सेना इकाई गंगा नदी में अवैध खनन के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती: उत्तराखंड हाईकोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा
🔷 भूमिका:
भारत में गंगा नदी न केवल एक धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक है, बल्कि एक संवेदनशील पारिस्थितिकीय प्रणाली भी है। लेकिन बीते वर्षों में अवैध रेत खनन (Illegal Sand Mining) ने इस नदी की सेहत और प्रवाह दोनों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
उत्तराखंड राज्य में विशेष रूप से हरिद्वार, ऋषिकेश और आसपास के क्षेत्रों में गंगा नदी से रेत व पत्थरों के अवैध खनन को लेकर समय-समय पर विरोध और याचिकाएं दायर होती रही हैं। हाल ही में एक मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि सेना की कोई इकाई स्वयं इस तरह के अवैध खनन के विरुद्ध कोई विधिक कार्रवाई नहीं कर सकती।
🔷 मामले की पृष्ठभूमि:
- याचिका उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दायर की गई थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि गंगा नदी क्षेत्र में सेना इकाई की भूमि पर अवैध खनन हो रहा है।
- इसमें यह भी कहा गया कि सेना उस क्षेत्र की जिम्मेदार है, लेकिन खनन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
- याचिकाकर्ता ने मांग की कि कोर्ट सेना को निर्देश दे कि वह अवैध खनन को रोके और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे।
🔷 सरकारी पक्ष और कोर्ट में स्पष्टीकरण:
उत्तराखंड सरकार और रक्षा मंत्रालय की ओर से कोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि:
- सेना एक ‘लैंडहोल्डिंग एजेंसी’ मात्र है:
सेना को वह ज़मीन केवल उपयोग के लिए आवंटित की गई है, वह कानून प्रवर्तन या पर्यावरणीय निगरानी एजेंसी नहीं है। - सेना के पास अवैध खनन रोकने का विधिक अधिकार नहीं है:
सेना किसी नागरिक या ठेकेदार के खिलाफ प्रत्यक्ष रूप से आपराधिक या पर्यावरणीय कार्रवाई नहीं कर सकती, जब तक कि वह राष्ट्र सुरक्षा से जुड़ा मामला न हो। - खनन जैसे विषय राज्य प्रशासन और पर्यावरण विभाग के अधीन आते हैं:
इस प्रकार की कार्रवाई खनिज विभाग, जिला प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जिम्मेदारी है।
🔷 न्यायालय की टिप्पणी:
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा कि:
- यह स्पष्ट है कि सेना की भूमिका नागरिक प्रशासनिक कृत्यों में हस्तक्षेप की नहीं है।
- लेकिन यदि सेना की ज़मीन पर अवैध गतिविधि हो रही है, तो वह राज्य प्रशासन को सूचित करने और रिपोर्ट दर्ज कराने का दायित्व निभा सकती है।
- साथ ही, कोर्ट ने जिला प्रशासन को निर्देश दिया कि वह तुरंत मामले की जांच करे और अवैध खनन पर रोक लगाए।
🔷 गंगा नदी में अवैध खनन: एक व्यापक समस्या
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- रेत और पत्थरों का अत्यधिक दोहन गंगा की प्राकृतिक धारा और जलस्तर को नुकसान पहुंचाता है।
- जलीय जीवन, तटबंधों और जैव विविधता पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
- अवैध माफिया सक्रिय:
- उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में खनन माफियाओं का नेटवर्क बहुत व्यापक है।
- कई बार लोकल पुलिस और अधिकारियों की मिलीभगत से ये अवैध कार्य चलते रहते हैं।
- कानूनी कार्यवाही की कमी:
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
- भारतीय वन अधिनियम
- नदी संरक्षण नियम
👉 इन कानूनों के बावजूद अक्सर कमजोर प्रवर्तन के कारण अवैध खनन जारी रहता है।
🔷 इस आदेश का महत्व:
- यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत केंद्र और राज्य की शक्तियों के स्पष्ट विभाजन को रेखांकित करता है।
- साथ ही, यह बताता है कि सेना जैसे प्रतिष्ठानों को कानून से परे अधिकार नहीं दिए जा सकते, भले ही मामला सार्वजनिक हित से जुड़ा हो।
- यह जिम्मेदारी प्रशासन और राज्य एजेंसियों की है कि वे पर्यावरणीय अपराधों पर रोक लगाएं।
🔷 निष्कर्ष:
उत्तराखंड हाईकोर्ट में हुआ यह खुलासा कि सेना इकाई को गंगा नदी में अवैध खनन पर कार्रवाई करने का विधिक अधिकार नहीं है, एक संवैधानिक और प्रशासनिक स्पष्टता का संकेत है। यह निर्णय बताता है कि प्रत्येक संस्था की सीमाएं और भूमिका तय हैं, और पर्यावरण संरक्षण की ज़िम्मेदारी नियंत्रण और प्रवर्तन एजेंसियों पर ही है।
यदि गंगा जैसी नदियों को बचाना है, तो राज्य सरकार, खनिज विभाग और स्थानीय प्रशासन को ही प्रभावी ढंग से आगे आना होगा — न कि जिम्मेदारी को दूसरी संस्थाओं पर डाला जाए।