाता है जो हमारे सैनिकों के स्वास्थ्य और कल्याण के प्रति प्रतिबद्ध है। यह निर्णय मानसिक रोगों से ग्रसित सैनिकों के लिए न्याय का मार्ग प्रशस्त करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी पूर्व सैनिक अपने अधिकारों से वंचित न रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मानसिक रोग भी युद्ध के मैदान के घाव के समान हैं – और उन्हें भी समान संवेदना व सम्मान मिलना चाहिए।