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“सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई पर हमले की निंदा: कांग्रेस अध्यक्ष, तमिलनाडु और केरल के मुख्यमंत्रियों ने बताया ‘शर्मनाक’”

“सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई पर हमले की निंदा: कांग्रेस अध्यक्ष, तमिलनाडु और केरल के मुख्यमंत्रियों ने बताया ‘शर्मनाक’”

भूमिका:
सुप्रीम कोर्ट भारत का सर्वोच्च न्यायिक संस्थान है, जहाँ न्याय की सर्वोच्च मर्यादाओं और विधिक आचार संहिताओं का पालन किया जाता है। हाल ही में इस प्रतिष्ठित संस्थान में एक अभूतपूर्व घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया — जब मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई पर अदालत के भीतर हमले का प्रयास किया गया। यह घटना न केवल न्यायपालिका की गरिमा के लिए चिंता का विषय है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की संवैधानिक आत्मा के लिए भी गहरी चोट के समान है। इस घटना के बाद, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन और केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन सहित कई राजनीतिक और कानूनी हस्तियों ने इसे “शर्मनाक” करार दिया और कठोर कार्रवाई की मांग की।


घटना का विवरण: सुप्रीम कोर्ट में अभूतपूर्व हमला

यह घटना उस समय हुई जब सुप्रीम कोर्ट में एक नियमित सुनवाई चल रही थी। जानकारी के अनुसार, एक अधिवक्ता (वकील) ने कोर्टरूम में अचानक उग्र व्यवहार दिखाया और न्यायालय की कार्यवाही में व्यवधान डालने का प्रयास किया। बताया गया कि यह वकील कुछ सोशल मीडिया पर फैली भ्रामक जानकारियों से प्रभावित था, जिसके कारण उसने मुख्य न्यायाधीश गवई के प्रति अनुचित व्यवहार किया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि “यह हमला न केवल न्यायपालिका के खिलाफ है, बल्कि यह हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा प्रहार है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि “सोशल मीडिया पर फैलाए गए गलत और भड़काऊ संदेशों” ने इस व्यक्ति को भ्रमित किया, जिसके परिणामस्वरूप यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई।


कांग्रेस अध्यक्ष की प्रतिक्रिया: लोकतंत्र पर हमला बताया

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस घटना पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि “सुप्रीम कोर्ट जैसे संस्थान में अगर न्यायाधीश सुरक्षित नहीं हैं, तो यह पूरे लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।” उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सुरक्षा लोकतांत्रिक शासन का मूल है और इस पर कोई भी हमला अस्वीकार्य है।
खड़गे ने अपने बयान में कहा —

“यह हमला न केवल न्यायपालिका की गरिमा पर धब्बा है, बल्कि यह हमारी संवैधानिक मूल्यों पर भी चोट है। यह बेहद शर्मनाक और अस्वीकार्य है।”

उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि न्यायालय परिसर में सुरक्षा व्यवस्था को और सख्त किया जाए ताकि भविष्य में ऐसी कोई घटना न हो सके।


तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन की कड़ी प्रतिक्रिया

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने भी इस घटना को “लोकतंत्र की नींव पर हमला” बताते हुए कहा कि “सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश पर हमला करना किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।” उन्होंने अपने आधिकारिक बयान में कहा —

“न्यायपालिका लोकतंत्र का अंतिम स्तंभ है। ऐसे संस्थान पर हमला करने का अर्थ है संविधान और क़ानून के शासन को चुनौती देना।”

स्टालिन ने यह भी कहा कि यह घटना इस बात की गंभीर चेतावनी है कि कैसे सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे झूठ और अफवाहें समाज में असहिष्णुता और भ्रम पैदा कर रही हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही तय की जाए और इस तरह की भ्रामक सामग्री पर कठोर कार्रवाई की जाए।


केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन का बयान

केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने घटना को “शर्मनाक” बताते हुए कहा कि यह न केवल मुख्य न्यायाधीश पर हमला है, बल्कि न्याय की पूरी व्यवस्था पर हमला है। उन्होंने कहा —

“हमारे देश में न्यायपालिका को संविधान का संरक्षक माना जाता है। इस तरह की घटनाएँ असहिष्णुता और अराजकता के बढ़ते खतरे का संकेत हैं।”

विजयन ने इस घटना को रोकने में सुरक्षा एजेंसियों की विफलता पर भी सवाल उठाया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट परिसर में इस तरह की घटना होना “चिंताजनक और अपमानजनक” है।


सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का बयान

सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General) तुषार मेहता ने न्यायालय के भीतर इस हमले की कड़ी निंदा की और इसे “सोशल मीडिया द्वारा फैलाए गए झूठे प्रचार” का नतीजा बताया। उन्होंने कोर्ट को बताया कि हमलावर व्यक्ति हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर चल रही गलत सूचनाओं से गुमराह था और उसने न्यायपालिका के खिलाफ झूठे नैरेटिव पर विश्वास कर लिया था।
मेहता ने कहा —

“यह समय है कि हम सोशल मीडिया के इस अंधेरे पक्ष को गंभीरता से लें। जब झूठ और भ्रामक जानकारियाँ सच्चाई से अधिक प्रभावशाली बन जाती हैं, तो समाज का संतुलन बिगड़ जाता है।”

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से यह भी अनुरोध किया कि न्यायिक सुरक्षा को लेकर एक सर्वोच्च स्तर की समीक्षा बैठक की जाए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।


न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता पर प्रश्न

यह घटना केवल एक व्यक्ति की गलती नहीं मानी जा सकती। यह इस बात का द्योतक है कि देश में संस्थानों के प्रति सम्मान की भावना कमजोर पड़ रही है।
सुप्रीम कोर्ट, जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों का रक्षक है, वहाँ किसी न्यायाधीश पर हमला या असम्मान लोकतंत्र के मूल स्तंभ पर हमला है।
कई वरिष्ठ वकीलों ने भी इस घटना को बेहद गंभीर बताते हुए कहा कि अदालत में अनुशासन और मर्यादा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा —

“यह पहली बार नहीं है जब न्यायालय के भीतर भावनाएँ उफान पर आईं, लेकिन इस बार जो हुआ, उसने पूरी न्याय प्रणाली को हिला दिया है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि न्यायालय परिसर में पूर्ण सुरक्षा और अनुशासन बना रहे।”


सोशल मीडिया की भूमिका और गलत सूचना का खतरा

इस घटना के पीछे सोशल मीडिया पर फैली भ्रामक और झूठी जानकारियाँ प्रमुख कारण बताई गईं। न्यायालय और न्यायाधीशों के खिलाफ चल रहे फेक नैरेटिव, प्रोपेगेंडा और अफवाहों ने कई नागरिकों को गुमराह किया है।
आज की डिजिटल दुनिया में “फ्री स्पीच” की आड़ में कई बार ऐसी बातें प्रसारित की जाती हैं जो न्यायपालिका की विश्वसनीयता को कमजोर करती हैं।

कानूनी विशेषज्ञों ने इस अवसर पर यह सुझाव दिया कि —

  1. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही तय होनी चाहिए।
  2. न्यायिक संस्थानों के खिलाफ गलत सूचना फैलाने पर दंडनीय प्रावधान कड़े किए जाएँ।
  3. लोगों में न्यायपालिका के प्रति सम्मान और समझ बढ़ाने के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाया जाए।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएँ

घटना के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों, बार काउंसिल्स, और सिविल सोसायटी संगठनों ने एक स्वर में इस हमले की निंदा की।
कई नेताओं ने यह भी कहा कि यह घटना हमें याद दिलाती है कि संविधान और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा केवल कानून से नहीं, बल्कि नागरिक चेतना से भी होती है।
दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी इस घटना पर चिंता जताई और न्यायालय परिसर की सुरक्षा बढ़ाने की मांग की।


निष्कर्ष: न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा सामूहिक जिम्मेदारी

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई पर हमले की यह घटना केवल एक व्यक्ति का अपराध नहीं है, बल्कि यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी पर प्रश्नचिह्न लगाती है।
न्यायपालिका की गरिमा, स्वतंत्रता और सुरक्षा किसी एक संस्था का नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र का सम्मान है।
सोशल मीडिया की गलत सूचनाओं से उत्पन्न यह स्थिति हमें चेतावनी देती है कि यदि नागरिक विवेक, मीडिया की जिम्मेदारी और संस्थागत सम्मान को नहीं अपनाया गया तो लोकतंत्र के स्तंभ कमजोर हो सकते हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे, मुख्यमंत्री स्टालिन और पिनरई विजयन के शब्दों में —

“यह हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा पर है। न्यायालय की मर्यादा की रक्षा हर नागरिक का कर्तव्य है।”